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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

सात हफ्ते में प्राइमरी टीचरों की हो भर्ती : उत्तर प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट का निर्देश;स्नातक में पचास फिसदी अंक जरूरी-

यूपी सरकार 7 हफ्ते में प्राइमरी टीचरों की भर्ती करे : सुप्रीम कोर्ट-

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने यूपी में 72 हजार प्राइमरी टीचरों की भर्ती सात हफ्ते में पूरा करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि यूपी सरकार खाली सीटों के लिए 4 हफ्ते में पब्लिक नोटिस जारी करे और अभ्यर्थी को जॉइन करने के लिए अगले तीन हफ्ते का समय दे। इस समयसीमा में नौकरी जॉइन न करने वाले अभ्यर्थी को दूसरा मौका नहीं मिलेगा। उसका चयन रद्द माना जाएगा। कोर्ट ने यूपी सरकार से पूरे प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में टीचरों के खाली पदों की संख्या भी हलफनामा दायर कर बताने को कहा है। 


इस मामले की पिछली सुनवाई (17 दिसंबर) पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश दिया था कि जनरल कैटिगरी के जिन आवेदकों के टीईटी में 70 फीसदी मार्क्स हैं, उनकी नियुक्ति की जाए। एससी, एसटी और ओबीसी की नियुक्ति 65 फीसदी नंबरों पर की जाए। अदालत ने इसकी रिपोर्ट 25 फरवरी को देने को कहा था। बुधवार को यूपी सरकार ने कोर्ट को बताया कि 72 हजार 825 प्राइमरी टीचरों की भर्ती में 29 हजार 194 भर्तियां बाकी हैं। प्रक्रिया चल रही है। इसमें कई मामले ऐसे हैं, जिसमें अभ्यर्थी अब तक भर्ती की औपचारिकताएं पूरी करने नहीं आए हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार 4 हफ्ते में पब्लिक नोटिस जारी करे। 3 हफ्ते में जॉइन करने का वक्त दिया जाए। अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 22 अप्रैल की तारीख तय की है। 


तीन लाख पद खाली होने का अनुमान पिछली सुनवाई के दौरान अनुमान के आधार पर कोर्ट को बताया गया था कि यूपी में टीचरों के करीब तीन लाख पद खाली पड़े हैं। इस पर जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने हैरानी जताई थी। बेंच ने कहा था कि जो वैकेंसी बताई जा रही है, वह काफी ज्यादा है। शैक्षणिक वातावरण को बिना किसी कारण से खराब होने नहीं दिया जा सकता। शिक्षा का अधिकार कानून कहता है कि सभी को फ्री और अनिवार्य शिक्षा होनी चाहिए। वहीं यूपी में आश्चर्यजनक रूप से इतनी बड़ी संख्या में पद खाली पड़े हैं 


यह है मामला यूपी में 2009 में नियम में 12वां संशोधन कर सरकार ने टीईटी की मेरिट के आधार पर टीचरों की भर्ती का नियम तय किया। 2011 में दूसरी सरकार ने फिर संशोधन किया और कहा कि शैक्षिक योग्यता की मेरिट को तरजीह दी जाएगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट की डबल बेंच ने 12वें संशोधन को वैध बताकर टीईटी की मेरिट पर टीचरों की भर्ती का आदेश दे दिया। यूपी सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दिसंबर, 2013 में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। सुनवाई के दौरान यह मुद‌्दा उठाया गया कि एससी, एसटी व ओबीसी कैटेगरी में 65 फीसदी नंबर होने की शर्त के कारण सीटें नहीं भर पा रही हैं। एनसीटीई ने जवाब दिया न्यूतनम योग्यता 60 फीसदी तय हो सकती है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा है कि अगर 65 फीसदी मार्क्स वाले एससी, एसटी व ओबीसी आवेदकों से सीटें नहीं भरतीं तो वे इनके लिए न्यूनतम योग्यता 60 फीसदी कर सकते हैं।

         खबर साभार : नवभारत टाइम्स

सात हफ्ते में प्राइमरी टीचरों की हो भर्ती : उत्तर प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट का निर्देश;स्नातक में पचास फिसदी अंक जरूरी-

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश सरकार ने करीब 43 हजार प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति कर ली है। सुप्रीम कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर राज्य सरकार ने कहा है कि बाकी बचे करीब 29 हजार शिक्षकों की नियुक्ति जल्द हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने बाकी बचे शिक्षकों की नियुक्ति सात हफ्ते के भीतर करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद उत्तर प्रदेश में टीचर इलिजिबिलिटी टेस्ट (टीईटी) में प्राप्त अंकों के आधार पर मेरिट लिस्ट तैयार कर करीब 72825 शिक्षकों की भर्ती होनी है।

न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ केसमक्ष स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर यूपी सरकार ने कहा है कि 43561 शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पूरी कर ली गई है और करीब 29 हजार शिक्षकों की नियुक्ति की जानी है। सरकार ने कहा कि सभी अभ्यर्थियों को पत्राचार किया जा चुका है लेकिन करीब 29 हजार ने अब तक संपर्क नहीं किया है।

इस पर पीठ ने राज्य सरकार से कहा है शेष भर्तियों के लिए वह चार हफ्ते के भीतर विज्ञापन प्रकाशित करें और उसके तीन हफ्ते बाद शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पूरी कर लें। पीठ ने कहा कि इस अवधि के दौरान अगर अभ्यर्थी फिर भी नहीं आते हैं तो वे अयोग्य ठहरा दिए जाएंगे।

शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि सामान्य वर्ग में टीईटी में 70 फीसदी अंक और आरक्षित वर्ग में 65 फीसदी हासिल करने वाले अभ्यर्थियों को शिक्षक नियुक्त किया जाए। राज्य सरकार को इसके लिए छह हफ्ते का वक्त दिया गया था। वास्तव में विवाद इस बात को लेकर चल रहा था कि शिक्षकों की भर्ती सिर्फ टीईटी में प्राप्त अंकों के आधार पर हो या टीईटी और क्वालिटी मार्क्स (अकादमी योग्यता) के आधार पर हो।

सुनवाई के दौरान अदालत को जानकारी दी गई कि आरक्षित वर्ग के लिए तय किए गए 65 फीसदी की आहर्ता के कारण भी ऐसा हो रहा है। अभ्यर्थी नहीं आ रहे हैं। लिहाजा न्यूनतम अंक 65 फीसदी से 60 फीसदी कर दी जाए। इस पर पीठ ने कहा कि पूर्व मानकों के तहत अगर सीटें नहीं भरती है तो इसे 60 फीसदी किया जा सकता है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को हलफनामे के जरिए यह बताने के लिए कहा कि राज्य में कितने शिक्षकों के पद रिक्त हैं।

मायावती सरकार ने करीब 73 हजार शिक्षकों की भर्ती करने का निर्णय लिया था। सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर नियुक्ति का आधार टीईटी को रखा। टीईटी में सफल उम्मीदवारों को काउंसलिंग भी शुरू हो गई थी। इसके बाद सत्ता में आई सपा सरकार द्वारा अधिसूचना जारी कर इस नियम में बदलाव करने का निर्णय लिया गया। नए नियम केतहत टीईटी और क्वालिटी मार्क्स दोनों को नियुक्ति का आधार बनाया गया। छात्रों ने सरकार को इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने छात्रों के हक में फैसला देते हुए मायावती सरकार की अधिसूचना को सही ठहराया। जिसके बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी, जिसे दरकिनार कर दिया गया था।

     खबर साभार : अमरउजाला/हिन्दुस्तान/डीएनए

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