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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT : केंद्र सरकार अपनी नई शिक्षा नीति में प्राइमरी के स्तर पर अंग्रेजी की पढ़ाई बंद कर सकती है, क्योंकि एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार न्यास ने सुझाव दिया है कि पांचवीं तक की पढ़ाई मातृभाषा में.................

MAN KI BAAT : केंद्र सरकार अपनी नई शिक्षा नीति में प्राइमरी के स्तर पर अंग्रेजी की पढ़ाई बंद कर सकती है, क्योंकि एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार न्यास ने सुझाव दिया है कि पांचवीं तक की पढ़ाई मातृभाषा में.................

चर्चा गर्म है कि केंद्र सरकार अपनी नई शिक्षा नीति में प्राइमरी के स्तर पर अंग्रेजी की पढ़ाई बंद कर सकती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन, ‘शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास’ ने उसे इस मामले में कुछ सुझाव दिए हैं, जिन पर एचआरडी मिनिस्ट्री गंभीरता से विचार कर रही है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार न्यास ने सुझाव दिया है कि पांचवीं तक की पढ़ाई मातृभाषा में ही हो। छठीं के बाद भी पढ़ाने का माध्यम मातृभाषा रहे और अंग्रेजी अतिरिक्त भाषा के तौर पर पढ़ाई जाए। विषय के तौर पर किसी भी विदेशी भाषा को कॉलेज स्तर पर ही पढ़ाया जाए। पोस्ट-ग्रेजुएट स्तर की पढ़ाई का माध्यम इंगलिश के साथ-साथ मातृभाषा भी हो। साथ ही आईआईटी, आईआईएम और एनआईटी जैसे अंग्रेजी भाषाओं में पढ़ाई कराने वाले संस्थानों में भी भारतीय भाषाओं में शिक्षा देने की व्यवस्था की जाए। अगर केंद्र सरकार ने इन सिफारिशों को माना तो वह एक बार फिर वही गलती दोहराएगी, जो उत्तर भारत की प्राय: सभी राज्य सरकारें अर्से से करती आ रही हैं।

साठ के दशक में चर्चित संघ के नारे ‘हिंदी, हिंदू, हिंदुस्थान’ में ‘अंग्रेजी हटाओ’ आंदोलन के तहत तीन-चार साल तक समाजवादियों की सहमति भी शामिल हो गई थी। तब दक्षिण के राज्य इस पर आपत्ति जताते थे। उनका एतराज न सिर्फ हिंदी थोपे जाने को लेकर था, बल्कि यह शिकायत भी जुड़ी थी कि शिक्षा के सभी प्रमुख केंद्र उत्तर भारत में स्थित हैं। लेकिन पिछले चार दशकों में सारा कुछ उलट गया।

आज न सिर्फ देश के ज्यादातर प्रतिष्ठित शैक्षिक केंद्र दक्षिणी राज्यों में हैं, बल्कि दुनिया भर में हुए तकनीकी विकास का लाभ भी सबसे ज्यादा इन्हीं राज्यों के लोगों ने उठाया है। वहीं उत्तर भारत का हाल यह है कि महान अतीत वाले यहां के कई विश्वविद्यालय आज अराजकता के लिए जाने जाते हैं, और हिंदीभाषी लोग रोजी-रोजगार में काफी पीछे जा चुके हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि दक्षिण भारत भाषा की राजनीति से बचा रहा और अपनी भाषा-संस्कृति पर गर्व करने के साथ-साथ इसने अंग्रेजी के प्रति भी उदार भाव बनाए रखा।

शिक्षा का मकसद अंतत: मनुष्य को अपने समाज के अनुकूल बनाना है। ऐसी शिक्षा का क्या फायदा जो हमें अपने खोल में समेट दे/ सूचना क्रांति के दौर में अंग्रेजी विश्वव्यापी संवाद का माध्यम बनकर उभरी है। आधुनिक तकनीक और कार्य-व्यापार के साथ सामंजस्य बिठाने में इसकी उपयोगिता जगजाहिर है। चीन और दक्षिण-पूर्वी एशिया में अंग्रेजी सीखने की होड़ मची हुई है। ऐसे में दुनिया के साथ हमकदम होने के लिए अंग्रेजी पढ़ाई जानी चाहिए। अपनी व्यावहारिक जरूरतों के लिए किसी भाषा को अपनाना अपनी मातृभाषा से विमुख होना नहीं है। अंग्रेजी में अच्छी गति बनाकर भी हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़े रह सकते हैं।

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  1. 📌 MAN KI BAAT : केंद्र सरकार अपनी नई शिक्षा नीति में प्राइमरी के स्तर पर अंग्रेजी की पढ़ाई बंद कर सकती है, क्योंकि एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार न्यास ने सुझाव दिया है कि पांचवीं तक की पढ़ाई मातृभाषा में.................
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/10/man-ki-baat_24.html

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