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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT : पिछले वर्ष कई स्कूलों में अर्धवार्षिक परीक्षाओं के समय किताबें बंट पाई थीं, लगता है कि इस बार भी प्राथमिक स्कूलों में यही हाल रहेगा

MAN KI BAAT : पिछले वर्ष कई स्कूलों में अर्धवार्षिक परीक्षाओं के समय किताबें बंट पाई थीं, लगता है कि इस बार भी प्राथमिक स्कूलों में यही हाल रहेगा

कब मिलेंगी किताबें: बेसिक स्कूलों में नए शैक्षिक सत्र के 40 दिन बीत जाने के बाद भी अभी तक नई किताबें नहीं

 

सरकार ने दावे तो बहुत किए थे लेकिन नए शैक्षिक सत्र के 40 दिन बीत जाने के बाद भी विद्यालयों में अभी तक नई किताबें नहीं पहुंच सकी हैं। हर साल ही ऐसा होता है। अधिकारी और मंत्री बयानबाजी करते हैं और विद्यालयों में छात्र पुस्तकों का इंतजार। पिछले वर्ष तो कई स्कूलों में अर्धवार्षिक परीक्षाओं के समय किताबें बंट पाई थीं। इस बार भी कोई यह बताने को तैयार नहीं है कि कब तक किताबें विद्यालयों तक पहुंचेंगी। फिलहाल पुरानी किताबों से काम चलाया जा रहा है लेकिन, उसका लाभ कितने बच्चों को मिल सकता है, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। ऐसा सिर्फ पुस्तकों के साथ नहीं है। बीते जाड़े में ठंड खत्म होने के बाद स्वेटर बच्चों के पास पहुंचे। इससे पहले यूनिफार्म और जूता-मोजा के वितरण में भी बच्चों को इंतजार करना पड़ा। ऐसा क्यों है कि सरकार बदलने के बाद भी बेसिक शिक्षा की योजनाओं की कार्यप्रणाली में परिवर्तन नहीं आ पाता। व्यवस्था जस की तस रहती है। 1प्रदेश में एक लाख 12 हजार 747 प्राथमिक और 45 हजार 649 उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं। यानी कुल एक लाख 58 हजार 396 विद्यालय हैं। इनमें 30 अप्रैल तक डेढ़ करोड़ छात्र व छात्रओं का नामांकन हो चुका है। नामांकन के अनुसार छह से सात करोड़ किताबों की आवश्यकता होगी। निश्चित तौर पर लक्ष्य बड़ा है लेकिन इसको हासिल करने के लिए सरकार के पास पूरी मशीनरी और संसाधन मौजूद हैं। बस, कमी इस बात की है कि योजनाबद्ध ढंग से काम नहीं किया गया। लोकलुभावन नजरिए से योजनाएं तो बढ़ा-चढ़ाकर घोषित कर दी गईं और श्रेय भी लिया गया लेकिन अमलीजामा में वह प्रयास नहीं हुए जो अपेक्षित थे। यदि यह जानने की कोशिश की जाती कि पिछली बार किन वजहों से पुस्तक वितरण में विलंब हुआ था तो इस बार शायद इस स्थिति का सामना न करना पड़ता। बुनियादी शिक्षा की योजनाओं में इस तरह के खिलवाड़ सिर्फ विभाग और मंत्री की क्षमता पर ही सवाल नहीं खड़े करते, सरकार को भी कठघरे में लाते हैं, यह विभागीय मंत्री और अफसरों को सोचना होगा।

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