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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT : मिड-डे मील की रसोई पर जब हम सब चर्चा करते हैं तो सरकार को चाहिए कि महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए रसोई स्कूल से कुछ दूरी पर बने जो सफाई व सुरक्षा के मानदंडों को ध्यान में रखकर बनाई जाए, साथ ही सरकार को शीघ्र ही मिड-डे मील कर्मियों के वेतन में कम से कम दो-गुनी वृद्धि.....

MAN KI BAAT : मिड-डे मील की रसोई पर जब हम सब चर्चा करते हैं तो सरकार को चाहिए कि महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए रसोई स्कूल से कुछ दूरी पर बने जो सफाई व सुरक्षा के मानदंडों को ध्यान में रखकर बनाई जाए, साथ ही सरकार को शीघ्र ही मिड-डे मील कर्मियों के वेतन में कम से कम दो-गुनी वृद्धि.....



भारत डोगरा


मध्याह्न भोजन या मिड-डे मील की व्यवस्था आठवीं कक्षा तक के सरकारी स्कूलों में हो चुकी है। अब आगे की तैयारी यह होनी चाहिए कि इस स्कीम में कुछ जरूरी सुधार शीघ्र से शीघ्र किए जाएं, ताकि इसका बेहतर लाभ मिल सके। एक बड़ा मुद्दा यह है कि मिड-डे मील भोजन बनाने की रसोई को सुधारना चाहिए। कहीं सौ, तो कहीं चार सौ व कहीं इससे भी अधिक बच्चों का भोजन बनता है। इतने बड़े पैमाने पर भोजन पकाने की व खाद्य सामग्री तथा बर्तनों को सुरक्षित ढंग से रखने की जो व्यवस्था होनी चाहिए, वह अधिकांश स्थानों पर नजर नहीं आती है। ऐसी सुविधाओं के अभाव में भोजन पकाने में सफाई का पूरा ध्यान रखना संभव नहीं है और यही वजह है कि मिड-डे मील दूषित होने व इन्हें खाने वाले बच्चों के बीमार पड़ने के समाचार समय-समय पर मिलते रहते हैं।


इसके अतिरिक्त प्रतिदिन बड़े पैमाने पर भोजन पकाने की प्रक्रिया को सुरक्षित रखना बहुत जरूरी है। अधिकांश स्कूलों में रसोई कक्षाओं के बहुत पास होती है। अतः सुरक्षा की सही व्यवस्था और भी जरूरी है। जहां साधारण चूल्हे का उपयोग होता है, वहां धुंआ अधिक होता है व गैस चूल्हे में कभी-कभी गैस लीक होने की शिकायत मिलती है। जो गैस का चूल्हा 400 बच्चों का खाना बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है, यदि वही चूल्हा 90 बच्चों वाले स्कूल को दे दिया जाता है, तो उसमें भी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। अतः विभिन्न स्कूल की आवश्यकताओं के अनुसार ही उपकरण होने चाहिए। उनके सुरक्षित उपयोग की पूरी जानकारी संबंधित कर्मियों को होनी चाहिए व समय-समय पर सुरक्षा की दृष्टि से जांच होती रहनी चाहिए।

रसोई स्कूल में ही होगी या उससे कुछ दूरी पर, यह भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। सुरक्षा की दृष्टि से बेहतर निर्णय यह है कि रसोई स्कूल से कुछ दूरी पर बने, जो सफाई व सुरक्षा के मानदंडों को ध्यान में रखकर बनाई जाए। इस बारे में जो निर्णय हो, उसमें यह छूट देनी होगी कि स्थानीय स्थितियों को ध्यान में रखकर इस पर अमल किया जाए। नए नियमों के कारण मिड-डे मील में कोई रुकावट नहीं आए।

एक दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि मिड-डे मील पकाने वाली महिलाओं के वेतन में वृद्धि की जाए। अनेक स्कूलों में पूछने पर पता चला कि उन्हें मात्र 1,250 रुपये प्रतिमाह का वेतन मिल रहा है यानी मात्र 41 रुपये प्रतिदिन। ऐसी प्रति महिला पर लगभग एक सौ बच्चों का भोजन पकाने की जिम्मेदारी हो सकती है। भोजन पकाने से पहले वे रसोईघर में झाड़ू लगाती हैं। कई बार उन्हें कक्षाओं में भी झाड़ू लगाने को कह दिया जाता है। बीच-बीच में चाय बनाने जैसे दूसरे काम भी बता दिए जाते हैं। बच्चों की थाली बच्चे स्वयं धोते हैं, फिर भी उन्हें धो-पोंछकर रखने और रसोई पकाने वाले बड़े बर्तनों की सफाई भी उन्हीं की जिम्मेदारी होती है। इसके अलावा समय पर बच्चों को खाना परोसना तो उनका काम है ही। इतने काम के बाद प्रति दिन मात्र 41 रुपये वेतन दिया जाना कम ही नहीं, गैर-कानूनी भी है। सरकार स्वयं अपने न्यूनतम मजदूरी कानून की अवहेलना कर रही है। सरकार को शीघ्र मिड-डे मील कर्मियों के वेतन में कम से कम दोगुनी वृद्धि करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त सराहनीय काम करने वाले कर्मियों को सम्मानित भी किया जाना चाहिए।

मिड-डे मील के लिए कच्ची सामग्री यथासंभव स्थानीय किसानों व स्वयं सहायता समूहों से ही लेनी चाहिए। किसानों को इसके लिए जैविक खाद्य पदार्थ उपलब्ध करवाने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए। बच्चे बागवानी में सलाद की सब्जियां व फल लगाएं, तो इसका समावेश भी मिड-डे मील में होना चाहिए।

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