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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT : बच्चों की समझ और सोच को हम सामान्यतः नकार देते हैं। ये तो बच्चे है ये क्या समझेंगे; तुम बच्चे हो अभी तुम्हारी समझ कम है; तुम बच्चे हो तुम हमें सही गलत सिखाओगे? हम कहते हैं, “तुम जानते ही कितना हो?” हमारी बच्चों के प्रति ऐसी अवधारणा कहीं न कहीं गलत होती हैं, बच्चे भी सोचते हैं उनका भी...

MAN KI BAAT : बच्चों की समझ और सोच को हम सामान्यतः नकार देते हैं। ये तो बच्चे है ये क्या समझेंगे; तुम बच्चे हो अभी तुम्हारी समझ कम है; तुम बच्चे हो तुम हमें सही गलत सिखाओगे? हम कहते हैं, “तुम जानते ही कितना हो?” हमारी बच्चों के प्रति ऐसी अवधारणा कहीं न कहीं गलत होती हैं, बच्चे भी सोचते हैं उनका भी...

बच्चों की समझ और सोच को हम सामान्यतः नकार देते हैं। ये तो बच्चे है ये क्या समझेंगे; तुम बच्चे हो अभी तुम्हारी समझ कम है; तुम बच्चे हो तुम हमें सही गलत सिखाओगे? हम कहते हैं, “तुम जानते ही कितना हो?”

आखिर क्यों ? क्यों हम उनकी सोच को नकार देते हैं ? अगर मैं समझ की बात छोड़ भी दूँ, तो हम बड़ों को तो यह भी नहीं लगता कि बच्चे सोच सकते हैं। किसी भी स्थिति को लेकर उनकी अपनी कोई सोच भी हो सकती है। हमारी बच्चों के प्रति ऐसी अवधारणा कहीं न कहीं गलत होती हैं। बच्चे भी सोचते हैं। उनका भी अपने समाज के प्रति एक नजरिया होता है, जिसे वे दूसरों के बीच रखना चाहते हैं, वे दूसरों को बताना चाहते हैं, परन्तु फिर वही “ये बच्चे हैं, अबोध हैं ये क्या विचार रखेंगे” ऐसी सोच उनको ऐसा करने से रोकती है। बच्चों के विचार शायद हमारे विचार से बेहतर होते हैं। हमारे उस समाज के विचार से अच्छे होते हैं, जो स्वार्थ और नफरत का चश्मा पहने हुए होता है।

कक्षा 5 के बच्चों के साथ जब मैंने उनकी रचनात्मकता और समाज को लेकर उनकी समझ को समझने के लिए काम किया तब मुझे यह एहसास हुआ कि हम कितने गलत हैं। मैंने बच्‍चों को सिर्फ एक चित्र दिया, जिस पर उन्हें एक कहानी लिखनी थी। पाँचवी के बच्चे जिन्हें हम मानते हैं कि इनको शेर, भालू, चीते की कहानी पसन्‍द होती हैं, उन्होंने उस तस्वीर की जो कहानी उकेरी, वो मेरी भी सोच से परे था। बच्चों को यह तस्वीर दिखाई गई।

इस चित्र को देखकर छोटी उम्र के इन बच्चों के ऐसे विचार और अनुभव सामने आए, जो इन्होंने कभी न कभी अपने समाज में या तो देखें हैं या महसूस किए हैं। उन्होंने अपनी इसी अनुभव और दृष्टिकोण को कहानी के रूप में पेश किया। उन कहानियों की कुछ झलकियाँ।

स्टोरी 1 :-

कहानी का सार यह था कि महिला नीची जाति की थी और आदमी जो ऊँची जाति का था। उसे पानी नहीं भरने देता। वह उससे कहता है कि तुम नीची जाति की हो इस कारण यहाँ से पानी नहीं भर सकती।

बच्चे ने वही लिखा जो उसने अपने जीवन में अनुभव किया और सिर्फ यही नहीं जाति भेदभाव को लेकर उसने अपनी लिखी कहानी में अपने विचार भी अभिव्यक्त किए कि जब हम सबका खून लाल है, हम सब अन्न ही खाते हैं, तो हमें इस तरह का भेद नहीं करना चाहिए। उस बच्चे ने यह भी लिखा है कि अगर हम कहीं ऐसा देखेंगे तो उन्हें समझाएँगे। ये बच्चा जो कक्षा 5 का छात्र है जाति भेदभाव को इतनी गहराई से समझता है जिस बात को बड़े लोग नहीं समझ पाते हैं या समझना ही नहीं चाहते हैं l

स्टोरी 2 :-

एक बच्चे ने लिखा कि आदमी उस महिला को पानी इसलिए नहीं भरने दे रहा क्योंकि महिला बीच में अपना घड़ा लगाने की कोशिश कर रही है। बच्चे के अनुसार गलती महिला की है। उसे लाइन में लगना चाहिए था। अगर इस चित्र को हम देंखेंगे तो शायद इस बारे में नहीं सोच पाएँगे क्योंकि ऐसी कोई लाइन भी चित्र में दिखाई नहीं दे रही है। उस बच्चे ने वही लिखा, जो उसने अपने परिवेश में देखा है, अनुभव किया है और उसने अपने इसी अनुभव को चित्र में देखा तथा कहानी के रूप में उसकी कल्पना की।

स्टोरी 3 :-

इस कहानी में बच्चे ने लिखा कि औरत को घर जाने की जल्दी होती है, इसलिए वह आदमी को कहती है कि मुझे पानी भर लेने दो। इस पर आदमी कहता है कि नहीं मुझे भी घर जाना है। मैं पहले भरूँगा। इस कहानी को लेकर बच्चे ने अपना जो दृष्टिकोण रखा वह यह था कि हमें दूसरों की परेशानी को भी समझना चाहिए।

बाद में पूछने पर बच्चे ने अपना खुद का अनुभव बताया है। किस तरह उसके गाँव के हैंडपम्प पर भीड़ होने की वजह से परेशानी होती है। उसे स्कूल आना होता है और निवेदन करने पर भी उसे पहले पानी नहीं भरने दिया जाता। जिससे वह कई बार स्कूल देर से पहुँचता है।

स्टोरी 4 :-

इस कहानी को बच्चे ने एक अलग ही दृष्टिकोण दिया है, उसने लिखा है कि जब औरत पानी भरने जाती है और वह आदमी उसे पानी नहीं भरने देता है। तब वह अपने घर में भी एक वॉटर टैंक बनवा लेती है। एक दिन आदमी के वाटर टैंक में पानी नहीं आ रहा था, तब वह औरत के पास उसके वॉटर टैंक से पानी भरने जाता है। वह उसे पानी भरने देती है इस पर आदमी को अपनी भूल का एहसास होता है और वह उससे माफी माँगता है। इस पर औरत कहती है कि कोई बात नहीं। इस कहानी से इस बच्चे का आशय साफ झलकता है कि कोई कैसा भी व्यवहार करे, हमें हमेशा सबकी मदद करनी चाहिएl अपने मन में किसी के लिए कोई बैर नहीं रखना चाहिए।

ये कहानियाँ पढ़ने के बाद भी क्या हम कहेंगे कि ये बच्चे कुछ नहीं समझते । इनमें सोचने की, विश्लेषण करने की क्षमता या तो कम है या फिर नहीं है। इनमें से कुछ कहानियाँ उन्ही भील बच्‍चों ने लिखी है, जिनके लिए बड़ी आसानी से लोग कह दिया करते हैं, “ये बच्चे कुछ सीख नहीं सकते यह तो मन्‍दबुद्धि होते हैं।’’

हम अपनी असफलताओं का दोष भी इन बच्‍चों पर डालकर अपनी जिम्मेदारियो से बड़ी आसानी से खुद को बरी कर लेते हैं।

हमें ठहरकर सोचने की जरूरत है कि आखिर क्यों हम इन बच्‍चों से उनकी कल्पनाशीलता ,उनके सोचने और अभिव्यक्त करने की आजादी को छीनकर उन्हें किसी अँधेरी खाई की ओर धकेल देते हैं।

क्या उनकी इन कहानियों में ज्ञान का वो प्रकाश दिखाई नहीं दे रहा, जिसकी रोशनी की आज हमें “एक अच्छे समाज निर्माण” के लिए जरूरत है, जहाँ लोग एक-दूसरे को समझें, एक-दूसरे के प्रति आदर और सम्मान की भावना रखें। वह भावना जो जाति, धर्म, ऊँच-नीच पर आधारित न हो।

हमारे और आपकी तरह ये भी उसी जात-पात, धर्म भेद के दंश को अपने समाज में देखते हैं, अनुभव करते हैं परन्तु इनका बाल मन साफ है, निश्छल है।

लेकिन अफसोस कि उन्हें गला काट प्रतियोगिता में झोंककर हम उनकी यह समझ और सोचने की शक्ति उनसे छीन लेंगे और उनको यह समाज एक सामाजिक रोबोट बना देगा, जो न कुछ सोच पाएगा न ही कोई सवाल कर पाएगा।

     लेख - स्‍वाति भंडारी, फैलो, अज़ीम प्रेमजी फाउण्‍डेशन,जिला संस्‍थान,राजसमंद, राजस्‍थान

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