SUPREME COURT : नियोजित शिक्षकों को सुप्रीम झटका समान काम का समान वेतन नहीं, अब केवल शिक्षक व संगठनों के पास बचे हैं दो विकल्प
पटना : बिहार के नियोजित शिक्षकों को समान काम के बदले समान वेतन नहीं मिल सकता। सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को बदल दिया है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अभय मनोहर सप्रे और न्यायाधीश उदय उमेश ललित की खंडपीठ ने 3.69 लाख नियोजित शिक्षकों और पुस्तकालध्यक्षों को समान काम का समान वेतन मामले में अपना फैसला सुनाया और समान वेतन देने से इन्कार करते हुए पटना हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया।
पटना हाईकोर्ट ने नियोजित शिक्षकों को समान काम का समान वेतन देने का आदेश 31 अक्टूबर 2017 को बिहार सरकार को दिया था। इससे पहले बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ ने 2009 में नियोजित शिक्षकों को समान काम का समान वेतन देने के मामले में याचिका हाईकोर्ट में दायर की थी। जब हाईकोर्ट ने शिक्षकों के पक्ष में फैसला दिया तब नवंबर में हाईकोर्ट के फैसले को बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। जिसे मंजूर कर लिया गया। मामले में बिहार सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट में 30 अक्टूबर 2018 को सुनवाई पूरी हुई।
पटना : सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील अभय कुमार ने बताया कि कोर्ट के फैसले के बाद नियोजित शिक्षकों और संगठनों के पास दो विकल्प बचे हैं। पुनर्विचार याचिका और क्यूरेटिव पिटीशन के माध्यम से अपना पक्ष रख सकते हैं। इसके माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में अपने पक्ष को मजबूती से रख सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर आगे का रास्ता थोड़ा ज्यादा संजीदा होगा। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार आरटीई के प्रावधान के तहत अपना पक्ष रखा है। लेकिन, सभी शिक्षक आरटीई के दायरे में नहीं आते हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में कई बिंदु चिह्न्ति किए हैं। जिसे आधार बनाकर अपील की सशक्त गुंजाइश बनती है।
क्यूरेटिव पिटीशन
पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद भी नियोजित शिक्षक उपचार याचिका यानी क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल कर सकते हैं। हालांकि, यह थोड़ा मुश्किल होता है। इसके लिए कोर्ट को बताना होगा कि वह किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दे रहे हैं। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठतम जजों और जिन जजों ने फैसला सुनाया है उनके पास भी मामले को भेजा जाएगा। यदि बेंच के जज इस बात को मानते हैं कि मामले पर दोबारा सुनवाई होनी चाहिए तब क्यूरेटिव पिटीशन उन जजों के पास भेज दी जाती है।
संगठनों की दलील
एक ही स्कूल में नियमित और नियोजित शिक्षक कार्य करते हैं। राज्य सरकार नियमित शिक्षकों को 40 हजार जबकि नियोजित शिक्षकों को 20 हजार रुपये देती है। यहां तक कि चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों को भी भी नियोजित शिक्षकों को ज्यादा वेतन दिया जाता है।
सभी पक्षों की अलग-अलग हुई थी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की विशेष अपील पर 25 दिनों तक सुनवाई हुई थी। तब संबद्ध मामले से जुड़े सभी पक्षों ने अपना-अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रखा था। इसमें बिहार सरकार की, केंद्र सरकार और मामले सम्बद्ध सभी शिक्षक संगठन शामिल थे। दिलचस्प यह कि सुप्रीम कोर्ट में हर पक्ष की अपने पक्ष में अलग-अलग अपनी-अपनी दलीलें रखी थीं और इसके लिए हर पक्ष ने नामी-गिरामी अधिवक्ता रखे थे। सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अभय मनोहर सप्रे और न्यायाधीश उदय उमेश ललित की खंडपीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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