logo

Basic Siksha News.com
बेसिक शिक्षा न्यूज़ डॉट कॉम

एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT :  निजी क्षेत्र की तुलना में कहीं ज्यादा प्रशिक्षित अध्यापक और व्यवस्था होने के बावजूद अगर सरकारी स्कूलों की तरफ विद्यार्थियों की आवाजाही नहीं बढ़ रही है, तो इसकी तरफ राजनीतिक दलों को.....

MAN KI BAAT :  निजी क्षेत्र की तुलना में कहीं ज्यादा प्रशिक्षित अध्यापक और व्यवस्था होने के बावजूद अगर सरकारी स्कूलों की तरफ विद्यार्थियों की आवाजाही नहीं बढ़ रही है, तो इसकी तरफ राजनीतिक दलों को.....

🔴 सरकारी स्कूलों से मोहभंग क्योंं

 

उमेश चतुर्वेदी


चुनावी मौसम की आहट फिजाओं में गूंज रही है। लोक और मीडिया के तमाम माध्यमों के बीच राजनीतिक मुद्दों की बौछार जारी है। लेकिन इसी बीच आई एक खबर पर लोगों का ज्यादा ध्यान नहीं है। शिक्षा ऐसा मसला है, जो हर किसी की जिंदगी से जुड़ा हुआ है। यही वजह है कि सरकारी तंत्र पर इसे लेकर खूब सवाल उठते हैं। लेकिन सरकारी शिक्षा की व्यवस्था में खास सुधार होता नजर नहीं आता। राष्ट्रीय शैक्षिक योजना और प्रशासन विश्वविद्यालय की ओर से जारी यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम यानी यू डाइस की रिपोर्ट ने सरकारी स्तर की प्राथमिक शिक्षा की पोल खोलकर रख दी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, हजारों करोड़ के सरकारी बजट के बावजूद लोगों का कम से कम प्राथमिक स्तर पर सरकारी शिक्षा से मोहभंग होता जा रहा है। निजी क्षेत्र के स्कूलों से बेहतर शैक्षिक तंत्र, कहीं ज्यादा योग्य प्रशिक्षित अध्यापक होने के बावजूद साल 2015-16 और 2016-17 के बीच सरकारी प्राथमिक स्कूलों को 56.59 लाख विद्यार्थियों ने छोड़ दिया है।


प्राथमिक स्तर पर सरकारी स्कूलों को छोड़ने वालों की सबसे ज्यादा संख्या अकेले उत्तर प्रदेश और बिहार से है। यू डाइस की रिपोर्ट के मुताबिक सबसे बुरी स्थिति बिहार की है। जहां 2015-16 की तुलना में 2016-17 में 15 लाख 21 हजार 379 बच्चों ने सरकारी प्राथमिक स्कूलों की पढ़ाई छोड़ दी। यह हालत नीतीश सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद है। दिलचस्प यह है कि पिछले साल नीतीश सरकार ने अपना शिक्षा बजट 25 हजार करोड़ से बढ़ाकर 32,125 करोड़ रुपये कर दिया था। वैसे भी राज्य में उनकी 2015 से सरकार है। फिर वे संजीदा नेता भी माने जाते हैं और निजीकरण पर उनका कम जोर रहता है। इसके बावजूद उनके राज्य से आने वाली यह खबर चिंताजनक है। यू डाइस की रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी प्राथमिक शिक्षा से मोहभंग के मामले में उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर है, जहां साल 2015-16 के मुकाबले 2016-17 में नौ लाख 57 हजार 544 विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूल छोड़ा।


यू डाइस के मुताबिक सरकारी स्कूलों की पढ़ाई से मोहभंग का अकेले इन दो राज्यों का आंकड़ा ही मिलकर 43 फीसदी बैठता है। चूंकि उत्तर प्रदेश के ये आंकड़े योगी सरकार से पहले के हैं, इसलिए इसके लिए उसे दोषी तो नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन यहां याद कर लेना चाहिए कि योगी सरकार ने भी सर्वशिक्षा अभियान के लिए 18 हजार 167 करोड़ का बजट दिया है। यू डाइस की रिपोर्ट के मुताबिक अच्छी खबर सिर्फ राजस्थान से है, जहां साल 2015-16 के मुकाबले 2016-17 में 42 हजार 319 विद्यार्थियों की संख्या सरकारी स्कूलों में बढ़ी। इसलिए वहां की पिछली वसुंधरा सरकार की पीठ थपथपाई जा सकती है।


सवाल यह है कि जब राज्य और केंद्र सरकारें प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए भारी-भरकम बजट का प्रावधान कर रही हैं, फिर लोगों का सरकारी प्राथमिक स्कूलों से मोहभंग क्यों हो रहा है। यह भी उलटबांसी ही है कि उच्च स्तर या तकनीकी शिक्षा के लिए निजी क्षेत्र के गिने-चुने संस्थान ही अच्छे माने जा रहे हैं। जबकि प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए गिने-चुने सरकारी स्कूलों पर ही लोगों का भरोसा है। निजी क्षेत्र की तुलना में कहीं ज्यादा प्रशिक्षित अध्यापक और व्यवस्था होने के बावजूद अगर सरकारी स्कूलों की तरफ विद्यार्थियों की आवाजाही नहीं बढ़ रही है, तो इसकी तरफ राजनीतिक दलों को देखना होगा। तभी जाकर सबको सहज शिक्षा उपलब्ध कराने और भारत को विश्व गुरु बनाने का सपना पूरा हो सकेगा। 

Post a Comment

0 Comments