logo

Basic Siksha News.com
बेसिक शिक्षा न्यूज़ डॉट कॉम

एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात : शिक्षक के रूप में पहला दिन : बातचीत में एक बात बहुत बढ़िया निकली कि बच्चे मेहनती और प्रयत्नशील........

बच्चों का साथ अच्‍छा लगता है

मैं अपने शिक्षकीय जीवन के पहले दिन को याद करके बहुत रोमांचित हो रहा हूँ। अनुदेशक(शारीरिक शिक्षा) के रूप में मेरी नियुक्ति पूर्व माध्‍यमिक विद्यालय, पल्हरी क्षेत्र नरैनी में हुई थी। यह आज से लगभग दो-ढाई वर्ष पहले की बात है, दिन गुरुवार तारीख 11 जुलाई 2013।

उस दिन रह-रहकर छिटपुट वर्षा हो रही थी। मैं हाथ में अपना नियुक्ति पत्र थामे बारिश के रुकने का इंतजार कर रहा था। वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही थी। स्कूल मेरा पहले से देखा हुआ था। स्कूल मेरी नजरों के सामने घूम रहा था। मैं जल्द से जल्द स्कूल पहुँचकर ज्वाइन करना चाह रहा था। बारिश को न रुकता देख मैं छाता लेकर निकल पड़ा। गाँव के बाहर कुछ दूर जाने पर बारिश का नामोनिशान न था, केवल बादल छाए थे।

मैं स्कूल पहुँचा। सभी बच्चे बरामदे में बैठे हुए थे। वहीं प्रधानाध्यापिका और एक सहायक शिक्षक बैठे हुए थे। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि क्लास चल रही है। मैंने पहुँचते ही सबको यथोचित अभिवादन कर आने का कारण बताते हुए अपना परिचय दिया। यह जानकर कि मेरी नियुक्ति उनके स्कूल में हो गई है वे बहुत खुश हुए।

प्रधानाध्यापिका ने मुझे कार्यभार ग्रहण कराया। शिक्षक महोदय ने बच्चों से मेरा परिचय कराया। फिर मुझे बच्चों के साथ अकेला छोड़ दिया ताकि मैं अपने स्तर से बच्चों से मिल लूँ। लेकिन ऐसा तो मैंने सोचा ही नहीं था। मैंने स्थिति को सम्‍भालते हुए बच्चों से अपना परिचय एक बार फिर से दिया और बच्चों से भी उनका परिचय देने को कहा। लेकिन लगभग 90 प्रतिशत बच्चे अपना संतोषजनक परिचय नहीं दे  सके। मैंने कुछ विषयगत जानकारी चाही तो पता चला कि गणित और अँग्रेजी के अतिरिक्त उन्हें अन्य विषयों की कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि वे विषय ज्यादा नहीं पढ़ाए जाते। कहा जाता है कि गणित और अँग्रेजी कठिन विषय हैं इसलिए इन्हें अच्छी तरह पढ़ और रट लो। शेष विषय अपने आप किताब या गाइड से लिख लो। मैं हैरान था कि ऐसा कैसे हो सकता है। बच्चों का व्यवहारिक ज्ञान और समझ भी  बहुत कमजोर थी। वे केवल यस सर और नो सर बोलना जानते थे। बच्चे अपनी बात सही तरीके से नहीं रख पा रहे थे। बच्चों का शैक्षिक स्तर दयनीय था।

लेकिन बातचीत में एक बात बहुत बढ़िया निकली कि बच्चे मेहनती और प्रयत्नशील हैं। उसका कारण था कि विद्यालय का परिसर बहुत साफ-सुथरा था। हालाँकि वहाँ कोई पेड़-पौधे नहीं थे। सभी बच्चे मिलकर परिसर की सफाई करते थे। नियमित प्रार्थना होती थी। बच्चों में अनुशासन था। लेकिन बातचीत में यह तथ्य भी उभरकर आया कि यह अनुशासन डर के कारण है न कि स्वप्रेरित।

इस तरह मैंने अपने पहले दिन सरकारी स्कूल की सच्ची लेकिन बेरंग तस्‍वीर देख ली थी और मन में संकल्प लिया था कि मैं इसमें जीवन के विविध रंग भरूँगा। आज जब पीछे लौटकर देखता हूँ तो आपने आप को कुछ संतुष्ट पाता हूँ। लेकिन रास्ता बहुत लम्बा है। कदम दर कदम परीक्षा है। मैंने बच्चों को अपना मीत बना लिया है। हम हाथों में हाथ डाले साथ-साथ बढ़ते रहेंगे। मुझे बच्चों का साथ अच्छा लगता है।

~धीरेन्द्र सिंह,अनुदेशक (शारीरिक शिक्षा), पूर्व माध्‍यमिक विद्यालय पल्हरी, क्षेत्र- नरैनी, जिला बांदा, उत्तर प्रदेश। (शिक्षक से अनुभव लिखवाने और टीचर्स ऑफ इण्डिया तक पहुँचाने के लिए हम प्रमोद दीक्षित ‘मलय’ के आभारी हैं।)

Post a Comment

0 Comments