आरटीई को आंकने का यह समय पर्याप्त नहीं : शिक्षा का अधिकार कानून लागू हुए पांच वर्ष हो गए, पर अभी इसका असर जमीन पर नहीं उतरा है-
"अनुमान लगाया जा सकता है कि जिन स्कूलों में प्रशिक्षित शिक्षक नहीं हैं, उनमें बच्चों के सीखने, उन्हें सिखाने का स्तर क्या होगा? ऐसे में, अभी आरटीई के असर को देखने और उसके बारे में कोई धारणा बनाने की बात जल्दबाजी कही जाएगी। हमें कुछ और समय व सुविधाएं देने की जरूरत है, साथ ही प्रशिक्षण देने की भी।"
शिक्षा का अधिकार कानून कितना सफल हुआ और हमारे समाज पर क्या असर पड़ा, इससे टटोलने के लिए पांच साल का समय ज्यादा नहीं है। जिस कानून के बनने में करीब 100 साल का वक्त लगा, उसके परिणाम को लेकर हम कुछ ज्यादा जल्दबाजी कर रहे हैं। 31 मार्च, 2015 अंतिम तारीख थी, छह से 14 साल तक के सभी बच्चों को बुनियादी शिक्षा मुहैया कराने की। लेकिन विभिन्न राज्यों के स्कूलों की हालत पर नजर डालें, तो पता चलता है कि आरटीई को पूर्णतया प्रभावशाली बनने में दस साल का समय भी अभी कम पड़ेगा।
नेशनल कोलिशन फॉर एजुकेशन की रिपोर्ट पर गौर करें, तो देश के कई राज्यों में चलने वाले सरकारी स्कूलों को बंद किया जा रहा है। राजस्थान में 17,129, गुजरात में 13,450, महाराष्ट्र में 13,905, कर्नाटक में 12,000 और आंध्र प्रदेश में 5,503 स्कूल बंद कर दिए गए।
कई राज्यों में शिक्षकों के पद भी खाली हैं। कल्पना करना कठिन नहीं कि जिन राज्यों में पर्याप्त शिक्षक, स्कूल ही नहीं, वहां आरटीई कानून किस आधार पर काम करेगा?
देश में पांच लाख से भी ज्यादा शिक्षकों के पद रिक्त हैं। जहां स्कूल हैं, वहां शिक्षक नहीं, जहां शिक्षक हैं, वहां बच्चे गायब। दूसरी बड़ी समस्या है कि जहां शिक्षक नहीं, वहां पैराटीचर, शिक्षामित्र व अन्य संज्ञाओं से काम चलाए जा रहे हैं। शिक्षा की गुणवत्ता पर असर डालने वाले कई और घटक हैं, जिनको हम नजरअंदाज नहीं कर सकते।
असर, प्रथम, डाइस आदि सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं की चिंता शिक्षा में गुणवत्ता को लेकर है। इनकी रिपोर्टो में पाएंगे कि बच्चों को अपनी कक्षा व आयु के अनुसार जिस स्तर की समझ होनी चाहिए, वह नहीं है। इनकी रिपोर्टे बताती हैं कि कक्षा छठी में पढ़ने वाले बच्चों को कक्षा एक व दो के स्तर के भाषायी कौशल और गणित की समझ नहीं है। इसका मतलब है कि हमारा ध्यान महज कक्षाओं में भीड़ जमा करके यह घोषणा करने पर है कि हमने फलां-फलां राज्य में सभी बच्चों को स्कूल में प्रवेश करा दिए हैं।
बुनियादी शिक्षा की गुणवत्ता को सीधे प्रभावित करने वाले जिन तत्वों को हम मोटे तौर पर देख पाते हैं, उनमें शिक्षक, पाठ्यक्रम, पाठ्य-पुस्तक और स्कूली परिवेश हैं। लेकिन जब जिम्मेदारी का ठीकरा फोड़ने की बारी आती है, तो सबसे माकूल सिर हमें शिक्षक का नजर आता है, जबकि समझने की कोशिश करें, तो शिक्षक एक हिस्सा मात्र है। बुनियादी शिक्षा की गुणवत्ता का भार कई कंधों पर है, जिनको पहचान कर हमें उन्हें मजबूत करने होंगे।
अनुमान लगाया जा सकता है कि जिन स्कूलों में प्रशिक्षित शिक्षक नहीं हैं, उनमें बच्चों के सीखने, उन्हें सिखाने का स्तर क्या होगा? ऐसे में, अभी आरटीई के असर को देखने और उसके बारे में कोई धारणा बनाने की बात जल्दबाजी कही जाएगी। हमें कुछ और समय व सुविधाएं देने की जरूरत है, साथ ही प्रशिक्षण देने की भी।
आलेख : भाई कौशलेन्द्र प्रपन्न
( सहयोग : प्रस्तुत पोस्ट भाई चन्द्रभाई जी )
0 Comments