CLERK : पांच माह में सिर्फ पांच लिपिकों को घेर पाए,
राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : आखिरकार वही हुआ, जिसका अंदेशा था। यूपी बोर्ड के इलाहाबाद क्षेत्रीय कार्यालय के अभिलेखों की हेराफेरी में जांच के नाम पर खानापूरी कर दी गई है।
सैकड़ों युवाओं के मूल अभिलेख बदलने में पूरा गिरोह सक्रिय रहा, कई कालेजों के रिकॉर्ड तक नष्ट किए गए, लेकिन जांच अधिकारियों को क्षेत्रीय कार्यालय के केवल पांच लिपिक ही दोषी मिले हैं। बाकी सबको बख्श दिया गया है। जब संयुक्त शिक्षा निदेशक इलाहाबाद मंडल खुद जांच अधिकारी थे, तब वह अपने कार्यालय के मातहतों को गलत कैसे ठहरा सकते थे। बोर्ड के इलाहाबाद क्षेत्रीय कार्यालय में अभिलेखों की हेराफेरी काफी पहले हुई, लेकिन वह सुर्खियों में अक्टूबर माह में आई। बोर्ड सचिव ने तीन अफसरों को जालसाजों की जांच का जिम्मा दिया। उस समय ही ‘दैनिक जागरण’ ने ‘रस्मी जांच से पकड़े नहीं जाएंगे जालसाज’ खबर में यह अंदेशा जताया था कि जांच के नाम पर खानापूरी होगी, क्योंकि जब सबकुछ सामने आ चुका है तो कार्रवाई होनी चाहिए। यही नहीं जागरण ने ही तीन दिन पहले शाहजहांपुर में समानांतर बोर्ड कार्यालय के साथ ही अभिलेखों की हेराफेरी की जांच दबाने की खबर प्रमुखता से उजागर की। उसके बाद ही अफसरों ने पांच लिपिकों को दोषी पाने की सूचना प्रसारित कराई।
असल में क्षेत्रीय कार्यालय में 2012 में टेबुलेशन रिकॉर्ड (टीआर) का पेज फाड़ने वाले पांच कर्मियों पर एफआइआर हो या फिर 2014 में टीईटी 2011 के टीआर में हेराफेरी करके 400 फेल युवाओं को पास कराने वाले दो कर्मचारियों का निलंबन। यूपी बोर्ड में अभिलेखों में हेराफेरी की घटनाएं थम नहीं रही हैं, बल्कि पिछली वारदातों को मात देते हुए बड़े पैमाने पर अभिलेखों को बदला गया है। यह इसलिए मुमकिन हुआ, क्योंकि कार्रवाई के तौर पर सिर्फ लकीर पीटी गई। पहले भी जांच अधिकारी तय करके वह रस्म निभा दी गई, नतीजा ही नहीं आया।
यूपी बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय प्रकरण में इस बार कार्रवाई हो सकती थी, क्योंकि क्षेत्रीय सचिव ने पूरा प्रकरण खंगाल लिया था, लेकिन अभिलेख बदलने में किस लिपिक का हाथ है यह खोजने में पांच माह लग गए। जांच टीम ने जिन विद्यालयों ने इस हेराफेरी में मदद की उन्हें छोड़ दिया ऐसे ही जेडी कार्यालय के कुछ कर्मचारी इसमें शामिल थे उन्हें भी चिन्हित नहीं किया गया है।
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