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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

बेमानी है शिक्षा का अधिकार छात्र शिक्षक के अनुपात का उल्लंघन : सरकारी में बैठने की जगह नहीं,निजी स्कूल में नो-एंट्री-

बेमानी है शिक्षा का अधिकार छात्र शिक्षक के अनुपात का उल्लंघन : सरकारी में बैठने की जगह नहीं,निजी स्कूल में नो-एंट्री-

लखनऊ : लोगों के कपड़े धोकर अपने घर का गुजारा चलाने वाला नागेश अपने बच्चों को पढ़ाना चाहता है। मुफलिसी में रहते हुए भी उसका ख्वाब है कि उसके बच्चे पढ़-लिख कर समाज में उसका नाम रोशन करें। बगल में सरकारी स्कूल है, तो सोचा कि इसी में दाखिला दिलवा दिया जाए। लेकिन स्कूल में कदम रखते ही देखा कि चार कमरों के स्कूल में अकेले मास्टर साहब 200 बच्चों को पढ़ाते हैं। इधर-उधर से कर्ज मांगा और बच्चों को प्राइवेट स्कूल में दाखिला दिलाया। हालांकि नागेश अपने बच्चों को यहां फ्री में भी पढ़ा सकता था क्योंकि आरटीई के तहत उसका यह अधिकार है। हालांकि, सरकारी सिस्टम के हाथ इतने कमजोर हो गए हैं कि उसे उसका हक नहीं दिला पा रहे।

यह कहानी अकेले नागेश की ही नहीं बल्कि लाखों परिवारों की है, जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन जी रहे हैं। सालों पहले इन जैसे तमाम परिवारों के लिए देश में शिक्षा का अधिनियम बना दिया गया था ताकि इन परिवारों के 6 से 14 साल तक के बच्चे फ्री में पढ़ सकें। बावजूद इसके बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे आज भी प्राइमरी एजुकेशन से दूर हैं। अकेले लखनऊ में तमाम सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहां बच्चों की संख्या निर्धारित मानकों से ज्यादा है। दो से चार कमरों के स्कूल में 200 से 500 तक की छात्र संख्या है। जहां एक-एक मास्टर पहली से पांचवी तक के बच्चों को अकेले पढ़ा रहे हैं, लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारी प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को दाखिला दिलाने के बजाए इस बात की दुहाई देते ज्यादा दिखते हैं कि दाखिला करीब के सरकारी स्कूल में दिया जाए।

छात्र शिक्षक के अनुपात का उल्लंघन-

राइट टू एजुकेशन (आरटीई) के तहत पहली से पांचवी क्लास तक के लिए तीस व 6 से 8 के लिए 35 बच्चों का एडमिशन होना चाहिए। इससे अधिक एडमिशन पर अतिरिक्त कक्ष व शिक्षकों की व्यवस्था करनी होगी। यह नियम सरकारी व निजी दोनों तरह के स्कूलों पर लागू होता है। ऐसे में सवाल यह है कि निजी स्कूल इसी नियम के तहत निर्धारित सीट भर जाने पर गरीब बच्चों को एडमिशन देने से मना कर देते हैं। ऐसे में मजबूर अभिभावक पहले से ही फुल सरकारी स्कूल में बच्चों को दाखिले के लिए डाल देते हैं। जहां न उसके बैठने का समुचित इंतजाम है ना पढ़ने का।

"नगर क्षेत्र में हमारे पास समस्या है। कई जगह तो स्कूल किराए के भवनों में चल रहे हैं। हम किसी को भी एडमिशन के लिए मना नहीं कर सकते हैं। कई स्कूलों में आरटीई के तहत निर्धारित मानक से ज्यादा बच्चे पढ़ रहे हैं। अगर कोई चाहे तो सरकारी छोड़कर निजी स्कूल में दाखिला ले सकता है। इसके लिए आवेदन करना होगा, जिसके बाद एडमिशन दिलाया जा सकेगा।"
- प्रवीण मणि त्रिपाठी, बीएसए
सरकारी विद्यालयों के हालात

प्रा. विद्यालय लाजपत नगर : छात्र संख्या- लगभग 500, तीन कमरे, एक बरामदा, तीन टीचर व तीन शिक्षामित्र।

प्रा. विद्यालय इरादत नगर : छात्र संख्या- 400, तीन कमरे, दो टीचर, तीन शिक्षामित्र।

प्रा. विद्यालय फैजुल्लागंज : छात्र संख्या- 275, दो टीचर, दो कमरे

प्रा. विद्यालय मटियारी : छात्र संख्या- 300, दो कमरे, तीन टीचर दो शिक्षामित्र

प्रा. विद्यालय पीर नगर : 200 बच्चे, एक टीचर, 4 कमरे।

           खबर साभार : नवभारतटाइम्स

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