"मास्टर रामकुमार का कायदा" : आज बहुतों को यह जानने की उत्सुकता जरूर हो सकती है कि आखिर यह ‘मास्टर रामकुमार का कायदा’ क्या था? तो आइये आगे पढ़ते.........
हिंदी दिवस पर विशेष घटना सन् 1951 की है। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद नगर में सब इंस्पेक्टर पुलिस की परीक्षा थी। प्रतियोगियों से एक प्रश्न पूछा गया-मुरादाबाद की सबसे प्रसिद्ध वस्तु का नाम बताइए? अधिकांश प्रतियोगियों ने इस प्रश्न के उत्तर में लिखा था- कलई के बर्तन। किंतु एक प्रतियोगी ने उत्तर में लिखा-मास्टर रामकुमार का कायदा। परीक्षक इस उत्तर से चकरा गया। वह मुरादाबाद के बाहर का निवासी था और सामान्य तौर पर वह भी यही जानता था कि मुरादाबाद अपने कलई के बर्तनों के लिए प्रसिद्ध है। किंतु रामकुमार का कायदा तो सचमुच नई चीज थी और उसने पहले इसका नाम भी न सुना था। जब उसने अपने परिचय के कई लोगों से पूछा, तो प्रतियोगी द्वारा दिया गया उत्तर ठीक पाया। आज बहुतों को यह जानने की उत्सुकता जरूर हो सकती है कि आखिर यह ‘मास्टर रामकुमार का कायदा’ क्या था?
दरअसल, यह आजादी के दौर में देशवासियों को हिंदी वर्णमाला का बेहद सरल और व्यवस्थित ढंग से ज्ञान कराने वाली पहली सचित्र बोध पुस्तिका (प्राइमर) यानी कायदा थी। इसे मुरादाबाद नगर के शिक्षक और स्वाधीनता सेनानी मास्टर रामकुमार ने बड़े परिश्रम से तैयार कर पहली बार सन् 1915 में छापा था और उस जमाने में लागत मूल्य एक पैसा पर हिंदी के विद्यार्थियों को उपलब्ध कराया था।
हिंदी वर्णमाला का अक्षर ज्ञान कराने वाली यह सचित्र प्राइमर यानी ‘मास्टर रामकुमार का कायदा’ जल्दी ही समूचे हिंदी जगत और भारत भर में लोकप्रिय हो गया। बेहद सरल ढंग से हिंदी के अक्षरों एवं मात्राओं का ज्ञान कराने और सबसे सस्ता होने के कारण मास्टर रामकुमार के कायदे की देशभर में इतनी ज्यादा मांग होनी लगी कि स्वयं मास्टरजी के लिए इसकी पूर्ति कर पाना मुश्किल हो गया। नतीजा यह हुआ कि दूसरे मुद्रक और प्रकाशक इसकी हू-ब-हू नकल कर चोरी-छिपे छापकर इसे बेचने लगे। भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार में काले-काले पन्नों वाली इस पतली सी पुस्तिका का योगदान हिंदी प्रसार को समर्पित किसी भी व्यक्ति या संस्था की तुलना में सबसे ज्यादा है।
‘मास्टर रामकुमार के कायदे’ के बारे में एक रोचक कथा भी है। दरअसल बीसवीं सदी के प्रारंभ में हिंदी और हिंदुस्तान के प्रति मास्टरजी के मन में गहरा अनुराग था। वे शुरुआत से ही भारत के स्वाधीनता संग्राम में शामिल हो चुके थे और हिंदी भाषा को उर्दू और अंग्रेजी की बराबरी पर लाना चाहते थे। आजादी की लड़ाई के दौरान जब वह दिग्गज राष्ट्रपुरुषों के साथ मुरादाबाद कारागार में कैद थे, वहीं हिंदी वर्णमाला का सरल और व्यवस्थित ज्ञान कराने वाली सचित्र बोध पुस्तिका यानी कायदे की प्राक्कल्पना जन्म लेने लगी।
मास्टर रामकुमार दिन-रात इसके बारे में सोचने लगे। अंततः कुछ दिनों के श्रम के बाद उन्होंने हिंदी की पहली सचित्र बोध पुस्तिका जो आज भी ‘मास्टर रामकुमार का कायदा’ नाम से प्रसिद्ध है, उसे रचने में सफलता प्राप्त की। कारागार से रिहा होने के बाद मास्टर जी ने अपने कायदे को मूर्त रूप दिया। उन्होंने अपने मुद्रणालय रामकुमार प्रेस में पहला कायदा छापकर लागत मूल्य केवल एक पैसे पर हिंदी शिक्षार्थियों को इसे उपलब्ध कराया। काले पृष्ठों पर छपी इस बोध पुस्तिका की खास पहचान थी, मात्राओं का सरल ज्ञान और बारहखड़ी। ‘मास्टर रामकुमार के कायदे’ से पहले अन्य कोई प्राइमरी हिंदी के शिक्षार्थियों को मात्राओं का सम्यक ज्ञान नहीं करा पाती थी। नतीजा यह हुआ कि मास्टर रामकुमार का कायदा रातों-रात भारत भर में इतना लोकप्रिय हो गया कि पीतल के बर्तनों के बाद मुरादाबाद नगर की पहचान बन गया।
जब प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार डॉ. रामकुमार वर्मा ने ‘कायदा’ पहली बार देखा तो उन्होंने इसे हिंदी की पहली प्रमाणिक बोध पुस्तिका की संज्ञा दी थी। -राजीव सक्सेना पीतल के बर्तनों के बाद मुरादाबाद नगर की पहचान बन गए ‘कायदा’ को साहित्यकार डॉ. रामकुमार वर्मा ने हिंदी की पहली प्रमाणिक बोध पुस्तिका की संज्ञा दी थी।
~लेख राजीव सक्सेना
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"मास्टर रामकुमार का कायदा" : आज बहुतों को यह जानने की उत्सुकता जरूर हो सकती है कि आखिर यह ‘मास्टर रामकुमार का कायदा’ क्या था? तो आइये आगे पढ़ते.........
ReplyDelete>> READ MORE @ न्यूज डॉट बेसिक शिक्षा डॉट नेट : http://news.basicshiksha.net/2015/04/blog-post_66.html
Kayda Published in 1915 When Medium of Instruction was Only English and Urdu. Hindi Words and literature was in most pitious condition.
ReplyDeleteThis made Easy to Educate many
Adults and children into Hindi Alphabets and Words.
We SALUTE Master Ram Kumar Ji.....Jay Hind