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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

विद्यालय भ्रमण के दौरान मैंने पाया कि अधिकांश विद्यालयों का वातावरण नीरस और भयग्रस्त है। अध्यापक और विद्यार्थियों के बीच संवादहीनता की स्थिति दिखाई पड़ी तो विचार मंथन के बाद समझ आया कि संवादहीनता नवाचारी प्रवृति से खत्म करने……………

विद्यालय भ्रमण के दौरान मैंने पाया कि अधिकांश विद्यालयों का वातावरण नीरस और भयग्रस्त है। अध्यापक और विद्यार्थियों के बीच संवादहीनता की स्थिति दिखाई पड़ी तो विचार मंथन के बाद समझ आया कि संवादहीनता नवाचारी प्रवृति से खत्म करने……………

रचनाधर्मी शिक्षाधिकारी "आकाश सारस्वत जी की कहानी उन्हीं की जुबानी!!!
सैल्यूट सर!!!
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अगस्त 2010 में मैंने उत्‍तराखण्‍ड के बागेश्वर जनपद के गरूड़ विकासखंड में कार्यभार ग्रहण किया। अपने विद्यालय भ्रमण के दौरान मैंने पाया कि अधिकांश विद्यालयों का वातावरण नीरस और भयग्रस्त है। अध्यापक और विद्यार्थियों के बीच संवादहीनता की स्थिति दिखाई पड़ती थी। विद्यार्थी शिक्षकों से प्रश्न पूछने पर हिचकते थे। संवादहीनता खत्म करने के लिए मैंने विद्यालयों में बाल शिकायत व सुझाव पेटिका का प्रयोग प्रारम्भ करवाया। ताकि बच्चे अपने मन की बात शिक्षक तक पहुँचा सकें तथा समय-समय पर उन बातों पर चर्चा-परिचर्चा कर मैत्रीपूर्ण वातावरण का निर्माण किया जा सके।

"शुरुआती तीन महिनों तक इस दिशा में कोई खास सफलता नहीं मिली किन्‍तु अध्यापकों के प्रयासों से विद्यार्थियों ने अपने मन की बात उस पेटिका में डालनी शुरू की। उनकी मन की झिझक भी कम होने लगी। अध्यापक और विद्यार्थियों के बीच निकटता बढ़ने लगी। धीरे-धीरे यह प्रयोग समस्त राजकीय प्राथमिक विद्यालयों के साथ-साथ हाईस्कूल और इन्‍टर कालेजों में भी प्रारम्भ हो गया। छह माह होते-होते सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे। बड़े रोचक अनुभव मिलने लगे।"

यहाँ एक उदाहरण देना चाहूँगा। बात राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय चोरसों की है। एक बच्चे ने लिखा कि मुझे गणित से डर लगता है तो वहाँ कार्यरत शिक्षक हेम चन्‍द्र लोहुमी ने पहाड़े सिखाने की ऐसी  विधि विकसित की कि सभी बच्चे खेल-खेल में पहाड़े याद करने लगे और धीरे-धीरे बच्चों के मन से गणित का भूत दूर होने लगा। ऐसे ही कुछ प्रयास राजकीय उच्‍च प्राथमिक विद्यालय, पिगंलो में भी किए गए। अप्रैल 2011 में उक्त दोनों विद्यालयों के शिक्षक हेम चन्‍द्र लोहुमी और सुरेश चन्‍द्र सती सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण माड्यूल निर्माण कार्यशाला में देहरादून गए। वहाँ पर उन्होंने इस प्रयोग से सम्‍बन्धित अनुभवों को साझा किया। उन पर व्यापक चर्चा-परिचर्चा हुई। अन्‍ततः इस प्रयोग को सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण के माड्यूल में शामिल कर लिया गया।

वर्ष  2011-12 से उत्तराखण्‍ड के सभी प्राथमिक विद्यालयों में बॉक्स फाइल नाम से इसे लागू किया गया। वर्ष 2012-13 में उच्च प्राथमिक विद्यालयों में भी लागू कर दिया गया।  बॉक्स फाइल के माध्यम से विद्यार्थियों में सृजनात्मक क्षमता विकास को प्रोत्साहित किया गया। प्रत्येक विद्यार्थी की अलग-अलग फाइल बनाई गई। इसमें विद्यार्थी की कविता, कहानी,पेंटिंग एवं अन्य विचारों को संग्रहित किया जाने लगा। इससे बच्चों की अभिरूचियों और आदतों के विषय में अध्यापकों को पता चलने लगा। अध्यापक और विद्यार्थियों की पारस्परिक दूरियाँ भी कम होने लगीं। पठन-पाठन का बेहतर वातावरण बनने लगा। बॉक्स फाइल के लिए परियोजना की ओर से प्राथमिक में बीस रुपए और उच्च प्राथमिक में तीस रुपए प्रति विद्यार्थी धनराशि दी जाती थी।

बाद में यह धनराशि बन्‍द हो गई फलस्वरूप यह योजना भी सरकार की अन्य योजनाओं की तरह ही दम तोड़ने लगी। लेकिन हमने इस प्रयोग को  विकास खण्‍ड के हर विद्यालय में जारी रखा। उसी दौरान जिलाधिकारी और क्षेत्रीय विधायक के निर्देश पर मुझे बागेश्वर जनपद के अति दुर्गम विकास खण्‍ड कपकोट की चरमराती शिक्षा व्यवस्था को सम्‍भालने के लिए वहाँ का अतिरिक्त कार्यभार दे दिया गया। पहले की अपेक्षा अब मेरा कार्यभार दुगने से भी अधिक हो गया।

वहाँ भी बॉक्स फाइल पर फोकस करते हुए सभी विद्यालयों में शुरू करवाया। लेकिन बाद में इसकी समीक्षा करने पर पाया कि प्रत्येक विद्यार्थी की प्रतिभा के विषय में मात्र अध्यापक को ही जानकारी हो रही थी। उसके अन्य साथी और अध्यापक उससे अनजान ही रहते थे। बाद में सभी के संज्ञान में लाने के उद्देश्य से एक चार्ट पेपर पर इसे चिपकाना शुरू किया तथा दीवार पत्रिका का उदय हुआ। यह कार्य अक्टूबर 2014 से शुरू हुआ। 

इसी बीच कपकोट विकासखंड के राजकीय उच्‍च प्राथमिक विद्यालय, सिमगढ़ी में कार्यरत अध्यापक हेम चन्‍द्र पाठक ने बताया कि पिथौरागढ़ जनपद के नवाचारी शिक्षक महेश पुनेठा काफी समय से दीवार पत्रिका पर कार्य कर रहे हैं तथा वहाँ के अन्य कई शिक्षकगण भी स्वैच्छिक रूप से कार्य कर रहे हैं। तब एक व्यापक कार्य योजना बनाकर गरूड़ और कपकोट के  समस्त विद्यालयों में युद्धस्तर पर दीवार पत्रिका पर काम  शुरू हुआ। अक्टूबर 14 में हेम चन्‍द्र लोहुमी और हेम चन्‍द्र पाठक ने दीवार पत्रिका का प्रथम अंक निकाला। उसके बाद दोनों विकास खण्‍डों के लगभग चार सौ  विद्यालयों में दीवार पत्रिका निकालने की दिशा में प्रयास प्रारम्भ हो गए।

अभी तक लगभग दो सौ पच्चीस से अधिक विद्यालयों से दीवार पत्रिका विधिवत निकलने लगी हैं। सिमगढ़ी, गोलना, दुकुरा आदि विद्यालयों ने तो अंग्रेजी भाषा में भी दीवार पत्रिका के अंक निकाले हैं। आगे संस्कृत और कुमाऊंनी में भी अंक निकालने की योजना है। 

विद्यालयों में बाल मैत्रीपूर्ण वातावरण का निर्माण तथा आनंद के साथ सीखने में दीवार पत्रिका की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है तथा खेल-खेल में शिक्षा की भावना को भी बल मिल रहा है। बहुभाषायी ज्ञान समृद्ध हो रहा है। बच्चों की सृजनात्मक क्षमता विकास व प्रतिभा प्रदर्शन में यह एक महत्वपूर्ण उपकरण बनती जा रही है। विद्यालयों में पठन-पाठन का बड़ा ही मनमोहक वातावरण भी निर्मित होने लगा है। न केवल विद्यार्थियों में अपितु अध्यापकों में भी स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का भाव उत्पन्न हो रहा है। दीवार पत्रिका अभियान से अभिभावकों व समुदाय को भी जोड़ा जा रहा है जिससे वि़द्यालय व समुदाय की  दूरी भी कम हो रही है तथा संवाद का बेहतर वातावरण बन रहा है। साथ ही दीवार पत्रिका को पाठ्यक्रम से कैसे जोड़ा जाए, इस दिशा में अनेक कर्मठ अध्यापक काम कर रहे हैं।

आशा है कि इस अभियान से शिक्षा को एक नवीन दिशा व दशा मिलेगी। नवाचारी प्रवृत्ति के कारण विद्यालयों का नीरस वातावरण भी सरस बनेगा। साथ ही विद्यार्थियों के सामान्य ज्ञान में भी अधिक वृद्धि होगी। उनमें गणितीय व वैज्ञानिक अभिरुचि पैदा होगी।
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(श्री आकाश सारस्‍वत जी उत्‍तराखण्‍ड शिक्षा विभाग में शिक्षा अधिकारी हैं। उनका लिखा यह आलेख फेसबुक पर 'दीवार पत्रिका: एकअभियान' में प्रकाशित हुआ है। हम इसे महेश पुनेठा के सौजन्‍य से यहाँ प्रकाशित कर रहे है)

   ~द्वारा सहयोग भाई संजय वत्स जी

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