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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मिड-डे मील में बच्चों को दूध : सवाल उठता है कि क्या सरकार शिक्षकों को पढ़ाई छोड़ बच्चों के दूध की व्यवस्था करने की छूट देने वाली है? या सरकार के इस फैसले से अदूरदर्शिता साफ तौर पर दिखाई दे रही है क्या?

मिड-डे मील में बच्चों को दूध : सवाल उठता है कि क्या सरकार शिक्षकों को पढ़ाई छोड़ बच्चों के दूध की व्यवस्था करने की छूट देने वाली है? या सरकार के इस फैसले से अदूरदर्शिता साफ तौर पर दिखाई दे रही है क्या?

राज्य सरकार ने परिषदीय विद्यालयों में मध्याह्न् भोजन के साथ सप्ताह में एक दिन बच्चों को दूध भी दिए जाने का निर्णय किया है। इस फैसले के पीछे सरकार की भावना स्वागत योग्य है। इस निर्णय से उन गरीब बच्चों को दूध के रूप में पौष्टिक आहार मिल सकेगा, जो कुपोषण के शिकार हैं अथवा जिन्हें किन्हीं कारणों से पौष्टिक भोजन नहीं मिल पा रहा था, लेकिन ऐसा फैसला लेते समय अधिकारियों ने व्यावहारिक पहलुओं को नजरअंदाज किया, जिसके कारण पहले ही दिन से समस्याएं सामने आने लगीं। ऐसा निर्णय किए जाने से पहले सरकार को सोचना चाहिए था कि आखिर किस तरह सुदूरवर्ती क्षेत्रों के बच्चों तक शुद्ध दूध पहुंच पाएगा। 

इस आदेश के अनुपालन का आज पहला दिन था और पहले ही दिन तमाम खामियां सामने आ गईं। लगभग हर जिले के तमाम सुदूर क्षेत्रों तक दूध पहुंचाया ही नहीं जा सका। कई स्थानों पर तो दूध पहुंचने से पहले ही फट गया। वहीं लखीमपुर में कई बच्चे खराब दूध पीने से बीमार हो गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इस भीषण गर्मी में जब कई बार फ्रिज में रखा दूध भी खराब हो जाता है, ऐसे में गांव-गांव तक सही-सलामत दूध बच्चों तक पहुंचाना कितना कठिन है यह आसानी से समझा जा सकता है। 

लखनऊ में दूध सप्लाई करने वाली संस्था पराग ने बूथों तक पहुंचाने के बाद दूध तत्काल गर्म करने की आवश्यकता जताई है। साफ है कि बाकी क्षेत्रों में यह कवायद आसान नहीं। वहीं कई क्षेत्रों में अध्यापक पढ़ाने के बजाय गांव-गांव जाकर दूध की तलाश करते रहे। सवाल उठता है कि क्या सरकार शिक्षकों को पढ़ाई छोड़ बच्चों के दूध की व्यवस्था करने की छूट देने वाली है। 

सरकार के इस फैसले में उसकी अदूरदर्शिता साफतौर पर देखी जा सकती है। सवाल है कि क्या बच्चों को पौष्टिक आहार के लिए सिर्फ दूध ही पहुंचाया जाना जरूरी था? क्या इसके आसान विकल्पों पर विचार नहीं किया जा सकता था? दूध के स्थान पर फल वितरित किए जाने पर भी विचार किया जा सकता था, पर शायद इस विषय में सोचा नहीं गया। अन्य विकल्पों के लिए भी रास्ते खुले हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस अदूरदर्शी फैसले के बाद सरकार आगे जो भी निर्णय करेगी, वह पुख्ता होगा और उसमें इस तरह की खामियां सामने नहीं आएंगी।

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