बेसिक शिक्षा विभाग में घपलों पर लगेगी लगाम
राब्यू, लखनऊ : बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से संचालित स्कूलों में बच्चों को दी जाने वाली यूनीफॉर्म, जूते-मोजे, स्कूल बैग और स्वेटर वितरण के नाम पर होने वाले ‘खेल’ पर अंकुश लगाने की तैयारी है। बच्चों की संख्या ज्यादा दिखाकर होने वाली इस बंदरबांट को रोकने के लिए विभाग इन चीजों के एवज में धनराशि को सीधे बच्चों के अभिभावकों के बैंक खातों में भेजने पर विचार कर रहा है। सर्व शिक्षा अभियान के राज्य परियोजना कार्यालय ने शासन को इस बारे में प्रस्ताव भेजा है। पाठ्यपुस्तकों और मिड-डे मील को इसके दायरे से बाहर रखा गया है।
परिषदीय विद्यालयों में कक्षा एक से आठ तक के बच्चों को सरकार प्रत्येक शैक्षिक सत्र में निश्शुल्क पाठ्य पुस्तकें, यूनीफॉर्म, जूते-मोजे, स्कूल बैग और स्वेटर देती है। प्रत्येक बच्चे के लिए दो जोड़े यूनीफॉर्म की खातिर 600 रुपये और स्वेटर के लिए 200 रुपये की दर से रकम आवंटित की जाती है। वहीं जूते-मोजे और स्कूल बैग की आपूर्ति के लिए टेंडर आमंत्रित किये जाते हैं। स्कूलों में बच्चों की संख्या ज्यादा दिखाकर इन वस्तुओं के वितरण की आड़ में सरकारी धन की बंदरबांट और कमीशनखोरी के आरोप लगते रहे हैं। वहीं बच्चों को खराब गुणवत्ता के जूते-मोजे, यूनीफॉर्म और स्वेटर दिये जाने की शिकायतें भी मिलती रही हैं। स्कूल के बच्चों को सरकार की ओर से दी जाने वाली इन सौगातों की आड़ में पनपने वाले भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए बेसिक शिक्षा विभाग अब यूनीफॉर्म, जूते-मोजे, स्कूल बैग और स्वेटर का पैसा बच्चों के अभिभावकों के बैंक खाते में सीधे भेजने की योजना बना रहा है। ऐसी योजना गुजरात, बिहार समेत कुछ अन्य राज्यों में संचालित है। सर्व शिक्षा अभियान के राज्य परियोजना कार्यालय की ओर से शासन को इस बाबत भेजे गए प्रस्ताव में कहा गया है कि अभिभावक अपने बच्चों के लिए खरीदे गए इन सामानों को स्वप्रमाणित करेंगे और स्कूल के शिक्षक से भी इसका सत्यापन कराएंगे। शिक्षक सत्यापन कर इस आंकड़े को वेबपोर्टल पर फीड करेगा। इसके आधार पर अभिभावकों के बैक खाते में धनराशि भेजी जाएगी।
किस मद में कितना खर्च
यूनीफॉर्म >>: 950 करोड़ रुपये
स्वेटर >>: 300 करोड़ रुपये
जूते-मोजे >>: 185 करोड़ रुपये
स्कूल बैग >>: 150 करोड़ रुपये
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