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MAN KI BAAT : सरकारी कर्मचारियों के सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद बाबुओं की ढाई गुना बढ़ी पगार का.......हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि ऐसे कर्मचारियों के वेतन में अब वृद्धि नहीं होगी, जिसका प्रदर्शन तय मानकों के...............

मन की बात : सरकारी कर्मचारियों के सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद बाबुओं की ढाई गुना बढ़ी पगार का.......हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि ऐसे कर्मचारियों के वेतन में अब वृद्धि नहीं होगी, जिसका प्रदर्शन तय मानकों के...............

सरकारी कर्मचारियों के सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद बाबुओं की ढाई गुना बढ़ी पगार का बोझ अब जनता के सिर पर आ गया है। आम आदमी की आमदनी बढ़ नहीं रही है, लेकिन उन पर लगने वाले करों का भार हर साल बढ़ता जाता है। हर दस साल के बाद जब सरकारी कर्मचारियों का वेतन लगभग ढाई गुना से ज्यादा हो जाता है तो आम आदमी की कमर टूट जाती है। 1947 में बने पहले वेतन आयोग में न्यूनतम वेतन 55 रुपए तय किया था। पिछले 70 साल में न्यूनतम वेतन 327 गुना बढ़ाकर 18 हजार रुपया हो गया। एक करोड़ सरकारी कर्मचारियों के लिए नए वेतनमान का लगभग सवा अरब भारतीयों के लिए कोई मतलब नहीं है क्योंकि इन बाबुओं को काम करने के लिए मजबूर करने की कोई व्यवस्था नहीं है।

हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि ऐसे कर्मचारियों के वेतन में अब वृद्धि नहीं होगी, जिसका प्रदर्शन तय मानकों के अनुसार नहीं होगा, पर यह बहुत कारगर कदम नहीं है। बाबुओं के वेतन की बढ़ोतरी का फैसला पहली जनवरी, 2016 से लागू होगा। इस फैसले का पूरी अर्थव्यवस्था पर बहुआयामी प्रभाव पड़ने की संभावना है क्योंकि केंद्र सरकार पर सालाना लगभग एक लाख करोड़ रुपए का भार पड़ेगा। जिसकी वसूली जनता पर टैक्स बढ़ाकर ही की जाएगी। इस फैसले के बाद राज्य सरकारें भी अपने कर्मचारियों का वेतन बढ़ाएंगी। पर इसके एवज में आम करदाता कुछ भी अपेक्षा नहीं कर सकते, क्योंकि कामकाज में सुधार की कोई गारंटी नहीं है।

चुनावों की उम्मीद और सौगातों के मौसम में जो दखल दी जाएगी, वह वेतन बढ़ाने की होगी, कामकाज पर जोर देने की नहीं। सुधारों की आवश्यकता और राजनीतिक इच्छाशक्ति के नितांत अभाव के बीच की खाई इससे ज्यादा चौड़ी पहले कभी नहीं रही। वेतन आयोग ने वेतन बढ़ाने की सिफारिशें की हैं, पर काम निकलवाने का कोई औजार कहीं नजर नहीं आ रहा है। नौकरशाही को और जवाबदेह बनाने की कोई व्यवस्था नहीं नजर आ रही। बस करदाता की व्यवस्था की सुस्ती के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी। इन सरकारी कर्मचारियों के कामकाज से जनता का कोई भी वर्ग संतुष्ट नहीं है। आम आदमी का जब भी किसी सरकारी विभाग से पाला पड़ता है तो उसकी जेब खाली हो जाती है। अपनी सार्वजनिक वितरण प्रणाली से हम बहुत बड़े पैमाने पर खाद्यान्नों का वितरण करते हैं। पर 40 फीसदी खाद्यान्न गरीबों तक नहीं पहुुंच पाता है। हमने गरीबों को सुरक्षा के तंत्र के तौर पर सबसे बड़ा गारंटीड मजदूरी रोजगार कार्यक्रम चलाया हुआ है। पर भारत में ऐसे कई इलाके हैं, जहां निर्धनतम लोगों को इस कार्यक्रम के तहत गारंटीड मजदूरी नहीं दी जाती है। हमने स्कूली बच्चों को दोपहर का भोजन देने का दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम चलाया है, 13 करोड़ बच्चे दोपहर का भोजन स्कूल में कर रहे हैं। पर कई स्थानों पर इस भोजन की मात्रा और गुणवत्ता काफी लचर है। हमारे पास सड़क निर्माण का एक बेहद विशाल कार्यक्रम है, लेकिन कई सड़कें इनती घटिया स्तर की बनाई गई हैं कि उन्हें हर पांच साल बाद फिर से बनानी पड़ती हैं और वे तीन-चार साल में गायब हो जाती हैं। यह बात किसी विपक्षी नेता ने नहीं कही है, बल्कि पिछली यूपीए सरकार के वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कही थी। अब राजनीतिक दलों की चिंता इस बात को लेकर नहीं है। राज्य कर्मचारी नए वेतनमान से खुश नहीं हैं। वे इससे ज्यादा की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस उनकी मांगों का समर्थन कर रही है। अन्य दल भी लगभग कर्मचारियों के साथ हैं। जनता की आवाज उठाने वाला कोई नहीं है। विडंबना यह है कि 2005 में यूपीए सरकार ने सचिवों की एक समिति जाहिर तौर पर यह देखने के लिए बनाई थी कि छठा वेतन आयोग बनाने की आवश्यकता भी है या नहीं। इस समिति का फैसला था कि इसकी आवश्यकता नहीं है।

समिति ने साफ कहा था कि केंद्र सरकार इस अतिरिक्त बोझ को झेल नहीं पाएगी और राज्य सरकारें 1997 में लागू की गई पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशों के असर से बस उबर ही रही हैं। लेकिन जाहिर तौर पर सरकार ने समिति के सुझावों की अनदेखी करने का फैसला किया। जनता छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के बोझ को किसी तरह बर्दाश्त कर रही थी कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों से बढ़े वेतन का बोझ उसके ऊपर आ गया है। आम आदमी की पीड़ा यह है कि इसका असर सिर्फ केंद्र सरकार तक सीमित नहीं रहेगा। इसका प्रभाव न केवल राज्यों तक जाएगा, बल्कि स्कूलों जैसी तमाम अर्धसरकारी संस्थाओं पर पड़ेगा। सिर्फ राज्य सरकारों पर इसका कुल प्रभाव लगभग 60 हजार करोड़ रुपए सालाना पड़ेगा। वैसे कर्मचारियों के लिए पेशकश बेहद लुभावनी है। सबसे निचले स्तर पर एक सरकारी कर्मचारी को पहले की अपेक्षा ढाई गुना यानी सात हजार की जगह 18 हजार रुपए मासिक मिलेंगे।

कैबिनेट सचिव का वेतन 90 हजार से बढ़ाकर ढाई लाख कर दिया गया है। पर जिस देश में 40 करोड़ से अधिक लोग दो डालर से भी कम में गुजर बसर करते हों, वहां दो करोड़ से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों पर एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का बोझ सरकारी खजाने पर पड़ेगा। सरकार में सबसे निचले स्तर के कर्मचारी को देश की प्रति व्यक्ति आय से दोगुनी आमदनी होगी। सरकारी अधिकारियों- कर्मचारियों की वेतन बढ़ोतरी पर इस तथ्य के मद्देनजर किसी को एतराज न होता कि निजी क्षेत्र भी लगातार चार बरस से 15 से 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दे रहा है और अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर सुधार से सरकारी कर्मचारियों की भी उम्मीदें बढ़ी हैं। लेकिन समानता यहीं खत्म नहीं हो जाती है। इससे आगे प्रदर्शन, कार्यकुशलता और जवाबदेही आती है, जिसके लिए किसी कर्मचारी को वेतन मिलता है। लेकिन आम धारणा है कि जो काम करता है, वह निजी क्षेत्र और जो रोड़े अटकाता है, वह सरकारी क्षेत्र।

ऐसे में सातवें  वेतन आयोग ने दो करोड़ सरकारी कर्मचारियों को 2016 के आरंभ से 23.6 फीसदी बढ़ोतरी के साथ जो वेतनमान देने की सिफारिश की है और जिससे खजाने पर एक लाख करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा, उससे सवा अरब आबादी के अधिकतर हिस्से को कोई फायदा नहीं होने वाला है। केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वेतन मद का खर्च बढ़ जाएगा। लेकिन उससे राजकाज सुधर जाएगा और सरकारी तंत्र में व्याप्त भयंकर भ्रष्टाचार में कोई कमी आएगी, इसकी जरा भी संभावना नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकारी कर्मचारियों का वेतन अच्छा होना चाहिए, लेकिन न्यायपूर्ण प्रणाली में काम करके दिखाने और पुरस्कार के मापदंड है।

अफसोस, ये मापदंड सरकारी कर्मचारियों पर लागू इसलिए नहीं किए जाते, क्योंकि नेता उन्हें जनता का काम करने वाले प्रशिक्षित तंत्र के बजाय महज ऐसा वोट बैंक मानते हैं, जिसे समय-समय पर चुग्गा डालने से चुनाव में वोट हासिल किए जा सकते हैं। यही वजह है कि पांचवें वेतन आयोग की सरकारी कर्मचारियों की 30 फीसदी कटौती के प्रस्ताव को सरकार ने ठुकरा दिया था। आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, सातवें वेतनमान के लागू हो जाने के बाद सरकारी कर्मचारियों का वेतन निजी कर्मचारियों से बहुत ज्यादा हो जाएगा और इससे समाज में विषमता और महंगाई दोनों बढ़ेंगी।

उदाहरण के लिए सरकारी स्कूल का एक अध्यापक 35 हजार रुपए मासिक वेतन पाता है और पढ़ाता भी नहीं है। जबकि निजी स्कूल का अध्यापक 3 से 6 हजार रुपए मासिक वेतन पाता है और पढ़ाता है। बच्चे भी सरकारी स्कूल जाने के बजाय निजी स्कूलों में ही पढ़ने जाते हैं। पर वित्त मंत्री अरुण जेटली इसे आर्थिक विकास दर से जोड़कर देख रहे हैं। इसके लिए वेतन आयोग और कुछ महीनों बाद वस्तु सेवा शुल्क यानी जीएसटी कानून का संयोग आजमाया जाएगा। इससे आर्थिक विकास की दर बढ़ेगी। पर वित्त मंत्री भी इस बात को मान रहे हैं कि बड़े मध्यम वर्ग के वेतन में भारी बढ़ोतरी से महंगाई की संभावना को इनकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन इससे अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचाने वाले तत्व ज्यादा हैं।

मसलन, लोगों के पास निवेश के लिए अतिरिक्त राशि होगी और सामान्य मांग बढ़ेगी, जो विकास दर को मजबूती देगा। जेटली के मुताबिक, बाजार में ज्यादा पैसा आए और इसका महंगाई पर असर न हो, ऐसा नहीं हो सकता। हालांकि सरकार को भरोसा है कि इस बार छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट को वर्ष 2006 से लागू किया गया था और उसके बाद कई वषोंर् तक महंगाई की दर दहाई में रही थी।

एसबीआई की शोध इकाई की तरफ से जारी रिपोर्ट संभावना जताती है कि महंगाई बढ़ेगी, लेकिन उसका असर बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं रहेगा, क्योंकि अर्थव्यवस्था पर आज के फैसले से कई फायदे होंगे। पर एक ऐेसे देश में जिसकी दो तिहाई से अधिक आबादी जिंदगी की जद्दोजहद परेशान हो, बड़े पैमाने पर गरीबी और बेरोजगारी हो, वहां दो करोड़ लोगों का वेतन आम आदमी की औसत आमदनी से कई गुना अधिक हो तो यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है। इसमें किसान, मजदूर, बुनकर, छोटे-मोटे कारोबारी शामिल हैं। मेहनतकश जनता को दोनों वक्त दाल-रोटी भी नसीब न हो और कुछ लोग लखपति से करोड़पति बनते जाएं तो ऐसे समाज में शांति कैसे स्थापित हो सकती है? सरकारी कर्मचारी, सांसद, विधायक, पार्षद, सब अपना अपना वेतन बढ़ा लेते हैं और आम जनता बस देखती ही रहती है। आखिर वह कब तक इंतजार करेगी?

(लेखक हिंदी विश्वकोश के सहायक संपादक रहे हैं)
- निरंकार सिंह

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  1. 📌 MAN KI BAAT : सरकारी कर्मचारियों के सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद बाबुओं की ढाई गुना बढ़ी पगार का.......हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि ऐसे कर्मचारियों के वेतन में अब वृद्धि नहीं होगी, जिसका प्रदर्शन तय मानकों के...............
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/07/man-ki-baat_28.html

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