शिक्षामित्रों का भविष्य स्वयं एक शिक्षामित्र के शब्दों में, विजय उद्घोष या फिर वेतन रिकवरी और वही शिक्षामित्र की नौकरी लेकिन आउटसोर्सिंग के ज़रिए।
शिक्षामित्र यदि हम सुप्रीम कोर्ट गए तो उन्हें किन सच्चाइयों का सामना करना होगा ―
1–शिक्षामित्र पद से मुक्ति
2–मिले हुए वेतन की रिकवरी
शिक्षामित्रों ज्ञानी होना अच्छी बात है, अज्ञानी होना भी अच्छी बात है, लेकिन अल्पज्ञानी होना प्राण घातक होता है। हमारा सबसे बड़ा दोष यही है कि हम अल्पज्ञानी हैं। हमें इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा कि हमारी सहायक अध्यापक के पद की नौकरी जा चुकी है।
माननीय मुख्यमंत्री महोदय ने भले ही आश्वासन दिया हो लेकिन मुख्यमंत्री महोदय कोई रास्ता न निकलने पर 90 दिन ही ये दरियादिली दिखा सकते हैं जो 10 दिसम्बर को पूरा हो जायेगा। हमारे समायोजन से वंचित भाई सवाल करते हैं कि हमारा समायोजन कब होगा? इसका सीधा सा उत्तर है NCTE चाहेगी तभी होगी।
शिक्षामितत्रों को कुछ भाई सुझाव दे रहे हैं कि उन्हें SC जाना चाहिए।
शिक्षामित्रों को कुछ लोग सुझाव दे रहे हैं कि यदि राज्य सरकार चाहे तो TET कराकर समायोजित कर दे तो आप जान लें–
1– HC ने शिक्षामित्र पद की नियुक्ति को ही गलत माना है।
2– TET के लिए स्नातक 50% अंक व उम्र की बाध्यता है।
3– TET करने के बाद समायोजन नहीं नियुक्ति होगी, नियुक्ति के लिए जनपद स्तर पर विज्ञापन निकलेगा जिसमें सभी TET पास आवेदन करेंगे, मेरिट में आने पर ही चयन होगा।
4– 2011 सफेदा TET को छोड़कर कभी भी TET का रिजल्ट 8% से ज़्यादा नहीं रहा।
5– विभागीय TET जैसी कोई भी चीज RTE एक्ट में नहीं है।
6– TET के लिए 50% स्नातक अंकों की बाध्यता व आयु में छूट का अधिकार सिर्फ NCTE को है जो हमारे खिलाफ है।
शिक्षामित्रों HC के आदेश में स्पष्ट है कि शिक्षामित्र चयन के समय न समुचित आरक्षण का पालन किया गया और न ही समायोजन के समय ही समुचित आरक्षण का पालन किया गया। यदि समुचित आरक्षण का पालन नहीं होता है तो कोई भी नियुक्ति असंवैधानिक होती है।
शिक्षामित्र न सिर्फ हार चुके हैं बल्कि चारों तरफ़ से घिर चुके हैं। इस तरह टूट चुके हैं कि 25% लोग बीमार हैं। एक तरफ अरशद, हिमांशु राणा व शिव कुमार पाठक जैसे शातिर रणनीतिकार हैं जिन्होने हमें अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया है, दूसरी तरफ हमारे पास सिर्फ एक ताकत है कि राज्य सरकार पूरी तरह हमारे साथ है और उसने हमारे सम्मान को अपना सम्मान बना लिया है। लेकिन न्यायपालिका के सामने राज्य सरकार भी विवश है।
शिक्षामित्रों पास सिर्फ दो ही रास्ते हैं–
1– पूरी ताकत के साथ केंद्र सरकार व NCTE पर दबाव बनाकर पुनः अपना खोया हुआ सम्मान व सहायक अध्यापक का वापस पाया जाए।
2– महाराष्ट्र व त्रिपुरा जैसे मॉडलों पर विचार किया जाए
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