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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

CHILDREN, SCHOOL, SURVEY, UDISE : 10वीं से पहले पढ़ाई छोड़ने के मामले में बिहार सबसे आगे, यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यू-डाइस) से मिले वर्ष 2014-15 से लेकर 2016-17 के आंकड़ों के विश्लेषण में हुआ खुलासा, जानें क्या है अन्य राज्यों का हाल

CHILDREN, SCHOOL, SURVEY, UDISE : 10वीं से पहले पढ़ाई छोड़ने के मामले में बिहार सबसे आगे, यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यू-डाइस) से मिले वर्ष 2014-15 से लेकर 2016-17 के आंकड़ों के विश्लेषण में हुआ खुलासा, जानें क्या है अन्य राज्यों का हाल


नई दिल्ली । देश की शिक्षा व्यवस्था सुधारने की तमाम कवायदों के बीच स्कूली शिक्षा की एक चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। देश के ज्यादातर राज्यों में 10वीं कक्षा से पहले पढ़ाई छोड़ने वाले (ड्रॉऑउट) छात्र-छात्राओं की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। बिहार और झारखंड में स्थिति ज्यादा गंभीर है।  यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यू-डाइस) से मिले वर्ष 2014-15 से लेकर 2016-17 के आंकड़ों के विश्लेषण में उपरोक्त खुलासा हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि बिहार में वर्ष 2014-15 में माध्यमिक स्तर पर ड्रॉप ऑउट बच्चों की संख्या कुल छात्र-छात्राओं के तकरीबन 25 फीसदी थी। यह अगले साल बढ़कर 25.90 फीसदी और वर्ष 2016-17 में 39.73 फीसदी हो गई। यह देश के किसी भी राज्य के ड्रॉप आउट स्तर से ज्यादा है।


 झारखंड में 2014-15 में ड्रॉप आउट की दर 23.15 फीसदी थी, जो अगले साल बढ़कर 24 फीसदी और फिर 2016-17 तेजी से बढ़कर 36.64 फीसदी हो गई। ड्रॉप आउट दर में यह बिहार के बाद देश में सबसे अधिक है। देश के सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश में ड्रॉप आउट की दर बिहार-झारखंड से तो कम है। हालांकि, यहां भी साल दर साल ड्रॉप आउट बच्चों की संख्या बढ़ रही है। वर्ष 2014-15 में यह 7.30 फीसदी थी, जो अगले साल बढ़कर 10.22 और 2016-17 में 12.7 फीसदी हो गई।

दिल्ली और उत्तराखंड में 2014-15 से 2015-2016 के दौरान ड्रॉप आउट बच्चों की संख्या में इजाफा देखा गया। लेकिन, वर्ष 2016-17 में ये राज्य इस पर काफी कमी लाने में सफल हुए। वहीं, हिन्दी भाषी राज्यों में मध्य प्रदेश ही एक मात्र ऐसा राज्य है, जहां लगातार तीनों साल ड्रॉप आउट बच्चों की संख्या में कमी आई है। हालांकि, कुल संख्या के मामले में मध्य प्रदेश में भी स्थिति चिंताजनक है।

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