MAN KI BAAT : पूरी जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूं कि अभी भी समय है शिक्षक संगठन अपने विचारों और कारगुजारियों में सुधार लायें तब जाकर संगठन और शिक्षक की गरिमा........
इधर कई दिनों से उत्तर प्रदेश के तमाम शिक्षक संगठन इधर-उधर, जहाँ-तहाँ बिलबिला रहे हैं....क्यों भाई ऐसा क्या हो गया ? जब तमाम संगठन अपने -अपने स्वार्थ में खड़े कर लिये तब ये दूरदर्शी बिलबिलाती नजर कहाँ चली गयी थी । आइये कुछ नहीं सभी मूलभूत बातों पर मिलकर विचार करते हैं मेरा मानना है कि वर्तमान परिवेश में शिक्षक संघठनों की प्रासंगिकता और भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि शिक्षा के सवाल पर सरकार और समाज दोनों उदासीन है। एकतरफ समाज शिक्षा के बाजारीकरण व निजीकरण के बोझ तले दबा है तो दूसरी तरफ सरकारी शिक्षण संस्थाओं की स्थिति पर सरकार और समाज दोनों मौन हो चले हैं। क्योंकि मैं मानता हूं कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तथा उसमें सुधार विषय पर सरकार एवं संगठन के बीच संवादहीनता अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं जिसके लक्षण अब दिखाई देने शुरू हो गये हैं । जिस पर शिक्षक संगठनों के तमाम पदाधिकारियों को गम्भीरता से मनन करना होगा । ऐसा क्यों हो रहा है कि शिक्षकों के लिए प्रतिदिन खाई दर खाई खुदती चली जा रही है और शिक्षक अपना वजूद ढ़ूढ़ने को मजबूर है । मैं जब अपने को अदना सा शिक्षक कहता हूं तो तमाम शिक्षक हंस कर निकल जाते हैं लेकिन अब शिक्षकों को समझ आने लगा होगा कि अदना शब्द का प्रयोग प्रासंगिक था या नहीं ।
मैं तो कहता हूं कि राष्ट्रनिर्माता शिक्षक अपने को सरकारी ड्यूटी तक सीमित न रख कर सामाजिक स्तर पर बेहतर शैक्षणिक माहौल बनाने के साथ-साथ बेहतर समाज के निर्माण में अपनी महती भूमिका निभाएं। सरकारें शिक्षक और शिक्षा के प्रति संवेदनहीन रही हैं । आज न सिर्फ शिक्षा की मूलभूत संरचना को खंडित किया जा रहा है बल्कि एक सुनियोजित साजिश के तहत वर्तमान पीढ़ी को गुणवत्तापूर्ण एवं बेहतर शिक्षा से दूर किया जा रहा है। शिक्षा का सवाल सिर्फ किसी एक राज्य तक सीमित न होकर बल्कि पूरे राष्ट्र का सवाल है। अब शिक्षक से बहुउद्देश्य कर्मचारियों जैसे कार्य लिये जा रहे हैं फिर भी शिक्षक की पीठ पर कामचोर की मोहर बेधड़क लगा दी जा रही है। जिससे समाजिक परिवेश में शिक्षक की गरिमा गिरती चली जा रही है । हां इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ शिक्षक, शिक्षक भूमिका को धारण तो करते हैं पर उसकी गरिमा को प्रोफेशनल शिक्षक बनकर जमींदोज भी कर रहे हैं ।
भगवान बुद्ध ने सबसे पहले संघ का गठन किया था और नारा दिया था "संघम् शरणम् गच्छामि" और कलयुग में यह वाक्य "संघे शक्ति कलियुगे" बन गया। संगोष्ठी से शिक्षक संगठन, सदस्यों और शिक्षकों के बीच सीधा संवाद होता है तथा संगठन के उद्देश्य एवं कार्य को अमलीजामा पहनाने में काफी मददगार होती रही थी पर संगठन के सोच में भी साल दर साल गिरवाट आती चली गयी और शिक्षकों के बीच संगठन अपने साख खोते चले गये । "प्राइमरी का मास्टर" होने के नाते पूरी जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूं कि अभी भी समय है शिक्षक संगठन अपने विचारों और कारगुजारियों में सुधार लायें तब जाकर संगठन और शिक्षक की गरिमा बच पायेगी। पिछले कई साल पहले जब हर वर्ष शिक्षक संगठन का जो सम्मेलन अलग-अलग राज्यों में होता रहा है जिसमें अलग राज्यों के संगठन के पदाधिकारी और सभी राज्यों के कोने -कोने के शिक्षक बन्धु मिलकर आपस में अपनी बोली-भाषा और विचारों से ओतप्रोत होते रहे, उसकी कमी ने संगठन को भी गर्त की ओर ढकलेने का एक सहारा बना है ।
शिक्षक संघ अपनी लंबी यात्रा में हमेशा शिक्षा की नीति निर्धारण में योगदान देते रहा है और आज भी इसके लिए तत्पर है। शिक्षक संघ हमेशा अपने मांगों व समस्याओं से ऊपर उठकर अपनी सामाजिक दायित्वों के प्रति भी सजग रहा है। लेकिन आज सरकारी तंत्रों के कुंठित रवैये और कुकुरमुत्ते की तरह उगे स्वार्थपरक संगठनों ने शिक्षकों को तितर-बितर कर दिया जिसका परिणाम अब परिलक्षित होने लगा है।
मुझे लगता है मेरे द्वारा कही और लिखी बातों से हो सकता है तमाम लोग इत्तेफाक न रखते हों पर सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता अच्छे और बुरे कमेंट आ सकतें पर शिक्षक की पीड़ा है तो कहनी और सुननी भी पड़ेगी । उत्तर प्रदेश या यूं कहे अखण्ड भारतवर्ष के और प्रदेशों के तमाम शिक्षक संगठनों को अपने तथाकथित अंहकार को छोड़कर मूल संगठन में विलय होकर मजबूती प्रदान करते हुए जब भी आन्दोलन का बिगुल बजे तो बल प्रदान करना चाहिए । वहीं मूल संगठनों की भी जिम्मेदारी बनती है कि सबका सम्मान होना चाहिए, वरना अब वो दिन दूर नहीं कि जब ये देहाती कहावत- "क्या राजा भोज और क्या गंगू तेली" और दूसरा सामयिक कहावत "आज हमारी काल तुम्हारी, देखो लोगों बारी-बारी" चरितार्थता होने की तरफ अपने कदम बढ़ा चुके हैंं जिसमें समय के चक्र के साथ सबका पिसना तय है ।
।।जय शिक्षक जय भारत।।
आप सबका अदना सा शिक्षक
दयानन्द त्रिपाठी
दयानन्द त्रिपाठी
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