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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात (Man Ki Baat) : पहले दिन ही बच्चों से सीख मिली : आश्चर्य की बात कि स्कूल के बीच से ही गाँव में आने-जाने का रास्ता बना हुआ था जिस पर लगातार आवा-जाही हो रही थी। परिसर में लगे नल में एक बूढ़ा व्यक्ति नहा………

मन की बात : पहले दिन ही बच्चों से सीख मिली : आश्चर्य की बात कि स्कूल के बीच से ही गाँव में आने-जाने का रास्ता बना हुआ था जिस पर लगातार आवा-जाही हो रही थी। परिसर में लगे नल में एक बूढ़ा व्यक्ति नहा…………

अपने स्कूल के पहले दिन का अनुभव लिखते हुए मैं बहुत रोमांचित हूँ। क्योंकि यह अनुभव खट्टी-मिट्ठी यादों का एक मजेदार घोल-सा है। एक लम्बी प्रतीक्षा के बाद नियुक्ति पत्र मुझे मिल गया था। यह एक शानदार शाम थी और मैं बेसब्री से अगली सुबह की प्रतीक्षा कर रही थी। मुझे जो विद्यालय मिला था वह प्राथमिक विद्यालय पड़मई- 2, क्षेत्र नरैनी, मेरे कस्बे से लगभग 5 किलोमीटर दूर था। 2015 जनवरी के महीने की 21 वीं तारीख थी। और मेरे लिए वह रात कुछ ज्यादा ही लम्बी हो रही थी। सुबह हुई और मैं जल्दी तैयार होकर स्कूल के लिए निकल पड़ी। स्कूल पहुँचने पर वहाँ की हालत देखकर मैं एक बार सन्न रह गई और मुँह से अनायास निकल पड़ा - यह स्‍कूल है?  

पहली नजर में मुझे स्कूल बिल्कुल भी पसन्‍द नहीं आया। कोई चहारदीवारी नहीं थी और बहुत छोटे से हिस्से में स्कूल बना हुआ था। आश्चर्य की बात कि स्कूल के बीच से ही गाँव में आने-जाने का रास्ता बना हुआ था जिस पर लगातार आवा-जाही हो रही थी। परिसर में लगे नल में एक बूढ़ा व्यक्ति नहा रहा था। चारों तरफ पानी फैला हुआ था। स्कूल से लगी हुई गड़ाही थी जिसमें गंदा पानी भरा हुआ था और जलकुम्भी तैर रही थी। परिसर में एक गुलमोहर का पेड़ लगा हुआ था और उसके आसपास रात को हुई बारिश का पानी जमा हो गया था। उसी पेड़ के नीचे खड़े-खड़े मैं यह सब देख समझ ही रही थी कि एक लड़की ने ध्यान भंग करते हुए कहा कि मुझे बड़ी मैडम बुला रही हैं।

 

मैं उसके पीछे चल पड़ी। शायद स्कूल के स्टाफ को मालूम था कि मैं वहाँ ज्वाइन करने आने वाली हूँ। इसीलिए मुझे देखते ही बोल पड़ीं, ‘आइए, हम आपका इंतजार ही कर रहे थे।’ वहाँ तीन महिलाएँ और एक पुरूष काम कर रहे थे। प्रधान शिक्षिका महिला थीं। बीस मिनट में लिखा-पढ़ी की सब कार्यवाही पूरी करके वह मुझे कक्षाओं में ले गईं और प्रत्येक कक्षा में मेरा परिचय बच्चों से करवाया। 4 और 5 की संयुक्त कक्षा थी। बड़ी मैडम मुझे वहीं छोडकर दूसरे काम में लग गईं।

बच्चे मुझे देख रहे थे और आपस में बातें भी कर रहे थे। मैं क्या पढ़ाऊँ कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैं इसके पूर्व सी.बी.एस.सी. बोर्ड के एक स्कूल में लगभग दो साल पढ़ा चुकी थी। लेकिन वहाँ का अनुभव यहाँ किसी काम का नहीं था। मैंने बच्चों से उनके नाम जानने से शुरुआत की। बच्चे कुछ बोल नहीं रहे थे। कारण मैं नहीं समझ पा रही थी। तभी एक शिक्षिका आई और बच्चों से उनकी बोली में कुछ कहा तो बच्चे नाम बताने लगे। तब मुझे समझ में आया कि शायद बच्चे मेरी बात समझ नहीं पा रहे थे क्योंकि मैं बातचीत में अँग्रेजी शब्दों का ज्यादा प्रयोग कर रही थी। वास्‍तव में मेरा किसी गाँव से कभी कोई सम्बन्‍ध नहीं रहा और न ही मैं कभी किसी गाँव जाने का मौका मिला।

उस दिन मुझे बच्चों से पहली सीख मिली कि एक शिक्षक को बच्चों के परिवेश और उनकी भाषा-बोली से अच्छी तरह परिचित होना चाहिए। फिर मैं लगभग सभी कक्षाओं में गई और बच्चों से बातें की। बच्चों का स्तर उनकी कक्षाओं के स्तर से बहुत कम था। लेकिन बच्चे प्‍यारे थे, सीखने को उत्सुक थे। मैंने प्रण किया कि मैं अपनी पूरी सामर्थ्य से इन्हें पढ़ाऊँगी। और उसके लिए मैं इनकी बोली सीखूँगी। छुट्टी का समय हो गया था। बच्चे शोर मचाते हुए घरों की ओर भागे और मैं भी एक नई सीख लेकर घर की ओर बढ़ चली।
~द्वारा आशु गुप्ता प्रशिक्षु शिक्षक

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