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MAN KI BAAT : गिनना क्या होता है?’ और ‘किन शर्तों के पूरी होने पर कहेंगे कि हरिलाल को गिनना आता है जैसे सवाल बहुत सरल......?

MAN KI BAAT : गिनना क्या होता है?’ और ‘किन शर्तों के पूरी होने पर कहेंगे कि हरिलाल को गिनना आता है जैसे सवाल बहुत सरल......?



“गिनना क्या होता है?” और “किन शर्तों के पूरी होने पर कहेंगे कि हरिलाल को गिनना आता है?” जैसे सवाल बहुत सरल लगते हैं। कोई भी आम आदमी सवालों के ठीक-ठाक जवाब दे सकता है। इसलिए गिनना जैसी सरल अवधारणा पर शिक्षकों को कुछ पढ़ने-सोचने को कहना उनके समय की बर्बादी लगती है। पर दुर्भाग्य से बच्चों को गिनना सिखाने में और यह जाँचने में कि किसी बच्चे को गिनना आता है या नहीं ‘गिनने’ की हमारी समझ बोध का परिचय न तो शिक्षक देते हैं और न ही माता-पिता।

बहुत सारे विद्यालयों में गिनती रटवाकर यह समझ लिया जाता है कि बच्चों को गिनना आ गया। जोर गिनती बोलने पर होता है, चीजों की संख्या बता पाना कहीं छूट जाता है। माता-पिता बच्चे को गिनती बोलते देखकर ही खुश हो जाते हैं। गिनने की यह आधी-अधूरी रटन विद्या आगे गणित सिखाने के आड़े आती है।

गिनती सिखाने में आने वाली इस आम समस्या से शिक्षाविद और शिक्षक विद्वानों के विशेषज्ञ इस कदर घबराते हैं (घबराना वाजिब है) कि वे गिनने और गिनना की ऐसी परीक्षाएँ करने लगते हैं जो इतनी व्यापक हो जाती हैं कि उनमें जोड़-बाकी और संख्याओं का आरोह-अवरोह भी शामिल हो जाते हैं (ये नाजायज है)। दूसरी ओर गिनती सीख पाने के लिए बच्चे की जरूरी समझ और दक्षताओं को भी गिनती का हिस्सा मानने लगते हैं। जहाँ माता-पिता और बहुत से शिक्षक गिनने की धारणा को बहुत संकुचित कर देते हैं वहीं विधि विशेषज्ञ उसे बेहद व्यापक और अकारण जटिल कर देते हैं। अतः जहाँ तक कक्षा में पढ़ने के लिए काम में आने वाली समझ का मामला है वह वैसी उलझी-फुलजी रहती है जैसी पहले थी।

“गिनती कर पाने” की धारणा पर इस खींचा-तानी के चलते लगता है इस मुद्दे पर ठहरकर ठीक से सोचने कि कोशिश करना उपयोगी होगा, चाहे बात कितनी भी सरल लगे या कुछ लोगों को कितनी भी गूढ़ लगे।

ऊपर हमने बात दो सवालों से शुरू की है-‘गिनना क्या होता है?’ और ‘किन शर्तों के पूरी होने पर कहेंगे कि हरिलाल को गिनना आता है?’ इनमें दूसरा सवाल सरल है, तो हम पहले दूसरे सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे।

मान लीजिए हरिलाल आपकी शाला का कोई छात्र है और यह सवाल आप उसने कितना सीखा है इसको जानकर आगे सीखने में मदद करने के लिए कर रहे हैं। तो साफ है कि आप हरिलाल से गिनवाकर देखें? क्या उससे गिनती बुलवाने भर से पता चल जाएगा कि उसे गिनना आता है या नहीं?  हो सकता है कुछ शिक्षकों को गिनती बोल देना काफी लगे गिनना आने के लिए।

अब मान लीजिए कोई दूसरा शिक्षक हरिलाल को कुछ कंचे देकर कहे कि बताओ ये कितने हैं? और हरिलाल न बता सके। लेकिन उससे यह कहने पर कि सौ तक गिनती बोलो वह बिना गलती किए गिनती बोल दे। तो?

 क्या आप मानेंगे कि उसे गिनना आता है? शायद नहीं? क्योंकि गिनना आने का एक मतलब तो यही है कि किसी समूह में चीजों की संख्या पता कर सके, और यह हरिलाल कर नहीं सकता। तो गिनना तो उसे नहीं आया है अभी।

मान लीजिए आपने उसको सिखाने की कोशिश की और अगले दिन (या 2 दिन बाद) वह दी गई चीजों की संख्या भी बता दे, और आप कहें कि अब तो उसे गिनना आ गया है।

पर आपका सन्‍देही शिक्षक साथी अब यदि एक नया सवाल पूछ ले हरिलाल से।  वह उसे कुछ कंचे देकर कहे कि इनमें से सत्ताईस (या कोई भी संख्या) कंचे मुझे निकाल कर दो। और हरिलाल जो कंचे निकालकर दे उनकी संख्या सत्ताईस के बजाय कुछ और हो। तो क्या उसको गिनना आ गया?

शायद अब भी नहीं-क्योंकि दी गई चीजों की संख्या बताने के साथ ही माँगी गई संख्या में चीजें देना भी आना चाहिए, नहीं तो गिनती अधूरी ही रहेगी। और आपने उसे फिर एक-दो दिन सिखाया। मान लीजिए अब हरिलाल ये तीन काम कुशलता से कर सकता है; एक से सौ तक बिना गलती किए गिनती बोलना, सौ तक के समूह में चीजों की संख्याएँ बताना और चीजों के बड़े ढेर में से सौ तक जितनी चीजों का चाहें, उतने का समूह बनाना।

ये तीनों काम करवाने के बाद आप दावा करें कि “हरिलाल को गिनना आता है” तो क्या आपका ये दावा ठीक है? कल्पना करें आपका वह सन्‍देह करने वाला साथी अब हरिलाल को उलझाने के लिए क्या सवाल कर सकता है? यदि वह आपके और हरिलाल के पीछे पूरी लगन से पड़ा है तो हरिलाल से सौ से आगे गिनती बोलने को कह सकता है या चीजें गिनने को कह सकता है और सौ से आगे हरिलाल को आता नहीं है। तो आपको अपने दावे को कुछ सीमित करना होगा, आप कह सकते हैं, “हरिलाल को सौ तक गिनना आता है”, यह तो कोई बड़ी समस्या नहीं हुई, बस बात थोड़ी साफ हो गई कि कहाँ तक गिनना आने का दावा है आपका।

पर मान लीजिए आपका सन्‍देही शिक्षक साथी हरिलाल को कंचे के दो समूह देकर कहे, “बताओ कौन-से समूह में कंचे ज्यादा हैं?” और हरिलाल न बता सके। तो क्या अभी उसे गिनना आ गया? शायद अभी नहीं; क्योंकि गिनने का एक मतलब यह भी है कि चीजों के दो समूह में तुलना कर सके। तो आपका गिनती सिखाने का काम अभी बाकी है। मान लीजिए यह भी आपने सिखा दिया। तो अब हरिलाल के पीछे पड़ा सन्‍देही शिक्षक क्या नया सवाल खड़ा कर सकता है? शायद कुछ नहीं। चलिए एक बार हम मान लेते हैं कि अब हरिलाल को गिनना आ गया।

इस नजर से गिनना आने का मतलब है:

1. गिनती बोलना या संख्या-नाम क्रम से याद होना

2. किसी समूह (गणित में स्पष्ट रूप से परिभाषित समूह को “समुच्चय” कहने का रिवाज है) या समुच्चय में चीजों की संख्या पता कर पाना।

3. जितनी चाहें उतनी चीजों का समुच्चय बनाना और

4. दो समुच्चयों में ये जानना कि कौन-सा बड़ा है या किसमें ज्यादा चीजें हैं।

5. किसी समूह में एक चीज बढ़ा दें तो नए समूह में चीजों की संख्या जानना- (ये यहाँ नई शर्त जोड़ दी है, इसकी जरूरत आगे बताई गई है)।  

थोड़ा सोचने पर आप पाएँगे कि इनमें पहली शर्त (गिनती याद होना) बाकी तीनों काम करने के लिए जरूरी है। बिना गिनती याद हुए बाकी चीजें की ही नहीं जा सकतीं। तो यदि कोई बच्चा समूह में चीजों की सही संख्या बता देता है तो उसी से सिद्ध हो जाता है कि उसे गिनती याद भी है। अर्थात आप 2, 3 या 4 को जाँच लें तो पहली को अलग से जाँचने की जरूरत नहीं है। यह भी ध्यान देने की बात है कि यहाँ हमने हरिलाल के सौ तक गिनना जानने की बात की है। यदि यह सीमा (सौ तक की) हटाना चाहें तो ये भी मानना होगा कि उसे जितनी चाहे वहाँ तक गिनती आती है या वह गिनती बना सकता है, या वह उसे जितनी गिनती आती है उसके आधार पर आगे की संख्याओं को समझ सकता है। उदाहरण के लिए यदि किसी को बीस तक ही गिनती के नाम याद हों और वह चौबीस को “एक बीसी और चार” बताए तो अपनी गिनती को आगे संख्याएँ बताने/जानने के लिए काम में ले रहा है। उसे गिनती नाम तो बीस तक ही आते हैं पर गिनना तो आगे भी आता है। इस नई शर्त को- बिना सीमा के कहीं तक भी गिनाने की बात को- हम सूत्र रूप में शामिल करना चाहें तो कहना होगा, “किसी समूह में एक चीज बढ़ा दें तो नए समूह में चीजों की संख्या जानना”। ये हमारी पाँचवी शर्त हो सकती है। अतः इस बात को पूरी करने के लिए हम कह सकते हैं कि किसी को गिनना आने का मतलब हैः गिनती आना, समुच्चय में सदस्यों कि संख्या बता पाना, चाही गई संख्या वाला समुच्चय बना पाना, दो समुच्चयों में संख्या कि हिसाब से छोटा/बड़ा बता पाना और किसी भी समुच्चय में एक चीज जोड़ दें तो नए बने समुच्चय में सदस्यों की संख्या बता पाना।

यहाँ कुछ और बातों पर ध्यान देने की जरूरत है। आपने देखा है कि हमने चीजों की संख्या समुच्चय में बता पाने के साथ गिनना आने को परिभाषित किया है। पर चौथी और पाँचवीं शर्तों के बिना, चीजों की बात किए पूरी तरह अमूर्त रूप भी सम्भव हैंः चौथी शर्त के लिए- दी गई संख्याओं में छोटी/बड़ी जानने या बता पाना, और पाँचवीं के लिए- दी गई संख्याओं से एक अधिक संख्याएँ बता पाना। चीजों की समूह की बात हमने इसलिए की है कि हम बच्चों को गिनना सिखाने के सन्‍दर्भ में ये सब सोच-विचार कर रहे हैं। वास्तव में अपनी शर्तो को सामान्य बनाने के लिए इनके ये अमूर्त रूप ही लेने होंगे।

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस क्रम में हमने इन शर्तो को यहाँ रखा है उस क्रम में इनको सिखाना जरूरी नहीं है। हालाँकि मौटेतौर पर ये क्रम सीखने में रहता है। पर बहुत चीजें साथ-साथ भी चलती हैं। तीसरी बात यह कि यहाँ अभी तक सिखाने के तरीकों पर और बच्चों को आने वाली कठिनाईयों के कारणों पर बात नहीं की है, केवल “गिनने की अवधारणा” को समझने की बात की है।

चौथी बात यह कि “गिनने” को दो अर्थ में देखा जा सकता है। एक, ‘गिनने-की-प्रक्रिया’ के रूप में, और दो, ‘गिनने-की-प्रक्रिया’ ठीक से करने के नतीजे के रूप में प्राप्त ‘जानकारी या निर्मित समझ’ के रूप में। हमने यहाँ “गिनना आने” का अर्थ इस प्रक्रिया से “जानकारी या समझ बनाने की क्षमता” के रूप में लिए है। बच्चों को गिनना सिखाने के लिए इस की प्रक्रिया की समझ भी जरूरी है। (चित्र गूगल इमेज)

रोहित धनकर : जाने-माने शिक्षाविद हैं। यह लेख उन्‍होंने दिगन्‍तर संस्‍था के लिए लिखा है। यहांँ हम इसे दिगन्‍तर के सौजन्‍य से प्रकाशित कर रहे हैं।

आभार/साभार : http://www.teachersofindia.org

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