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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT : अपनी सरकारी नौकरी को नया अर्थ दे रहे शिक्षक क्योंकि कि आज कि स्थिति जो है उसे देखकर यह कहना पड़ रहा है कि हमारे ग्रामीण स्कूलों के शिक्षक सिर्फ अपनी अंतरात्मा के प्रति जवाबदेह होकर ही काम करते....

MAN KI BAAT : अपनी सरकारी नौकरी को नया अर्थ दे रहे शिक्षक क्योंकि कि आज कि स्थिति जो है उसे देखकर यह कहना पड़ रहा है कि हमारे ग्रामीण स्कूलों के शिक्षक सिर्फ अपनी अंतरात्मा के प्रति जवाबदेह होकर ही काम करते....




कुछ साल पहले देश के सभी 6000 ब्लॉकों में एक मॉडल स्कूल खोलने की योजना सामने आई थी। सुविधाओं, विद्यार्थी-शिक्षक अनुपात और शैक्षिक गुणवत्ता में इन्हें केंद्रीय विद्यालयों की बराबरी पर होना था। यहां उत्तरकाशी के उन दो मॉडल स्कूलों के अनुभव साझा करूंगा जहां शिक्षकों के समूह बड़ा बदलाव ला रहे हैं। हम 2017 में जब इन स्कूलों में गए थे तो मॉडल स्कूल के रूप में वह इनका दूसरा साल ही था, लेकिन इनमें बदलाव साफ दिख रहा था। 


दो साल पहले तक बड़ेठी का स्कूल भी दूसरे प्राइमरी स्कूलों जैसा ही था। यहां कुल 38 बच्चे थे, जबकि गांव के बाकी बच्चे पड़ोस के निजी स्कूलों में पढ़ते थे। मॉडल स्कूल बनने के बाद यहां ‘कुछ कर दिखाने’ को प्रतिबद्ध नए शिक्षक नियुक्त हुए। इन शिक्षकों ने बीते दो साल में एक भी आकस्मिक अवकाश नहीं लिया था। शिक्षक गांव के हर घर में गए और बताया कि उनका स्कूल किस तरह बदल रहा था। जुनून का ही असर था कि 2015 में महज 38 बच्चों वाला स्कूल 2017 में 109 तक पहुंच चुका था। 


स्कूल की प्रात:कालीन सभा की परिकल्पना और संचालन बच्चे खुद करते थे। हेड टीचर ने समुदाय से संवाद, अभिभावक-शिक्षक बैठक और स्कूल के लिए पैसे जुटाने की जिम्मेदारी ले ली और शिक्षक पूरी तरह बच्चों को सिखाने और उनके सर्वांगीण विकास में जुट गए। गणित शिक्षक मुकेश नौटियाल तो इसकी बेहतरीन मिसाल हैं। स्थानीय मान समझाने की शुरुआत में वे बच्चों से एक, दो और तीन अंकों की संख्याएं बताने को कहते हैं ताकि अंक और संख्या के बीच का अंतर बच्चों के सामने साफ हो जाए। वे अलग-अलग मूल्य के नोट दिखाते हैं ताकि इस अवधारणा को पैसे के संदर्भ में समझा सकें। फिर बातचीत नोटों पर छपे महात्मा गांधी के चित्र पर चली जाती है और फिर भारत, उसकी आजादी और गांधी के विचारों पर चर्चा होती है। वे बच्चों से रोल नंबर पूछते हैं और इन नंबरों से कई तरह की संख्याएं बनाते हैं। कक्षा जीवंत बनी रहती है। कक्षा खत्म होने से पहले वे पिछले हफ्ते दिए गए इस अभ्यास की याद दिलाते हैं,जिसमें अपने आसपास की हर उस चीज को लिखना था, जिसका गणित से कोई वास्ता हो। मकसद बच्चों को यह महसूस कराना था कि गणित किस तरह हर वक्त उनके चारों तरफ मौजूद है। 


बारकोट मॉडल स्कूल के शिक्षक भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं। दो साल से भी कम समय में यहां बच्चों की संख्या 51 से 96 पहुंच गई। हेड टीचर सरिता का कहना था कि निजी स्कूलों को एक फायदा यह होता है कि वे बच्चों को तीन या चार साल की उम्र में ही नर्सरी और केजी कक्षाओं में दाखिला दे देते हैं। एक बार बच्चा निजी स्कूल की नर्सरी या केजी कक्षा में चला जाए तो उसे सरकारी स्कूल वापस लाना कठिन होता है। सरिता ने इस समस्या को अपने ही तरीके से हल किया। सभी विद्यार्थियों को अपने छोटे भाई-बहनों को स्कूल लाने को कह दिया। ये बच्चे आने लगे तो हर चीज में शामिल भी होने लगे और इस तरह स्कूल से जुड़ जाते हैं। स्वाभाविक रूप से यह रणनीति कारगर होनी ही थी। 

उनके स्कूल की प्रात:कालीन सभा की बेहतरीन गतिविधियों को व्यापक पहचान मिली है। बच्चों को तीन ‘हाउस’ में बांटा गया है, जो विभिन्न गतिविधियों में हर बच्चे की भागीदारी सुनिश्चित करते हैं। प्रार्थना के बाद बच्चे अखबारों से खबरें सुनाते हैं और फिर सामान्य ज्ञान के सवाल पूछे जाते हैं। सभा में हर दिन एक कविता और अंग्रेजी के कुछ शब्द या मुहावरे बताए जाते हैं। हर बच्चे की प्रगति की समीक्षा के लिए शिक्षकों की नियमित बैठकें होती हैं। बारकोट आदर्श स्कूल पढ़ाई के बाद कुछ चुने हुए बच्चों को अतिरिक्त मार्गदर्शन देता है। इस टीम का काम बच्चों के पोर्टफोलियो में दिखता है, जिनमें हर बच्चे की प्रगति पर विस्तृत टिप्पणियां दर्ज होती हैं। हमारे ग्रामीण इलाकों में जैसे-जैसे निजी स्कूल फैल रहे हैं वैसे-वैसे सबसे कमजोर और सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित बच्चे ही सरकारी स्कूलों में रह गए हैं। ऐसे में हमारे ग्रामीण स्कूलों के शिक्षक सिर्फ अपनी अंतरात्मा के प्रति जवाबदेह होकर ही काम करते हैं।

  - एस. गिरिधर, सीओओ, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन

 (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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