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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

विधानसभा व हाईकोर्ट से सटे स्कूल भी बदहाल : अफसरों की नाक के नीचे स्कूल, शिक्षक भी भरपूर, पर सुविधाएं इतनी नहीं कि पढ़ सकें बच्चे

विधानसभा व हाईकोर्ट से सटे स्कूल भी बदहाल : अफसरों की नाक के नीचे स्कूल, शिक्षक भी भरपूर, पर सुविधाएं इतनी नहीं कि पढ़ सकें बच्चे

लखनऊ। यह तस्वीर राजधानी में विधान भवन, हाईकोर्ट और शिक्षा भवन से सटे सरकारी और अनुदानित स्कूलों की हैं। ज्यादातर स्कूलों में शिक्षक तो हैं, पर दूसरी सुविधाएं नदारद हैं। स्कूल में लैब और लाइब्रेरी भी हैं, लेकिन उनमें सामग्री और किताबों का पता नहीं है। माध्यमिक विद्यालय में बैठने के लिए बेंच हैं, लेकिन परिषदीय स्कूलों में बच्चे अभी भी टाट-पट्टी पर ही बैठ रहे हैं। यह स्थिति तब है जब शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए सर्व शिक्षा और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान चलाए जा रहे हैं। ऐसे में हाईकोर्ट का सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने का आदेश इनकी सूरत जरूर बदल सकता है।

अभी जो हालात हैं उससे सरकारी और अनुदानित स्कूलों से दिन-ब-दिन बच्चों की संख्या कम होती जा रही है। स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती तो हो गई है, लेकिन सुविधाओं की कमी और शिक्षा के लगातार गिरते स्तर के चलते ये स्कूल बच्चों को आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं।

लखनऊ में परिषदीय स्कूलों की बात करें तो यहां 1,84,000 बच्चों को पढ़ाने के लिए 6,946 शिक्षकों की तैनाती है। इस लिहाज से प्रति शिक्षक-छात्र औसत करीब 30 का है। 1,352 शिक्षामित्रों के समायोजन के बाद औसत और भी कम हो जाएगा। इसके बावजूद सरकारी स्कूल निजी स्कूल के मुकाबले नहीं ठहर रहे। निजी स्कूलों के चमचमाते भवनों के मुकाबले सरकारी स्कूल जर्जर नजर आते हैं। बैठने के लिए भी बच्चों को टाट-पट्टी ही मिल रही है। प्रयोगशाला और लाइब्रेरी की बुरी स्थिति है। हर साल 36 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होने के बावजूद सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर नहीं सुधर रहा।

स्कूल : प्राथमिक विद्यालय नरही

स्कूल : बिशन नारायण इंटर कॉलेज, हजरतगंज

सरकारी स्कूलों में मोटी पगार पर छात्र नहीं कर रहे टॉप

यहां भी कुछ ऐसा ही हाल

हाईकोर्ट बिल्डिंग से चार किलोमीटर दूर स्थित एमडी शुक्ला इंटर कॉलेज में कक्षा एक से 12 तक पढ़ाई के लिए 22 शिक्षक तैनात हैं। इसके बावजूद विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या केवल 275 है। राजभवन कॉलोनी स्थित प्राथमिक विद्यालय में एक से पांच तक की पढ़ाई के लिए पांच शिक्षकों की तैनाती भी है। इसके बावजूद यहां पंजीकृत बच्चों की संख्या केवल 107 है। कुछ ऐसा ही हाल शिक्षा भवन से 100 मीटर दूर स्थित जवाहर नगर स्थित प्राथमिक विद्यालय का है। कहने को यहां 110 बच्चे पंजीकृत हैं, पर आधे बच्चों की उपस्थिति मुश्किल से हो पाती है। विद्यालय में बच्चों को पढ़ाने के लिए पांच शिक्षकों की तैनाती है।

संसाधन सुधारने के चल रहे प्रयास

अभी हाईकोर्ट का आदेश नहीं मिला है। आदेश मिलने के बाद उच्च अधिकारियों के निर्देश के हिसाब से काम किया जाएगा। अभी कुछ कहना संभव नहीं है। सरकारी स्कूलोें में संसाधनों की कमी की वजह से शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है, इसे सुधारने के लिए प्रयास चल रहे हैं।

-प्रवीण मणि त्रिपाठी,जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी

लखनऊ (ब्यूरो)। सूबे में सरकारी स्कूलों की शिक्षा पर अरबों रुपये हर साल खर्च होते हैं। इसमें मोटा हिस्सा सरकारी स्कूलों के शिक्षकों का होता है, लेकिन यूपी बोर्ड की परीक्षा में बहुत कम ही होता है जब इनके छात्र टॉप करते हैं। हाईकोर्ट ने सरकारी खजाने से पगार लेने वाले मंत्रियों, जजों और अफसरों के बच्चों की शिक्षा सरकारी स्कूलों में अनिवार्य कर दी है। इस स्थिति में सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को इस पर विचार करना होगा कि प्राइवेट स्कूलों से कैसे आगे निकलेंगे।

राज्य सरकार हर साल प्राइमरी से इंटर तक के स्कूलों के लिए भारी भरकम बजट की व्यवस्था करती है। राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष 2015-16 में बेसिक शिक्षा के लिए 32531.71 करोड़ की व्यवस्था की है। केंद्र सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान में 15,000 करोड़ दिए हैं। इसी तरह माध्यमिक शिक्षा के लिए 7941.97 करोड़ दिए। केंद्र सरकार ने 450 करोड़ राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान में दिए हैं। इसका मोटा हिस्सा शिक्षकों के वेतन पर खर्च होता है। परिषदीय स्कूल में नई तैनाती पाने वाले शिक्षक को न्यूनतम 21 हजार रुपये वेतन मिलता है, जबकि प्राइवेट स्कूलों में बहुत कम वेतन होता है। इसी तरह राजकीय इंटर कॉलेजों में शिक्षक को न्यूनतम 32,000 रुपये वेतन मिलता है। इसके बाद भी सरकारी स्कूलों का रिजल्ट देखा जाए तो छात्र मेरिट में नहीं आ पा रहे हैं।

प्राथमिक शिक्षा में सुधार के लिए बनेगी कमेटी : अखिलेश

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यहां बृहस्पतिवार को कहा कि प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने और सुधार के लिए एक कमेटी बनाई जाएगी। उन्होंने मंत्रियों, नेताओं और अफसरों के बच्चों को सरकारी प्राथमिक स्कूल में अनिवार्य रूप से पढ़ाने के हाईकोर्ट के फैसले पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में यह बात कही। उन्होंने कहा कि कोर्ट के आदेश का अध्ययन किया जाएगा। हालांकि हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले सुल्तानपुर के प्रशिक्षु शिक्षक शिव कुमार पाठक को बर्खास्त करने का सवाल वे टाल गए। (इनपुट  मुजफ्फरनगर ब्यूरो)

घट रही छात्र संख्या

केंद्र सरकार भी सरकारी स्कूलों की शिक्षण व्यवस्था में सुधार लाना चाहती है। इसके लिए सरकारी व निजी स्कूलों के छात्रों का ब्यौरा हर साल तैयार होता है। यूडायस नाम से तैयार होने वाले ब्यौरे को केंद्र सरकार के पास भेजा जाता है। इसके अनुसार परिषदीय स्कूलों में कक्षा पांच तक की शिक्षा लेने के बाद 15 से 20 फीसदी बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं। कक्षा आठ के बाद 25 से 30 फीसदी तक छात्राएं पढ़ाई छोड़ती हैं। सबसे खराब स्थिति कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों की है। इनमें कक्षा आठ तक की शिक्षा लेने वाली करीब 30 फीसदी छात्राएं पढ़ाई छोड़ देती हैं।

      खबर साभार : अमरउजाला

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  1. विधानसभा व हाईकोर्ट से सटे स्कूल भी बदहाल : अफसरों की नाक के नीचे स्कूल, शिक्षक भी भरपूर, पर सुविधाएं इतनी नहीं कि पढ़ सकें बच्चे
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