लखनऊ। शिक्षामित्र समायोजन में प्रक्रियागत त्रुटियों का खामियाजा तगड़ा झटका खा चुकी उत्तर प्रदेश सरकार अब लेखपाल भर्ती परीक्षा के मामले में कोर्ट से लगभग ऐसा ही झटका खा सकती है। लखनऊ हाईकोर्ट ने लेखपाल परीक्षा प्रणाली में परिवर्तन को कोर्ट ने प्रथम द्रष्टया क़ानूनी निगाह से परखने की आवश्यकता माना है। कोर्ट ने माना कि परीक्षा परिणाम आने से पहले ही कोर्ट अपना निर्णय सुना दे जिससे की कोई सामाजिक समस्या सामने न आये। कोर्ट ने अगली तारीख ७ अक्टूबर नियत की है। कोर्ट ने इस बीच सरकार को पक्ष रखने का समय दिया है।
गैर-क़ानूनी तरीके से परीक्षा में दखल--हाईकोर्ट की बेंच जस्टिस दिनेश महेश्वरी और जस्टिस राकेश श्रीवास्तव ने अभ्यर्थी धनजय कुमार आदि के द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि हमें लगता है की मामले में विचार की जरूरत है। याचियों के वरिष्ठ अधिवक्ता एलपी मिश्र का तर्क था कि जब लेखपाल का पद अधीनस्थ सेवा चयन आयोग २०१४ के अधीन आता है। याचियों का कहना है सरकार ने अधिनियम २ का गलत इस्तेमाल कर गैर क़ानूनी तरीके से परीक्षा में दखल दिया है। तमाम नजीरों को पेश कर याचियों के अधिवक्ता ने कहा कि सरकार का मनमाने तरीके से परीक्षा करना विधि सम्मत नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने एक और दलील पेश करते हुए कहा कि लेखपाल की सेवाएँ यूपी लेखपाल सेवा नियमावली २००६ से होती है।नियमावली में यह स्पष्ट है की लेखपाल का कैडर जिलेवार होता है जिसका की नियुक्ति प्राधिकारी असिस्टेंड कलेक्टर होता है। आगे बताया कि नियम १५ के तहत बोर्ड ऑफ़ रेवन्यू को एक चयन समिति गठित कर लेखपाल के पद पर चयन करने का अधिकार है। लेकिन इस बार बोर्ड ऑफ़ रेवन्यू ने नई नियमावली २०१५ गैर क़ानूनी के तहत जिलाधिकारी को चयन समिति का चेयरमेन बना दिया और चेयरमेन को अपने हिसाब से अन्य सदस्य नियुक्त करने का अधिकार दे दिया।
बोर्ड ऑफ़ रेवन्यू को बदलाब का हक नहीं--इस सबके पीछे तर्क देते हुए कहा गया कि यह पूरी प्रक्रिया गैर क़ानूनी तौर पर पूरी कराई जा रही है जो कि बदलाब का अधिकार बोर्ड ऑफ़ रेवन्यू को नहीं है। पहले तो बोर्ड को परीक्षा इस तरह प्राइवेट एजेंसी से कराने का कोई अधिकार नहीं है। सरकार ने अपने सूक्ष्म शपथ पत्र में कहा है कि लेखपाल पद की परीक्षा आयोग से ना कराना गैर क़ानूनी नहीं है। प्रत्येक जिले में जिलाधिकारी के सुपरविजन में परीक्षा करायी गई है। साथ ही पुरे सिस्टम को सेंट्रलाइज्ड किया गया है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचियों के पक्ष को मजबूत मानते हुए सरकार को विस्तृत शपथ पत्र पेश करने को आदेश दिया है। अब अगली सुनवाई ७ अक्टूबर को होगी।
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