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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT : शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए बच्चों की प्रतिभागिता सुनिश्चित की जाये जिससे बच्चे 21वीं सदी की संघर्षों और चुनौतियों का सामना करते हुए.......

MAN KI BAAT : शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए बच्चों की प्रतिभागिता सुनिश्चित की जाये जिससे बच्चे 21वीं सदी की संघर्षों और चुनौतियों का सामना करते हुए.......


आप स्वयं अनुभव करें कि जब आप का सहयोगी कर्मचारी आपके विचारों से प्रभावित नहीं होता है और आपके द्वारा दिये गये राय से इत्तेफाक न रखता हो तथा आपको अपने किसी भी मामले में शामिल न करता हो तो जैसे आपको अच्छा नहीं लगता है और जिसे आप अच्छा महसूस नहीं करते हैं बल्कि यूं कहें आपको भी खराब लगता है ।


तो ठीक यही स्थिति बच्चों के पास अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अधिकार और क्षमता है तथा शिक्षकों का यह कर्त्तव्य है कि वे उनके विचारों को सुनें तथा परिवार, विद्यालय और समुदाय में उन्हें प्रभावित करने वाले सभी मामलों में उनकी प्रतिभागी को मजबूत बनाएं। यदि बच्चे आज प्रतिभागिता करना सीखेंगे, तो वे भविष्य में सक्षम नागरिकों के रूप में इनमें प्रतिभागिता करने में समर्थ होंगे। जैसे – जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं उन्हें समाज के कार्यकलापों में प्रतिभागिता करने के लिए अधिक अवसर प्रदान किए जाने चाहिए ताकि वे और बेहतर रूप से भागीदारी करने की तैयारी कर सकें। विभिन्न परिस्थितियों में संकटों के संभावित शिकार बच्चों के सशक्तिकरण के लिए बच्चों की प्रतिभागिता एक महत्वपूर्ण कदम है।


विद्यालय ऐसी संस्थाएँ हैं जो मुख्य रूप से बच्चों की विकास संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं तथा उनके व्यक्तित्व का निर्माण करती है।विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि विभिन्न विद्यालय क्रियाकलापों में बच्चों की प्रतिभागिता उनकी शिक्षा में रुचि बढ़ाती है। ऐसे दो क्षेत्र विद्यालय क्लब तथा विद्यालय संसद हो सकते है।


विद्यालय क्लब


विद्यालय क्लबों में छात्र शामिल होते हैं तथा शिक्षक उनके परामर्शदाता सदस्य अथवा संरक्षक होते हैं। ये क्लब कला, विज्ञान, साहित्यिक, व्यवसायिक और सामाजिक क्षेत्रों से संबंधित होते हैं। विद्यालय के बच्चे अपने मन – पसंद क्रियाकलाप को करने के लिए इनमें शामिल होते हैं। विद्यालय क्लबों में शामिल होने के लिए कोई शुल्क नहीं हैं।


किसी विशेष क्लब के विद्यार्थी सामान्यत: एक ही रुचि वाले होते हैं अत: वे अपने विचारों का आदान – प्रदान करने में समर्थ रहते हैं इसके फलस्वरूप, विद्यालय में बच्चों की विभिन्न क्रियाकलापों में संवर्धित प्रतिभागिता सुनिश्चित की जाती है।


विद्यालय संसद


अनेक विद्यालयों में, विद्यालय संसद अथवा छात्र संसद होती है जो विद्यालय के छात्रों का निर्वाचित निकाय है। विद्यालय संसदों के माध्यम से बच्चे सिविल और सामाजिक कौशलों को सीखते हैं जिनमें नेतृत्व, प्रतिभागिता, निर्णय लेना और संप्रेषण कौशल भी शामिल हैं। विद्यालय संसद छात्रों को ग्राम पंचायत क्षेत्र में निर्वाचन प्रक्रियाओं को समझने तथा यह जानने में मदद करती है कि लोकतंत्र किस प्रकार कार्य करता है। उत्तर प्रदेश में तमाम परिषदीय विद्यालयों में विद्यालयों में छात्र या यूं कहे बाल संसद के रूप में बनाकर शिक्षकों द्वारा कार्य कराये जा रहे हैं । जिससे समाज में और विद्यालयी चेतनाओं उनकी भूमिका अपने जीवन के प्रति महत्वपूर्ण बन सके ।


  हमारा मानना है शिक्षा के क्षेत्र में भरपूर बदलाव की उम्मीदें तब समझ से परे हो जाती हैं जब शिक्षक अपनी भूमिका को सीमित करते हुए बच्चों के साथ अपनी भागीदारी को तय नहीं करते हैं । जब शिक्षक के चिंतन के केन्द्र बिन्दु में बच्चे होंगें तो हमारी और बच्चों दोंनो की सहभागीदारी को कोई अनदेखा नहीं कर सकता है । 


बच्चों को अपने विचार स्वतंत्रतापूर्वक व्यक्त करने का अधिकार और उनमें यह क्षमता होती है। बशर्ते  हम शिक्षकों का यह कर्त्तव्य है कि वे बच्चों के विचारों को सुनें तथा उन्हें प्रभावित करने वाले सभी मामलों में उनकी प्रतिभागिता को सुनिश्चित करें। जो विद्यालयों में बच्चों की प्रतिभागिता के मंचों के रूप में विद्यालय क्लबों और बाल संसदों को प्रोत्साहित करके किया जा सकता है ।


  अन्त में बीएसएन प्राइमरी का मास्टर का मानना है कि विद्यालयों को अनेक विशेष महत्व के दिवस विद्यालय में मनाने के कारण से प्ररेणा और सहायता प्रदान करती है जैसे बाल दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस आदि। विद्यालयों में बच्चों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना विकसित करने के लिए और विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन भी कर सकते है जैसे समय समय पर खेलकूद प्रतिगोगिताएं , ग्रुपों में विभाजित कर किसी पाठ पर चर्चा कराकर बच्चों के भीतर नेतृत्व कौशल का विकास करने के लिए जरूरी माहौल मिल सकता है । मेरा मानना है कि इन सबकी पूर्ण तैयारी हम शिक्षकों को ही करना पड़ेगा जिससे हमारे बच्चे 21वीं सदी की संघर्षों और चुनौतियों का सामना करते हुए सर्वथा उचित समाधान करने में सक्षम हो सकें ।


    (इस लेख पर बीएसएन प्राइमरी का मास्टर के लिए आप सबकी टिप्पणी महत्त्वपूर्ण है आप सब स्पष्ट करें कि बतौर शिक्षक आप सबके क्या विचार हैं या हो सकते हैं जिससे आप सबके विचारों को समाहित करते पुन: लेख की एक रूप रेखा रेखांकित की जा सके।)


   आपका अदना सा शिक्षक
       दयानन्द त्रिपाठी
   ।। जय शिक्षक जय भारत।।

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