टीईटी संघर्ष मोर्चा बनाकर सरकारी तंत्र की खामियां की उजागर : 'तंत्र ' की खामियों से ही मिला लडऩे का 'मंत्र ' : शिवकुमार
लखनऊ। अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने के हाईकोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय वाले मुकदमे में याची सुलतानपुर निवासी शिवकुमार पाठक को लडऩे का मंत्र भी तंत्र की खामियों से ही मिला। उन्होंने बेसिक टीचर बनने की सोची और बीएड कर टीईटी परीक्षा भी पास की, लेकिन शासन- सत्ता के मकडज़ाल में उलझे फैसलों से जब नौकरी दूर होती नजर आई तो पाठक ने टीईटी संघर्ष मोर्चा बना डाला। साथ ही सरकारी तंत्र की खामियां उजागर कराने में जुट गए।
सड़क पर धरना प्रदर्शन भी किया
लंभुआ ब्लाक के जमखुरी (सबसुखपुर) गांव निवासी नलकूप चालक उमाशंकर पाठक के बेटे शिवकुमार की शुरुआती पढ़ाई गांव में ही हुई। हाईस्कूल व इंटर के बाद कमला नेहरू भौतिक एवं सामाजिक विज्ञान संस्थान से बीएससी की और फिर रणवीर रणंजय पीजी कालेज अमेठी से बीएड की परीक्षा पास कर इलाहाबाद में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गए। वर्ष 2011 की शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) में भी चयन हो गया, लेकिन वर्ष 2012 में सत्ता बदली और चयन प्रक्रिया ठप हो गई। तभी पाठक टीईटी पास बेरोजगारों के साथ संघर्ष मोर्चा बनाकर जुट गए सरकार को जगाने। अपने शहर से लेकर राजधानी लखनऊ तक सड़क पर उतरे और धरना-प्रदर्शन भी किया। जब बात नहीं बनी तो अदालत की शरण ली।
तीन मामलों में जा चुके हैं हाई कोर्ट
शिवकुमार पाठक ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में नियुक्तियों में बरती जा रही अनियमितता पर पहली बार उच्च न्यायालय में करीब तीन वर्ष पूर्व याचिका दायर की थी । इस प्रकरण की सुनवाई शुरू हो चुकी थी कि उन्होंने 72825 बेसिक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में शासन के रवैये पर अंगुली उठाते हुए एक और याचिका दायर कर दी। शिक्षामित्रों के शिक्षक पदों पर समायोजित करने के सरकार के फैसले को भी पाठक ने ही कठघरे में खड़ा किया। वे लड़ाई हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक ले गए। बेसिक जूनियर हाईस्कूल में गणित एवं विज्ञान शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर गुणवत्तापरक शिक्षा का मुद्दा उठाया और एक और रिट हाई कोर्ट में दायर कर शासन और महकमे के जिम्मेदारों को सांसत में डाला।
बर्खास्तगी पर उठे सवाल
सूबे में 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती शुरू हुई तो शिवकुमार भी काउंसलिंग के जरिये जनवरी में चुन लिये गए। उन्हें सैद्धांतिक प्रशिक्षण के लिए लम्भुआ ब्लाक के पाण्डेयपुर प्राथमिक विद्यालय में नियुक्ति दी गई। इसी दौरान उन्हें बिना अनुमति के 12 दिन गैरहाजिर दर्शाकर गत 17 अगस्त को प्रशिक्षु शिक्षक के पद से बर्खास्त कर दिया गया। बीएसए रमेश यादव कहते हैं कि उक्त अनुपस्थिति से यह स्पष्ट होता है कि वे एक योग्य शिक्षक बनने की श्रेणी में नहीं आते और कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों के प्रति लापरवाह हैं। उधर, इस कार्रवाई को पाठक ने पूर्वाग्रह प्रेरित करार दिया है। कहा है कि शासन के दबाव में बीएसए ने ऐसा फैसला किया है। वे जितने दिन अनुपस्थित रहे, उसके लिए बाकायदा खण्ड शिक्षा अधिकारी से अनुमति ली थी। वे इस संदर्भ में विधि विशेषज्ञों की राय लेकर कानूनी कार्यवाही करेंगे। शिवकुमार की पत्नी संध्या पाठक भी गोण्डा में प्रशिक्षु शिक्षक हैं।
खबर साभार : दैनिकजागरण
यूपी : प्रशिक्षु शिक्षक एसके पाठक की बर्खास्तगी पर विवाद
नेताओं व अफसरों के बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी स्कूलों में भेजने से संबंझित हाईकोर्ट के आदेश में याचिकाकर्ता प्रशिक्षु शिक्षक शिव कुमार पाठक की बर्खास्तगी की खबर गुरुवार को यूपी सियासी व शैक्षणिक हलकों में जोर-शोर से चली। सियासी हलकों में इसे याचिका करने के खिलाफ बदले की कार्रवाई बताया जा रहा है लेकिन मामले की तह में जाने पर पता चला कि शिक्षक को 13 अगस्त को ही बर्खास्त कर दिया गया था।
प्रशिक्षु शिक्षक शिव कुमार पाठक के पद पर तैनाती के आदेश को सुलतानपुर के बेसिक शिक्षा अधिकारी रमेश यादव ने 13 अगस्त को ही निरस्त कर दिया था। दरअसल, श्री पाठक 12 दिनों तक प्रशिक्षण से अनुपस्थित रहे।
यादव का कहना है कि प्रशिक्षु शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण के दौरान छुप्ती का नियम नहीं है। उन्हें नियमत: रविवार को भी आना होता है लेकिन श्री पाठक 21 मई से चल रहे सैद्धांतिक प्रशिक्षण से 12 दिन अनुपस्थित रहे। उनसे इस पर स्पष्टीकरण मांगा गया। पहली बार में जवाब न देने पर उनसे दोबारा जवाब मांगा गया। दोबारा उन्होंने स्पष्टीकरण दिया लेकिन वह संतुष्ट होने योग्य नहीं था। लिहाजा पाया गया कि पाठक अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों के प्रति लापरवाह हैं और योग्य शिक्षक की श्रेणी में नहीं आते।
दूसरी तरफ, श्री पाठक लगातार इस आदेश के बारे में अनभिज्ञता जाहिर कर रहे हैं। उनका कहना है कि उन्हें यह आदेश हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्राप्त हुआ।
सोशल साइट पर छिड़ी बहस
सोशल साइटों पर पाठक की बर्खास्तगी का आदेश 15 अगस्त से मौजूद है और उस पर लगातार समर्थन और विरोध में कमेंट्स भी आ रहे हैं। एसके पाठक ने ही सुप्रीम कोर्ट तक 72,825 प्रशिक्षु शिक्षकों की लड़ाई लड़ी है। उनकी याचिका पर ही टीईटी मेरिट से नियुक्ति करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है।
खबर साभार : हिन्दुस्तान
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टीईटी संघर्ष मोर्चा बनाकर सरकारी तंत्र की खामियां की उजागर : 'तंत्र ' की खामियों से ही मिला लडऩे का 'मंत्र ' : शिवकुमार
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