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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

बच्चों के दूध पर फिर रहा 'पानी' : प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों के बच्चों को दूध पिलाने की कवायद पटरी से उतरती नजर आ रही , शासन से बच्चों को दूध पिलाने का बजट निर्धारण व उचित निर्देश जारी न होने से सबकुछ खानापूर्ति तक सीमित  

बच्चों के दूध पर फिर रहा 'पानी' : प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों के बच्चों को दूध पिलाने की कवायद पटरी से उतरती नजर आ रही ,शासन से बच्चों को दूध पिलाने का बजट निर्धारण व उचित निर्देश जारी न होने से सबकुछ खानापूर्ति तक सीमित 


इलाहाबाद : प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों के बच्चों को दूध पिलाने की कवायद पटरी से उतरती नजर आ रही है। शासन से बच्चों को दूध पिलाने का बजट निर्धारण व उचित निर्देश जारी न होने से सबकुछ खानापूर्ति तक सीमित है। बुधवार को लगातार दूसरी बार जिला के 565 स्कूलों में दूध नहीं बंटा। जहां वितरण हुआ भी उसमें शुद्धता का अभाव नजर आया। विद्यालयों में दूध के नाम पर सफेद पानी का वितरण हुआ। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि मिड डे मील के चंद पैसों से दूध और चावल-कोफ्ता का इंतजाम कैसे हो सकता है? शासन का निर्देश है तो दूध तो पिलाना ही है, परंतु उसमें पानी मिलाना भी हमारी मजबूरी है।

प्रदेश सरकार के सचिव एचएल गुप्त ने 24 जून को आदेश जारी कर मिडडे मील में हर बुधवार को दलिया की जगह बच्चों को दूध देना निर्धारित कर दिया। इसके तहत बच्चों को कोफ्ता-चावल के साथ दो सौ मिलीलीटर उबला हुआ दूध देना है। आदेश आने पर 15 जुलाई को दूध का वितरण तो हुआ परंतु खानापूर्ति के नाम पर। कहीं पैकेट का दूध बच्चों को पिलाया गया, कहीं उसकी भी व्यवस्था नहीं हो पायी। ऐसी ही स्थिति इस बार भी रही। शासनादेश का पालन करने के लिए जहां दूध का वितरण हुआ भी, वहां सबकुछ खानापूर्ति तक सीमित रहा। बच्चों के दूध में पानी मिलाकर पिलाया गया। स्थिति यह रही कि 30-40 बच्चों को एक से डेढ लीटर दूध मंगाकर पिलाया गया।

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खर्च 15, मिल रहे 3.59 रुपये

मिड डे मील के तहत बुधवार को बच्चों को दूध, कोफ्ता-चावल वितरित होना है। विद्यालय के शिक्षकों का कहना है अकेले दो सौ मिलीलीटर का दाम ही आठ रुपये से अधिक आ रहा है। इसमें चावल व कोफ्ता का दाम जोड़ा जाए तो पूरा खर्च 15 रुपये के लगभग पहुंच जाता है। परंतु प्राइमरी में 3.59 रुपये मिल रहा है। पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में 5.38 रुपये प्रति बच्चे के पीछे खर्च निर्धारित है, जबकि उनके पीछे 17 से 18 रुपये खर्च आ रहा है।

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शुद्धता की हो रही अनदेखी

परिषदीय विद्यालयों में बच्चों को दूध वितरण के लिए न अलग से बजट निर्धारित है, उसे जांचने का कोई पैमाना तय किया गया। शिक्षक मनचाहे जगह से दूध खरीदकर बच्चों को पिला रहे हैं। कोई पैकेट का दूध ले रहा है, कोई टंकी वालों से खरीद रहा है। वहीं अचानक सप्ताह में एक दिन दूध की खपत बढ़ने से उसमें मिलावट का अंदेशा भी बढ़ गया है। दूध में यूरिया मिलाया गया है या पानी, सोडा। इसकी पड़ताल कैसे होगी, उसके लिए न टीम का गठन हुआ है न ही कोई मानक बनाया गया है। ऐसे में बच्चों को मिलावटी दूध पिलाया जा सकता है, जो उनके स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकता है। अगर कोई बच्चा बीमार पड़ता है तो दूध विक्रेता के खिलाफ विभाग कोई कार्रवाई भी नहीं कर सकता, क्योंकि उसके पास न रसीद होगी, न ही कोई अन्य सुबूत।

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प्रधानाध्यापिका के निलंबन की संस्तुति

बेसिक शिक्षा अधिकारी राजकुमार ने दूध का वितरण न होने वाले विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों को नोटिस जारी किया है। उन्होंने दूध का वितरण न होने का कारण पूछा है। प्राथमिक विद्यालय नखास कोहना बुधवार को सुबह 8.25 बजे तक बंद था। यहां मिड डे मील में दूध का वितरण भी नहीं हुआ। इस पर खंड शिक्षा अधिकारी नगर ज्योति शुक्ला ने यहां विद्यालय की प्रधानाध्यापिका कमर फातिमा के निलंबन की संस्तुति की है। साथ ही सारे शिक्षक-शिक्षिकाओं का एक दिन का वेतन काटने की संस्तुति की। वहीं प्राथमिक विद्यालय मान्यवर कांशीराम आवास योजना झलवा में दूध का वितरण नहीं हुआ। यहां के सारे शिक्षकों को कारण बताओ नोटिस जारी की गई।

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आज होगी समीक्षा बैठक

मिडडे मील में दूध का नियमित वितरण हो, उसके मद्देनजर गुरुवार को एडी बेसिक मुकेश रायजादा की अध्यक्षता में बैठक होगी। मिडडे मील के समन्वयक राजीव त्रिपाठी ने बताया कि सर्वशिक्षा अभियान कार्यालय में होने वाली बैठक में मंडल के सारे बेसिक शिक्षा अधिकारी एवं इलाहाबाद के सभी खंड शिक्षा अधिकारी मौजूद रहेंगे। इसमें दूध वितरण में आ रही दिक्कतों पर चर्चा करने के साथ उसके निराकरण को कदम उठाया जाएगा।

         खबर साभार : दैनिकजागरण

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  1. बच्चों के दूध पर फिर रहा 'पानी' : प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों के बच्चों को दूध पिलाने की कवायद पटरी से उतरती नजर आ रही , शासन से बच्चों को दूध पिलाने का बजट निर्धारण व उचित निर्देश जारी न होने से सबकुछ खानापूर्ति तक सीमित  
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