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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

बीटीसी : पांच से छह लाख में बिक रही सीटें -

BTC : पांच से छह लाख में बिक रही सीटें

१-पैसा देकर बहुसंख्यकों को दिया जाता लाभ
२-अल्पसंख्यक संस्थान कर रहे मनमानी
३-अल्पसंख्यक संस्थानों को सरकार देती है रियायत क्योंकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम इन पर लागू नहीं
४-छात्रों प्रवेश और जांच करने का कोई सिस्टम 
नहीं
५-संस्थानों को एनओसी देने का कार्य प्रदेश सरकार का है 
६-नियुक्तियों में प्रबन्ध तंत्र को रहती है पूरी आजादी

लखनऊ : सूबे में अल्पसंख्यक संस्थान, अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए कम पैसा कमाने के लिए ज्यादा खुल रहे हैं। अल्संख्यक संस्थान का दर्जा मिलने के बाद प्रबंध तंत्र को 50 फीसदी सीटें भरने का अधिकार मिल जाता है।

यूं तो यह अधिकार उन्हीं अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं के दाखिले के लिए होता है, जिसकी मान्यता मिली होती है। यानी संस्थान को बौद्ध, जैन, सिख या फिर मुस्लिम जिस भी अल्पसंख्यक संस्थान की मान्यता लेते हैं उन्हें उसी अल्पसंख्यक समुदाय के 50 फीसदी छात्र-छात्राओं को दाखिला देना होता है।

लेकिन प्रबंध तंत्र 50 फीसदी सीटें अल्पसंख्यकों को देने के बजाय पैसा लेकर बहुसंख्यकों को दे देते हैं। स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह संस्थान बीटीसी की एक-एक सीट इन दिनों पांच से छह लाख रुपये में बेच रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने भी इसमें साफ निर्णय दिया है कि अल्पसंख्यक संस्थान 50 फीसदी सीटें उसी अल्पसंख्यक समुदाय को देंगे, जिनकी उसे मान्यता मिली है। लेकिन ये संस्थान इसमें जमकर मनमानी करते हैं। वे अल्पसंख्यकों के बजाय किसी भी धर्म को प्रवेश दे देते हैं।

इस प्रकार यह खेल करोड़ों में खेला जाता है। अगर किसी संस्थान के पास बीएड की मान्यता है, उसके पास इसकी 100 सीटें होती हैं। अगर बीटीसी की मान्यता है, उसके यहां 50 सीटें होती हैं। इनमें से आधी सीटें वे अपनी मनमर्जी से भरते हैं।

इतना ही नहीं, इन संस्थानों के फीस निर्धारण में भी सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। इस कारण ये संस्थान मनमानी फीस वसूलते हैं।

इस तरह रियायत देती है सरकार

निदेशक अल्पसंख्यक कल्याण अबरार हुसैन बताते हैं कि एक बार सरकार ने अल्पसंख्यक संस्थानों की फीस तय करने की कोशिश की, लेकिन संस्थान सरकार के निर्णय के खिलाफ कोर्ट चले गए।

अल्पसंख्यक संस्थान होने के कारण कोर्ट से भी इन्हें स्टे मिल गया। शिक्षा का अधिकार कानून भी इन पर लागू नहीं होता है। लिहाजा गरीब बच्चों को भी यह अपने यहां नहीं पढ़ाते हैं।

अल्पसंख्यक संस्था को मिलने वाले फायदे
- प्रबंध तंत्र को एडमिशन में 50 फीसदी का अधिकार
- नियुक्तियों में प्रबंध तंत्र को रहती है पूरी आजादी

- फीस निर्धारण में नहीं रहता है सरकार का हस्तक्षेप
- किसी भी चीज में प्रदेश सरकार की दखलंदाजी हो जाती है बंद
- शिक्षा का अधिकार भी इन संस्थानों पर नहीं होता है लागू

छात्रों के प्रवेश जांच करने का कोई सिस्टम नहीं

इस पर राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के निदेशक सर्वेंद्र विक्रम सिंह कहते हैं कि अल्पसंख्यक संस्थानों को 50 फीसदी सीटें प्रबंध तंत्र को इसलिए दी जाती हैं ताकि वे उसी अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र-छात्राओं को दाखिला दें। लेकिन निजी संस्थानों में प्रवेश को जांचने का कोई तंत्र नहीं है। इसी का फायदा यह संस्थान उठाते हैं। इस कारण संस्थानों में प्रवेश को लेकर घपला होता है।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक संस्थान आयोग देता है दर्जा
अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा अब राष्ट्रीय अल्पसंख्यक संस्थान आयोग नई दिल्ली देता है। ऐसे संस्थान की स्थापना के लिए प्रदेश सरकार एनओसी प्रदान करती है। हालांकि वर्ष 1996 से 2004 तक प्रदेश सरकार ही अल्पसंख्यक संस्थानों को दर्जा देती थी। इस दौरान प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने 472 संस्थानों को मान्यता दी थी।

इनमें प्राइमरी व जूनियर के 205 व इंटरमीडिएट के 267 संस्थान शामिल थे। इसके अलावा उच्च्च शिक्षा के भी करीब 300 से अधिक संस्थानों को अलग से अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिला था। वर्ष 2006 के बाद से प्रदेश सरकार को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने पर रोक लगा दी गई थी। इसके बाद से राष्ट्रीय अल्पसंख्यक संस्थान आयोग ही संस्थानों को यह दर्जा प्रदान करता है।
अल्पसंख्यक संस्था का दर्जा मिलने के लिए शर्तें

अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना के लिए उसके प्रबंध तंत्र उस धर्म के 50 फीसदी लोग होने चाहिए, जिसके लिए अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा हासिल किया जाना है। राजधानी के रिसालदार पार्क के पास बौद्ध धर्म का दफ्तर है। कई संस्थानों के प्रबंधतंत्र ने यहां से बैक डेट में सदस्यता प्राप्त कर ली।

इसके बाद एक शपथपत्र के जरिये बौद्ध धर्म स्वीकार करने सूचना देने के साथ अपने संस्थान को बौद्ध धर्म से अल्पसंख्यक संस्थान की मान्यता दिलाने के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक संस्थान आयोग में आवेदन कर देते हैं।

शपथपत्र देने में भी प्रबंध तंत्र खेल करता हैं वह बौद्ध धर्म स्वीकार करने का शपथपत्र देता है लेकिन वह इसका शपथपत्र नहीं देता है कि उसने हिंदू धर्म छोड़ दिया है।

इस कारण कुशवाहा, मौर्या, श्रीवास्तव, शुक्ला होने के बावजूद वे अपने अपने संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिलाने लेते हैं। इस तरीके से हाल में बौद्ध व जैन धर्म को लेकर कई संस्थानों ने अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा प्राप्त कर लिया।
राज्य सरकार द्वारा जारी होती है एनओसी

यूं तो अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक संस्थान आयोग देता है। लेकिन संस्थान को अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) देने का काम प्रदेश सरकार का होता है।

इसके लिए माइनॉरिटी एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस एक्ट 2004 बना है लेकिन आज तक इसमें सक्षम प्राधिकारी की नियुक्ति नहीं हुई। हाल में अल्पसंख्यक विभाग में आए सचिव एसपी सिंह खुद भी आश्चर्यचकित हैं।

उन्होंने भी विभाग से यह सूचना मांगी है कि अब तक अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना के लिंए एनओसी कौन दे रहा था? इसके लिए उन्होंने सात दिन का समय दिया है।

एसपी सिंह ने बताया कि एक्ट के अनुसार सक्षम प्राधिकारी की नियुक्ति के लिए फाइल भेजी गई है। शीघ्र ही सक्षम प्राधिकारी की नियुक्ति हो जाएगी।

साभार : अमरउजाला

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