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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT : शिक्षक दिवस पर शिक्षा और मातृभाषा के संबंध पर विचार करना आवश्यक है क्योंकि शिक्षा को समझने के कई सूत्र होते हैं। मातृभाषा उनमें सर्वोपरि है। उसमें अपनी कहावतें, लोककथाएं, कहानियां, पहेलियां, सूक्तियां होती हैं, जो सीधे हमारी स्मृति.........

MAN KI BAAT : शिक्षक दिवस पर शिक्षा और मातृभाषा के संबंध पर विचार करना आवश्यक है क्योंकि शिक्षा को समझने के कई सूत्र होते हैं। मातृभाषा उनमें सर्वोपरि है। उसमें अपनी कहावतें, लोककथाएं, कहानियां, पहेलियां, सूक्तियां होती हैं, जो सीधे हमारी स्मृति.........

🌖 शिक्षा और मातृभाषा

🌕 शिक्षा का आधार, शिक्षा को समझने के कई सूत्र होते हैं। मातृभाषा इनमें सर्वेापरि है। उसमें अपनी कहावतें, लोककथाएं, कहानियां, पहेलियां, सूक्तियां होती हैं, जो सीधे हमारी स्मृति की धरती से जुड़ी होती हैं ।

शिक्षक दिवस पर शिक्षा और मातृभाषा के संबंध पर विचार आवश्यक है। मातृभाषा अपने मां-पिता से प्राप्त भाषा है। उसमें जड़ें हैं, स्मृतियां हैं व बिंब भी। मातृभाषा एक भिन्न कोटि का सांस्कृतिक आचरण देती है, जो किसी अन्य भाषा के साथ शायद संभव नहीं। मातृभाषा के साथ कुछ ऐसे तत्व जुड़े होते हैं जिनके कारण उसकी संप्रेषणीयता उस भाषा के बोलने वाले के लिए अधिक मार्मिक होती है। यह प्रश्न इतिहास और संस्कृति के वाहन से भी संबद्ध है। इसलिए शिक्षा में इसका महत्व है। संस्कृति का कार्य विश्व को महज बिंबों में व्यक्त करना नहीं, बल्कि उन बिंबों के जरिए संसार को नूतन दृष्टि से देखने का ढंग भी विकसित करना है। औपनिवेशिकता के दबावों ने ऐसी भाषा में दुनिया देखने के लिए विवश किया गया था जो दूसरों की भाषा रही है। उसमें हमारे सच्चे सपने नहीं आ सकते थे।

साम्राज्यवाद सबसे पहले सांस्कृतिक धरातल पर आक्रमण करता है। वह भाषा को अवमूल्यित करने लगता है। हमारी ही भाषा को हीनतर बताता है। लोग अपनी मातृभाषा से कतराने लगते हैं और विश्व की दबंग भाषाओं के प्रभुत्व को महिमामंडित करने लगते हैं। हम उसी से अभिव्यक्ति करने लगते हैं या बंध जाते हैं और मातृभाषा अंतत: छोड़ने लगते हैं। गर्व से कहते हैं कि मेरे बच्चे को मातृभाषा नहीं आती। यानी शिक्षा का वर्गातरण होता जाता है।

शिक्षा को समझने के कई सूत्र होते हैं। मातृभाषा उनमें सर्वोपरि है। उसमें अपनी कहावतें, लोककथाएं, कहानियां, पहेलियां, सूक्तियां होती हैं, जो सीधे हमारी स्मृति की धरती से जुड़ी होती हैं। उसमें किसान की शक्ति होती है। उसमें एक भिन्न बनावट होती है। एक विशिष्ट सामाजिक और मनोवैज्ञानिक बनावट जिसमें अस्मिता का रचाव होता है। जब भी किसी महादेश की पीड़ा का बयान होगा तो कोई भी मौलिक लेखक अपनी मातृभाषा में जितनी तीव्रता और तीक्ष्णता के साथ अपनी बात कह पाएगा, अन्य भाषा में नहीं। आत्म अन्वेषण की जो गहराई मातृभाषा के साथ संबंध है, अन्य भाषा के साथ नहीं। अन्य भाषा में बात कही जा सकती है, लेकिन वह मार्मिकता संभव नहीं।

शिक्षा में मातृभाषा से अपने परिवेश व पर्यावरण का बोध होता है। संबद्धीकरण की प्रक्रिया में मजबूती होती है। अलगाव से बचाव होता है। मातृभाषा से वह मौखिक लय प्रकट होती है जिसमें प्रकृति और परिवेश के साथ सामाजिक संघर्ष भी प्रकट होता है। उससे साहित्य और संस्कृति के सकारात्मक, मानवीय जनतांत्रिक तत्व भी सामने आते हैं। अपनी संस्कृति की जड़ों में जाकर हमें आत्मविश्वास की अनुभूति होती है। उधार ली हुई भाषा हमारे साहित्य एवं कलाओं का विकास नहीं कर सकती, क्योंकि उनका संबंध हमसे रागात्मक रूप से जुड़ा नहीं है। उधार की भाषा का सत्ता केंद्र कहीं और होता है और वह मातृभाषा जैसी आकांक्षा की पूर्ति का वाहक नहीं हो सकता। मातृभाषा में धरती की जो गंध है और कल्पनाशीलता का जो पारंपरिक सिलसिला है वह अन्य भाषा में संभव नहीं।

मातृभाषा में जनता के संघर्ष बोलते हैं। कोई व्यक्ति जो मातृभाषा की महत्ता जानता है उसे पता है कि आंदोलन, लोकछवि, आत्म आविष्कार और बदलाव के लिए इससे बेहतर कोई माध्यम नहीं, क्योंकि उसका वास्ता उन भाषाओं से पड़ेगा जो वहां की जनता बोलती है और जिनकी सेवा के लिए उसने कलम उठाई है। वह वही गीत गाएगा जो जनता चाहती है। मातृभाषा के माध्यम से अर्थ सीधे-सीधे सरोकार से है। इससे उस माध्यम के सामाजिक व राजनैतिक निहितार्थो का बोध होता है। इसलिए शिक्षा में इसका गहरा औचित्य है। मातृभाषा के माध्यम से लोगों की वास्तविक आवश्यकताओं को गीतों, नृत्यों, नाटकों, कविताओं आदि के जरिये अभिव्यक्ति दी जा सकती है तथा नई चेतना की आकांक्षा को स्वर दिया जा सकता है। श्रमिक वर्ग व जनसामान्य को मूलत: उनकी मातृभाषा में अच्छी तरह संबोधित व संप्रेषित किया जा सकता है। मातृभाषा में संरचनात्मक रूपांतर की प्रक्रिया में शिक्षा संस्कृति की एक निर्णायक भूमिका होती है जो साम्राज्यवाद के नए औपनिवेशिक चरण में विजय के लिए जरूरी है। शिक्षा और संस्कृति में आवश्यक संबंध है और सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक पक्षों से सीधा सरोकार है इसीलिए शिक्षा में मातृभाषा की प्रभावी भूमिका है।

सच यह है कि संस्कृति अपने आप में इतिहास की अभिव्यक्ति व उत्पाद भी है, जिसका निर्माण प्रकृति और अन्य लोगों के साथ संबंधों पर आश्रित है, इसीलिए वहां मातृभाषा का अंतरंग प्रवेश है। यदि मातृभाषा को आधार बनाया गया तो सामुदायिकता में आबद्ध गण अपनी भाषा, साहित्य, धर्म, थिएटर, कला, स्थापत्य, नृत्य और एक ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित करते हैं जो इतिहास और भूगोल को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को पहुंचा पाते हैं। शिक्षा और संस्कृति वर्गीय विभेदों को समाज की आर्थिक बुनियाद में व्यक्त करती है। वास्तव में वर्गीय समाजों में दो तरह की शिक्षा के बीच संघर्ष चलता रहता है। औपनिवेशिकता से ग्रस्त सांस्कृतिक पक्षों के लिए मातृभाषा की आवश्यकता है ही नहीं। वे अपने लिए वैसी ही भाषा चुनेंगे जो उनके क्लास को प्रतिनिधित्व दे। इसी देश में कई जगह बच्चे मातृभाषा बोलते हुए दंड पाते हैं तो इसको समझना चाहिए।

शिक्षा का मूल है वह सौंदर्य बोध जो हमारी लोक कथाओं, हमारे सपनों, विज्ञान, हमारे भविष्य की कामना में छिपा है। उसका सौंदर्य हमारी धरती की गंध से उपजा होता है। अन्य भाषाओं को अपनाने, उनमें अभिव्यक्ति करने में कोई बुराई नहीं। न ही उनमें ज्ञान-विज्ञान, सामाजिक विज्ञान सीखने व अर्जित करने में कोई संकोच होना चाहिए। मूल यह है कि जो ताकतें मातृभाषा को रचनात्मकता से हीन करने व उसे हीनतर करने को सक्रिय रही हैं उन्हें पहचानने की आवश्यकता है।

हमारी अस्मिता, साहित्य, सृजनात्मकता का सर्वोच्च वैभव मातृभाषा में ही संभव है। वह असीम है। कल्पना का वह छोर है। वह हमारी धरती का रंग है। मातृभाषा में परंपरा की जीवंतता है। वह हमारे गोमुख से आती है। उसमें हमारी धूप व हमारी छांव है। हमारी धमनी व शिराएं उससे रोमांचित होती हैं। वह हमारा गहन आकर्षण प्रीति व मुक्ति है। उसमें हमारे लिए गहन आवेग भी है। वह हमारी परंपरा में हमें परिष्कृत करती चलती है। मातृभाषा जीवंत अभिव्यक्ति व शिक्षा का शायद सबसे सुंदर मध्यम है। मातृभाषा न केवल सहज शिल्प है, अपितु सबसे अर्थपूर्ण संभावना है। अन्य भाषाओं के प्रति उदार होना मातृभाषा का सबसे उच्ज्वल पक्ष होना चाहिए।
-लेखक परिचय दास जी (दैनिक जागरण)

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1 Comments

  1. 👏शिक्षक दिवस पर आप सबको ढेर सारी बधाईयां :)
    📌 MAN KI BAAT : शिक्षक दिवस पर शिक्षा और मातृभाषा के संबंध पर विचार करना आवश्यक है क्योंकि शिक्षा को समझने के कई सूत्र होते हैं। मातृभाषा उनमें सर्वोपरि है। उसमें अपनी कहावतें, लोककथाएं, कहानियां, पहेलियां, सूक्तियां होती हैं, जो सीधे हमारी स्मृति.........
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/09/man-ki-baat_5.html

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