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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात : पोली नींव, राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालयों के लिए हुई प्रवेश परीक्षा के नतीजों ने परिषदीय स्कूलों की शिक्षा के प्रति भविष्य दृष्टाओं के माथे पर............

मन की बात : पोली नींव, राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालयों के लिए हुई प्रवेश परीक्षा के नतीजों ने परिषदीय स्कूलों की शिक्षा के प्रति भविष्य दृष्टाओं के माथे पर............

राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालयों के लिए हुई प्रवेश परीक्षा के नतीजों ने परिषदीय स्कूलों की शिक्षा के प्रति भविष्य दृष्टाओं के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। प्रदेश में इन विद्यालयों की कक्षा छह, सात एवं आठवीं की करीब पांच हजार सीटों के लिए यह प्रवेश परीक्षा पहली बार आयोजित की गई। परिषदीय स्कूलों के लगभग 43 हजार विद्यार्थियों ने यह परीक्षा दी। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि उत्तर प्रदेश समाज कल्याण/जनजाति विभाग अब आश्रम पद्धति विद्यालयों को नवोदय विद्यालय की तर्ज पर प्रतिष्ठित बनाना चाहता है।

लेकिन परिणाम यह रहा कि कक्षा छह के लिए तीन प्रतिशत बच्चे ही 60 प्रतिशत से ज्यादा अंक ला पाए। कक्षा सात और कक्षा आठ के लिए क्रमश: 1 और 1.5 प्रतिशत बच्चे ही 60 प्रतिशत से ज्यादा अंक हासिल कर प्रथम श्रेणी में प्रवेश परीक्षा पास कर पाए। अगर 30 प्रतिशत से ज्यादा अंक पाने वाले बच्चों की बात करें तो यह आकड़ा कक्षा छह के लिए 40 प्रतिशत, कक्षा सात के लिए 31 प्रतिशत और कक्षा आठ के लिए 32 प्रतिशत बैठता है। चिंता की बात नहीं होती अगर ये बच्चे अपनी मर्जी से परीक्षा में शामिल हुए होते। या फिर उनके अभिभावकों ने जबरदस्ती उन्हें परीक्षा में बैठाया होता। परीक्षा में शामिल ये वे बच्चे हैं जिन्हें अपने ब्लाक के टॉप सौ बच्चों में माना गया है। यह लिस्ट खंड शिक्षा अधिकारियों ने अपने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी से मिल कर बनाई है। प्रश्न पत्र उन्हीं की पढ़ाई के अनुरूप ही बनाए गए थे।

कई साल से परिषदीय स्कूलों में विद्यार्थियों की घटती संख्या बताती है कि अभिभावकों में इन स्कूलों के प्रति अविश्वास पैदा हो रहा है। थोड़ा भी जागरूक अभिभावक अपने आसपास के उस प्राइवेट विद्यालय की फीस भरने को तैयार हो जाता है जिसमें नाम के आगे कांवेंट या मांटेसरी लिखा रहता है। जबकि इन सरकारी स्कूलों में शिक्षक प्रशिक्षित होते हैं, वेतन बेहतर पाते हैं और पढ़ाई मुफ्त होती है। शिक्षा विभाग और उसके अफसर तो इस विचार करें ही, खुद शिक्षक भी इस पर आत्ममंथन अवश्य करें। बात पसंद आए तो अब सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दें।

उन बच्चों के सिर पर हाथ फेर कर देखें जिनके लिए उन्हें वेतन मिलता है और उस धन से उन्हें अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की सामर्थ्य मिलती है। कम फीस अदा कर भावी पीढ़ी शिक्षित होगी और रोजगार पाएगी तो प्रदेश के ऊपर उनका बड़ा उपकार होगा।
[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]

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  1. 📌 मन की बात : पोली नींव, राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालयों के लिए हुई प्रवेश परीक्षा के नतीजों ने परिषदीय स्कूलों की शिक्षा के प्रति भविष्य दृष्टाओं के माथे पर............
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