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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

CHILDREN : सरकारी बस्ता खाली, प्राइवेट हुआ भारी, नौनिहालों को बीमार बना रहा है बस्ते का बोझ, बस्ते का भार बच्चे के वजन से कम होना चाहिए, बच्चे के वजन से बस्ता भारी होने पर गर्दन व रीढ़ की हड्डियों में आगे चलकर समस्या उत्पन्न होगी और बच्चे का शारीरिक विकास रुक जाएगा - शारीरिक विकास जिला अस्पताल के डा. ए.वी. त्रिपाठी

CHILDREN : सरकारी बस्ता खाली, प्राइवेट हुआ भारी, नौनिहालों को बीमार बना रहा है बस्ते का बोझ, बस्ते का भार बच्चे के वजन से कम होना चाहिए, बच्चे के वजन से बस्ता भारी होने पर गर्दन व रीढ़ की हड्डियों में आगे चलकर समस्या उत्पन्न होगी और बच्चे का शारीरिक विकास रुक जाएगा - शारीरिक विकास जिला अस्पताल के डा. ए.वी. त्रिपाठी

अभिभावक भी कम जिम्मेदार नहीं : बच्चों के भारी बस्ते के लिए अभिभावक भी बराबर के जिम्मेदार है। पीजी कालेज के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डा. महेश मणि त्रिपाठी कहते हैं कि स्कूल में पाठयक्रम के मुताबिक पुस्तकें न लाकर सभी पाठय पुस्तकें बच्चे हर रोज लेकर आते हैं। अभिभावकों को चाहिए कि वो बच्चों का बैग चेक कर उन्हीं पुस्तकों के साथ भेजें जिनकी संबंधित दिवस पढ़ाई होनी है।

जागरण संवाददाता, महराजगंज: केस एक- नगर पालिका परिषद महराजगंज के लोहिया नगर वार्ड निवासी एस.के. सिंह की बेटी श्रुति सिंह अभी आठ साल की है। नगर के एक प्रतिष्ठित इंग्लिश मीडियम स्कूल में कक्षा वन की छात्र है। उसका वजन अभी 12 किलो है। लेकिन उसके बैग का वजन 14 किलो हो चुका है। अभिभावक न चाहते हुए भी उसको 14 किलो का बस्ता लेकर स्कूल भेज रहे हैं।

केस दो- राजीव नगर वार्ड के रहने वाले राधेश्याम का बेटा शिवांस सात साल का हुआ। जब वह पांच साल का था तो मां बाप ने बड़ी हसरत के साथ उसे नगर के एक स्कूल में दाखिला करा दिया। कक्षा एक के इस छात्र के बस्ते का वजन 12 किलो हो चुका है। इसके पिता कहते हैं कि बस्ता खुद लेकर स्कूल जाता हूं। बस्ता इतना भारी है कि बच्चा इसे आसानी से उठा नहीं पाता है।

ये दो मामले उदाहरण मात्र हैं पर इस जिले में स्थित 268 मान्यता प्राप्त कान्वेंट स्कूलों के हर बच्चे का यही हाल है। जिले में स्थित 2260 स्नरकारी स्कूलों के बच्चों के बस्ते अभी खाली हैं। इन सरकारी स्कूलों के बच्चों को शैक्षणिक सत्र शुरू होने के दो माह बाद भी किताब व कापियां नहीं दी गयीं वहीं मान्यता प्राप्त 268 कांवेंट स्कूलों में बस्ते का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। इसका नुकसान हर बच्चा उठा रहा है और बचपन में ही उसकी गर्दन व रीढ़ की हड्डी कमजोर हो जाती है जो आगे चलकर बच्चे के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

वैसे जिले में करीब 500 ऐसे इंग्लिश मीडियम स्कूल भी हैं जिन्हें मान्यता नहीं मिली हैं और वे भी मोटी कमाई के चक्कर में बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। बस्ते का बोझ चाहे मान्यता प्राप्त स्कूल में हो या बिना मान्यता चल रहे स्कूलों में हर जगह भारी है। इस ओर न प्रशासन का ध्यान है और न ही बस्ते का बोझ बढ़ाने वाले प्राइवेट स्कूलों के प्रबंध तंत्र का। बस्ते का बोझ बढ़ने के लिए सीधे तौर पर प्राइवेट स्कूलों का प्रबंध तंत्र ही जिम्मेदार है। उसे बच्चों के स्वास्थ्य की जरा भी चिंता नहीं है।

बस्ते का बोझ कम करने के निर्देश : बीएसए जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी जावेद आलम आजमी ने कहा कि सभी प्राइवेट स्कूलों के प्रबंध तंत्र का निर्देश दिया है कि बस्ते का बोझ कम करें और बच्चे के स्वास्थ्य से खिलवाड़ न करें। इसके लिए अभिभावकों को भी ध्यान देना होगा और स्कूल से मिली समय सारिणी के अनुसार ही किताब व उत्तर पुस्तिका बैग में रखना होगा।

प्राइवेट स्कूलों को यह भी निर्देश दिया है कि उत्तर पुस्तिकाओं को कालेज में ही रखवा लें और होमवर्क की कापी ही बच्चों को घर ले जाने दे। बस्ते का वजन बढ़ने से बच्चे का रुक जाएगा शारीरिक विकास जिला अस्पताल के डा. ए.वी. त्रिपाठी ने कहा कि बच्चें के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि बस्ते का भार बच्चे के वजन से कम होना चाहिए। बच्चे के वजन से बस्ता भारी होने पर गर्दन व रीढ़ की हड्डियों में आगे चलकर समस्या उत्पन्न होगी और बच्चे का शारीरिक विकास रुक जाएगा। वह हमेंशा कमर व गर्दन के दर्द से पीड़ित रहेगा। इसओर अभिभावकों के साथ ही स्कूलों के प्रबंधक व प्रधानाचार्य को भी ध्यान देना होगा।

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  1. 📌 CHILDREN : सरकारी बस्ता खाली, प्राइवेट हुआ भारी, नौनिहालों को बीमार बना रहा है बस्ते का बोझ, बस्ते का भार बच्चे के वजन से कम होना चाहिए, बच्चे के वजन से बस्ता भारी होने पर गर्दन व रीढ़ की हड्डियों में आगे चलकर समस्या उत्पन्न होगी और बच्चे का शारीरिक विकास रुक जाएगा - शारीरिक विकास जिला अस्पताल के डा. ए.वी. त्रिपाठी
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/08/children.html

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