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मीना की दुनिया(Meena Ki Duniya)-रेडियो प्रसारण एपिसोड 61 । कहानी का शीर्षक  - "बागवानी"

मीना की दुनिया(Meena Ki Duniya)-रेडियो प्रसारण एपिसोड 61 । कहानी का शीर्षक  - "बागवानी"

मीना की दुनिया-रेडियो प्रसारण
एपिसोड-61
दिनांक-17/12/2015
आकाशवाणी केंद्र-लखनऊ ; समय-11:15am से 11:30am तक
आज की कहानी का शीर्षक- “बागवानी”

दृश्य-1

(स्कूल के पीछे के मैदान में बहनजी सब बच्चो के साथ पेड़ लगा रहीं है, मिट्टी से लथपथ हैं और गड्ढा खोदते हुए गाना गाते जा रहें हैं,"हम सब का यह कहना है, वृक्ष धरती का गहना है।")
सुमी- मीना मुझे टीचर बहन जी की 1 बात समझ नहीं आई कि पेड़ और पानी का क्या नाता?
मीना-सुमी टीचर बहनजी ने बताया था कि पेड़ बारिश करवाता है ,मिट्टी को बहने से बचाता है।
("ये पेड़ तुम्हारे काम आता है, तुम्हे कितना सुख पहुंचता है।")
बहनजी- रानू सुमी मीना राजू ये कितनी अच्छी कविता बन गई।
चलो मेरे हरियाली के सिपाहियों अब चलकर हाँथ धो लो........छुट्टी का समय भी हो गया.... और याद रहे हाथ साबुन से ही मलकर अच्छी तरह से धोना। क्योकि साफ हाथों में है दम।

दृश्य-2

     (बिट्टू घर जाते समय सोच रहा है कि हरियाली का सिपाही? घर में बिट्टू के पिता बिट्टू को मिटटी से लतपत देख गुस्सा होते है और इस प्रकार मिट्टी से लथपत होने का कारण पूछते है तो बिट्टू अपने स्कूल के हरियाली के सिपाही गुट के बारे में बताता है। तब अगले दिन बिट्टू के पिता स्कूल पहुँच जाते है और बहनजी से गुस्से में कहते है।)

बिट्टू के पिता- स्कूल बच्चो के लिए है न कि पेड़ पौधे लगवाने या अन्य कार्य करने के लिए।

बहनजी- बच्चे स्कूल में पढ़ते तो है ही पर साथमें बागवानी का काम भी सीख़ रहे है।पेड़ पौधे लगाने से बच्चे अपने आसपास के पर्यावरण को समझने लगते है। ऐसी गतिविधियाँ करने से उनमे एकता की भावना पैदा होती है। ऐसी गतिविधियाँ करने से बच्चों में जिम्मेदारी समझने की क्षमता पैदा होती है। पर्यावरण की जिम्मेदारी से बच्चो के सिखने का नजरिया बदलता है।

बिट्टू के पिता- देखिये बहनजी हम अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजते हैं अगर आपने उसको अच्छे से नहीं पढाया तो मैं गाँव के सरपंच या फिर शिक्षा समिति से बात करूँगा।

दृश्य-3

     (सरपंच जी को अपनी पत्नी से बातें करते हुए कहते है की इस साल सूखे के आसार दिख रहें हैं अपने बाद के पुरे पेड़ सूख रहें हैं, आने वाली गर्मी में इन पेड़ों के लिए पानी पर्याप्त न होगाक्यो न इस बार फूलों की बागवानी छोड़कर सब्जी की बागवानी भर की जाये । मीना ये सब बाते सुनती है और बिट्टू के घर जा कर दोनों की बहुत देर तक बाते होती है। वाही सरपंच जी किसी ट्रेनिंग के लिए कुछ दिनों के लिए शहर जाते है। लौट के आने पर )

सरपंच जी देखते है की उनकी बगिया तो एक दम हरी भरी हो गई है। पत्नी के पूंछने पर पता चलता है कि इस बगिया को इतनी हरी भरी करने का काम बिट्टू ने रसोई घर से निकलने वाले पानी के उपयोग से किया है उसने उस पानी को बाहर एक घड़े में इकट्ठा करके और उस घड़े में एक पाइप जोड़कर इस पानी को बगिया तक ले जाकर और पाइप में कुछ दूर दूर पर छेड़ करके ताकि पानी सरे पढो के जड़ों को मिल सके।।।।तो सरपंच जी बताते है की मैं भी इसी बिधि को सीख कर आया हूँ। और बिट्टू को शाबासी देने सरपंच जी स्कूल जाते है तभी रास्ते में  सरपंच जी को बिट्टू के पिता मिलते है।


बिट्टू के पिता बताते है की आजकल बच्चे तो टीचर जी द्वारा बनाये गए समूह"हरा है मन भरा है" में बागवानी के कम में लगाये रहती है बहुत सा समय तो इसी में निकल जाता है और बाकि समय खेलकूद में।
सरपंच जी- बहनजी द्वारा नए नए तरीकों से सवालों के हल निकलवाना खूब आता है। इससे बच्चे सरलता से हल निकाल लेते है। भाई तुम्हे तो अपने बेटे पर बड़ा गर्व होगा। उसने मेरी बगिया को हरा भरा रखने का कितना बढ़िया हल निकला है। मैं तो उसे शाबासी देने उसके स्कूल जा रहा हूँ।
(यह सुन कर बिट्टू के पिता थोडा शांत हुए फिर दोनों स्कूल पहुचे और वहाँ बिट्टू की बहनजी से मिले)
सरपंचजी- बिट्टू के मन इतना अच्छा विचार आया  कैसे?
बहनजी के बोलने के पहले ही बिट्टू के पिता- मैं बताता हूँ ये विचार कैसे आया?... हरा है मन भरा है समूह में कार्य करके ही बच्चे पर्यावरण के बारे में और अच्छे से सीखते है।...मैंने ठीक कहा न बच्चो।
सरपंचजी- बिट्टू ये तुमने कैसे किया।
बिट्टू- मीना ने मुझे बताया कि आपके सरे फूल सूख रहें हैं यदि मैं इसका हल निकाल लूँ लो मेरे पिता खुश हो जायेंगे।
सरपंच जी-होशियार बाप का होशियार बेटा|

आज का गाना-
कब कहाँ और कैसे मुझको बता दो ऐसे।
ये धरती क्यूँ है घूमें  क्यों आसमां के पीछे।। 2
ये चिड़िया क्यों चाहके हर रोज फूल क्यों  महके।
यूँ चीटी सरपट भागे क्यों दिन चले रात के आगे।।2
देखो मुझको बताओ मन सोचता हर पल ये।
ये धरती क्यूँ है.......
मोटर की यह गर गर मेंढक की ये टर टर।
कुम्हार के दो हाथो से बने बर्तन छू-मंतर।।2
किताबें भली लगे मुझे पर कुछ तो और बता दे।
ये धरती क्यूँ है.......

आज का खेल:- ‘कड़ियाँ जोड़ पहेली तोड़’
1.शाखाओं से निकल धरती की ओर बढ़ती हैं जड़े मेरी।
हजारों लोग आ बैठते हैं छाँव में मेरी।
बहुत बड़ा हूँ मैं छतरी की तरह फैला हुआ।
बूझो तो जरा कौन हूँ मैं।
उत्तर-बरगद(राष्ट्रीय वृक्ष)
2.बोधि पेड़ के नाम से भी जाना जाता हूँ।
भारत के बहुत से गांवों में पाया जाता हूँ।
मेरी जड़ो को कई लोग चबाते है।
जब मसूड़ो के दर्द से परेशान हो जाते हैं।
अब जल्दी से नाम बता दो तुम तुम तुम।
उत्तर-पीपल
3.छोटे छोटे हरे पत्ते छोटे सफ़ेद फूल।
थोडा सा मैं पानी चाहूँ मांगू धूप खूब।
मेरा तना मेरा पत्ता मेरा फल मेरा फूल।
हर एक भाग करता है अलग अलग बीमारी को दूर।
उत्तर-नीम (करामाती पेड़)
आज की कहानी का सन्देश-
                    “जन जन का यह कहना है।
                    पेड़ धरती का गहना है।।“

         नारा- "पेड़ लगाओ धरती बचाओ।"

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1 Comments

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