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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

प्राथमिक शिक्षा मौलिक अधिकार : नहीं होना चाहिए शिक्षा का व्यापार-

प्राथमिक शिक्षा मौलिक अधिकार : नहीं होना चाहिए शिक्षा का व्यापार-

"प्रदेश में लगभग 7,00,000 सीटों में से सैकड़ों सीटों पर भी कानून की धारा के तहत गरीब बच्चों के नामांकन नहीं हो पाए हैं।"

लखनऊ (एसएनबी)। प्राथमिक शिक्षा मौलिक अधिकार है, इसका व्यापार नहीं होना चाहिए। यह बात मंगलवार को ऑक्सफेम इण्डिया द्वारा एसकेवीएस व स्टेट कलेक्टिव फॉर राइट टू एजूकेशन के संयुक्त तत्वावधान में जयशंकर प्रसाद सभागार में ‘शिक्षा के अधिकार कानून की धारा 12-1 (ग) के क्रियान्वयन व निजी विद्यालयों में शुल्क नियंत्रण’ विषय पर आयोजित राज्य स्तरीय सम्मेलन में ऑक्सफेम इण्डिया के क्षेत्रीय प्रबंधक नन्द किशोर सिंह ने कही। उन्होंने कहा कि सभी बच्चों तक गुणवत्तापूर्ण अनिवार्य शिक्षा पहुंचाना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है तथा भारत सरकार के पास ही इतना बड़ा व मजबूत तंत्र है जो सभी बच्चों की जरूरतों को पूरा कर सकती है। प्राथमिक शिक्षा में निजी घटकों के हावी होने का बुरा प्रभाव हमारी बच्चियों पर पड़ेगा, जब अभिभावक धन के अभाव में बालिकाओं के बजाए सिर्फ बालकों को ही विद्यालय में भेजेंगे।

उन्होंने कहा कि व्यावसायीकरण का सीधा असर गरीब अभिभावकों विशेषकर दलित, मुस्लिम और शहरी झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों पर पड़ेगा तथा शिक्षा उनकी पहुंच से दूर होती चली जाएगी। आरटीआई फोरम के संयोजक अम्बरीश राय ने कहा कि शिक्षा के अधिकार कानून के सृजन के समय इस बात का ध्यान रखा गया था कि जब एक गरीब बच्चा ऐसे निजी विद्यालय में जाएगा, जहां पढ़ने वाले अमीर बच्चों ने गरीबी नहीं देखी हो तो बच्चों में विचार व सभ्यता का आदान-प्रदान होगा, जिससे समाज में बढ़ती दूरी घटेगी तथा समानता आएगी।

उन्होंने कहा कि बड़ी विडम्बना है कि निजी विद्यालयों के संचालक गरीब बच्चों का दाखिला कानून के अनुसार अपने विद्यालयों में नहीं दे रहे हैं, जिसके परिणाम स्वरूप शिक्षा के अधिकार कानून के लागू होने के पांच वर्ष बाद भी पूरे प्रदेश में लगभग 7,00,000 सीटों में से सैकड़ों सीटों पर भी कानून की धारा के तहत गरीब बच्चों के नामांकन नहीं हो पाए हैं। कहा कि शिक्षा एक अहम सुविधा है जो मानव संसाधन विकास के लिए जरूरी है। इसकी महत्ता को समझते हुए आज का मध्यम वर्गीय परिवार किसी भी हालत में अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा मुहैया कराना चाहता है। मध्यम वर्गीय परिवार के अभिभावकों के इसी सपने का व्यापार निजी विद्यालय कर रहे हैं। अनियंत्रित तरीके से निजी विद्यालय अपने विद्यालयों में शुल्क बढ़ा देते हैं, जिसकी मार मध्यम वर्गीय अभिभावकों को सहनी पड़ती है।

राजस्थान सहित आठ राज्यों में निजी विद्यालयों में मनमाने ढंग से बढ़ते हुए शुल्क को नियंत्रित करने के उद्देश्य से सरकारी आदेश जारी किए गये हैं। उत्तर प्रदेश में भी निजी विद्यालयों में मनमाने ढंग से बढ़ते हुए शुल्क को नियंत्रित करते हुए सरकार को कदम उठाने चाहिए। सम्मेलन में राष्ट्रीय योजना आयोग की पूर्व सदस्य एनी नमला, अधिवक्ता अशोक अग्रवाल आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर आईआईएम के आरटीआई रिसोर्स ग्रुप के सदस्य, 25 फीसद आरक्षण के तहम नामांकित बच्चों के अभिभावक, शिक्षा के अधिकार पर राज्य स्तरीय कार्यशाला |

            खबरसाभार : राष्ट्रीयसहारा

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