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"गुरू उत्सव" पर पीएम का संबोधन दिखाना बाध्यकारी नहीं स्वैच्छिक : स्मृति ईरानी-

"गुरू उत्सव" पर पीएम का संबोधन दिखाना बाध्यकारी नही स्वैच्छिक : स्मृति ईरानी-

नई दिल्ली (वार्ता)। मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने दो टूक कहा है कि पांच सितम्बर को गुरु उत्सव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन को देश के सभी स्कूलों में दिखाने की व्यवस्था बाध्यकारी नहीं है बल्कि वह स्वैच्छिक है। 

श्रीमती ईरानी के सोमवार को राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के 54 वें स्थापना दिवस समारोह का उद्घाटन करने के बाद पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में यह बात कही। शिक्षा में लड़कियों की भगीदारी को बढ़ाने के लिए यह समारोह अयोजित किया गया था। उन्होंने कहा कि गुरुओं के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए 5 सितम्बर को होने वाला गुरु उत्सव एक माध्यम बनेगा जिसमें पहली बार देश के इतिहास में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सभी बच्चों से जुडेंगे, यह एक अनोखा कार्यक्रम होगा जिससेराज्यों में शैक्षिक चैनलों तथा इंटरनेट आदि के माध्यम से प्रधानमंत्री छात्रों के साथ संवाद करेंगे लेकिन यह स्कूलों के लिए पूरी तरह स्वैच्छिक होगा।

 गौरतलब है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय के निर्देश पर स्कूलों को अधिसूचना जारी की गयी है जिसमें 5 सितम्बर की शाम तीन से 4 बजकर 45 मिनट तक प्रधानमंत्री के संबोधन और छात्रों से प्रश्न उत्तर का सीधा प्रसारण करने को कहा गया है। श्रीमती ईरानी ने कहा कि गुरुउत्सव को कुछ लोगों ने राजनीतिक रंग देने की कोशिश की है पर यह समारोह अपने गुरुओं को सम्मान व्यक्त करने के लिए जिन्होंने व्यक्ति के जीवन में अपना योगदान दिया है तथा सम्मान को नई दिशा दी है। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने शिक्षा में लैंगिक संवेदनशीलता बढ़ाने तथा महिलाओं के सशक्तिकरण का वादा किया था। उसे पूरा करने के लिए ही एनसीआरटी ने आज यह कार्यक्रम आयोजित किया था। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार महिलाओं के आर्थिक एवं सामाजिक सशक्तिकरण में जितने सहयोग की जरूरत होगी करेगी और उसमें कोई कमी नहीं आने देगी। 

समारोह के समापन पर केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि जो किताबों में होता है, वही मन पर उतरता है और जो आपके मन पर उतरता है, जिन्दगी उसी से चलती है। उन्होंने कहा कि कन्या की आंखों से अब स्कूली किताबों को देखने की जरूरत है और उसकी इसी दृष्टि से समीक्षा भी की जाएगी। उन्होंने कहा कि पाठ्य पुस्तकें हमारे दिल की तरह होती हैं और इन किताबों से हम भारत को बदल सकते हैं।

     खबर साभार : राष्ट्रीय सहारा

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