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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

दूध का पैसा ही नहीं, बच्चों को पिलाएंगे पानी : बच्चों को दूध पिलाने का निर्देश मिला है लेकिन विभाग दूध के लिए फूटी कौड़ी भी देने को तैयार नहीं

दूध का पैसा ही नहीं, बच्चों को पिलाएंगे पानी : बच्चों को दूध पिलाने का निर्देश मिला है लेकिन विभाग दूध के लिए फूटी कौड़ी भी देने को तैयार नहीं

इलाहाबाद : बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों के बच्चों को दूध पिलाने का निर्देश मिला है लेकिन विभाग दूध के लिए फूटी कौड़ी भी देने को तैयार नहीं है। मिड डे मील के चंद पैसों से ही दूध व चावल-कोफ्ता का इंतजाम होगा। ऐसे में मास्साब की मजबूरी है कि वह दूध की जगह बच्चों को पानी ही पिलाएंगे। इसीलिए लिखा-पढ़ी के बिना ही मनमाने तरीके से दूध लेकर बच्चों को बांटा गया है और आगे भी ऐसी ही स्थिति रहेगी।

प्रदेश सरकार के सचिव एचएल गुप्त ने मिडडे मील में बुधवार को बच्चों को दलिया देने की जगह दूध देने का आदेश 24 जून को दिया था। इसके तहत बच्चों को कोफ्ता-चावल के साथ दो सौ मिलीलीटर उबला हुआ दूध देना है। आदेश आने के बाद 15 जुलाई को दूध का वितरण तो हुआ परंतु खानापूर्ति ही की गई। कहीं पैकेट का दूध बच्चों को पिलाया गया, कहीं उसकी भी व्यवस्था नहीं हो पायी।

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अलग से कोई बजट नहीं

मिडडे मील के तहत स्कूलों में बच्चों को वितरित होने वाले दूध, कोफ्ता-चावल के लिए शासन ने अलग से कोई बजट निर्धारित नहीं किया। प्राइमरी में 3.59 एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में 5.38 रुपये प्रति बच्चे के पीछे खर्च होता है। इतने पैसे में ही हर बच्चे को दो सौ मिलीलीटर दूध और कोफ्ता-चावल वितरित करना है। शिक्षकों का कहना है कि अगर हम बच्चों को सिर्फ दूध ही पिलाएं तो उसका खर्च आठ से दस रुपये के बीच आता है।

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कहीं से लें दूध, पूरी छूट

बच्चों को दूध वितरण को लेकर विभागीय उदासीनता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दूध की खरीद के लिए स्कूलों को पूरी छूट दे रखी है। विद्यालय प्रबंध समिति चाहे पैकेट वाला दूध ले या किसी दूधिए से। यह उनकी मर्जी पर निर्भर करेगा। इसके बदले उसे रसीद भी नहीं लेनी।

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स्वास्थ्य पर भारी न पड़े दूध

परिषदीय विद्यालयों में बच्चों को बंटने वाले दूध की जांच की कोई व्यवस्था नहीं है। बच्चों को मिलावटी दूध मिल रहा है या सही। दूध में यूरिया मिलाया गया है, पानी या सोडा। इसकी पड़ताल कैसे होगी, उसके लिए न टीम का गठन हुआ है न ही कोई मानक बनाया गया है। ऐसे में बच्चों को मिलावटी दूध पिलाया जा सकता है, जो उनके स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकता है। अगर कोई बच्चा बीमार पड़ता है तो दूध विक्रेता के खिलाफ विभाग कोई कार्रवाई भी नहीं कर सकता, क्योंकि उसके पास न रसीद होगी और न ही कोई अन्य सुबूत।

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दूध वितरण के लिए शासन ने अलग से कोई बजट नहीं दिया है। पहले से मिल रहे पैसे में दूध व चावल-कोफ्ता देना है। दूध कहीं से भी खरीदा जा सकता है, इसकी पूरी छूट है, लेकिन वह मिलावटी न हो, ध्यान देना होगा।
-राजकुमार, बेसिक शिक्षा अधिकारी।

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