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परिषदीय विद्यालयों में शिक्षक बनाने की गारंटी खत्म : ठंडी पड़ी बीएड की मांग -

परिषदीय विद्यालयों में शिक्षक बनाने की गारंटी खत्म : ठंडी पड़ी बीएड की मांग -

लखनऊ। कभी विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण के माध्यम से परिषदीय स्कूलों में शिक्षक बनने की गारंटी देने वाले बीएड पाठ्यक्रम से छात्रों का मोहभंग हो रहा है। पिछले साल तीन काउंसिलिंग के बावजूद बीएड की 25 हजार सीटें खाली रह जाने के बाद इस साल फिर काउंसिलिंग के उपरांत 87 हजार सीटें खाली रह जाना इसका साफ संकेत है।

परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक नियुक्त होने के लिए शैक्षिक योग्यता स्नातक और बीटीसी है। नब्बे के दशक में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों (डायट) में बीटीसी की प्रशिक्षण क्षमता कम होने के कारण बहुत कम संख्या में अभ्यर्थी बीटीसी प्रशिक्षित हो पाते थे जबकि हर साल रिटायर होने वाले शिक्षकों की संख्या कहीं ज्यादा होती थी। जब परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों का घोर संकट पैदा हो गया तो कल्याण सिंह सरकार ने वर्ष 1999 में शिक्षकों की भर्ती के लिए राज्य में पहली विशिष्ट बीटीसी प्रक्रिया अपनायी। इसके तहत बीएड डिग्रीधारकों को छह महीने का विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण देकर सहायक अध्यापक के पद पर तैनाती दे दी जाती थी। वहीं 2001 के बाद कई वर्षो तक नियमित बीटीसी प्रशिक्षण बंद रहा।

वर्ष 1999 से लेकर 2008-09 तक प्रदेश में विशिष्ट बीटीसी के माध्यम से परिषदीय स्कूलों में 1.61 लाख बीएड डिग्रीधारकों को शिक्षक नियुक्त किया गया। विशिष्ट बीटीसी ने बीएड शिक्षा के बाजार को तेज रफ्तार दी। स्नातक उत्तीर्ण नवजवानों को यह महसूस होने लगा कि बीएड की डिग्री हासिल करने के बाद विशिष्ट बीटीसी के जरिये परिषदीय स्कूलों में सरकारी शिक्षक बनने की गारंटी है। इसकी वजह से धड़ल्ले से बीएड कोर्स संचालित करने वाले निजी कालेज भी खुलने लगे। अक्टूबर 2007 में प्रदेश में जहां बीएड कोर्स संचालित करने वाले 773 कालेज थे, वहीं अब उनकी संख्या बढ़कर 1300 के ऊपर पहुंच चुकी है।

शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने पर राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद ने राज्य सरकार को विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण की अनुमति देना बंद कर दिया। राज्य सरकार के विशेष अनुरोध पर एनसीटीई ने उप्र में बीएड डिग्रीधारकों को परिषदीय स्कूलों में शिक्षकों के 72825 रिक्त पदों पर भर्ती की छूट दे दी है। यह भर्ती प्रक्रिया जारी है। छात्रों को आभास हो गया है कि भर्ती के बाद बीएड के जरिये परिषदीय स्कूलों में शिक्षक बनने की राह बंद हो जानी है। वहीं राजकीय और अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षक पदों की कम रिक्तियों के चलते बीएड डिग्रीधारकों को वहां अपने लिए कम संभावनाएं नजर आती हैं। लिहाजा वे बीएड में प्रवेश लेने से कतरा रहे हैं। बीएड की खाली सीटें इसी का नतीजा हैं।

साभार : दैनिक जागरण

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