logo

Basic Siksha News.com
बेसिक शिक्षा न्यूज़ डॉट कॉम

एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT : असाधारण काम कर रही साधारण सहज शिक्षिकाएं, यह वह दुनिया है, जहां लैंगिक बराबरी अब भी दूर की कौड़ी है, मगर इसके बावजूद ये शिक्षिकाएं बातों की बजाय काम से अपना रास्ता बना रही क्योंकि.......

MAN KI BAAT : असाधारण काम कर रही साधारण सहज शिक्षिकाएं, यह वह दुनिया है, जहां लैंगिक बराबरी अब भी दूर की कौड़ी है, मगर इसके बावजूद ये शिक्षिकाएं बातों की बजाय काम से अपना रास्ता बना रही क्योंकि.......

पिछले साल मुझे कर्नाटक के याद्गीर और उत्तराखंड के उधमसिंहनगर व उत्तरकाशी जैसे एक-दूसरे से बिल्कुल दूर स्थित जिलों के 75 स्कूलों के 200 से ज्यादा शिक्षक-शिक्षिकाओं से मिलने का मौका मिला। जिन स्कूलों में मैं गया, उनका चयन इन इलाकों में बरसों काम करने वाले मेरे सहकर्मियों ने किया था। इनमें से हर स्कूल अपने आप में अलग अध्ययन का विषय बनने की काबिलियत रखता है, लेकिन एक साथ देखने पर इनकी कई खासियतें प्रभावित करने वाली थीं। इन शिक्षकों की जिजीविषा, काम करने के प्रति इनका नजरिया, रोजमर्रा की निजी और स्कूली जिंदगी के बीच तालमेल प्रेरणा देने वाला है। बच्ची को गोद में लिए दूरदराज के गांव जाकर पढ़ाने वाली मां को देखना अलग अनुभव था।

गढ़वाल की पहाड़ियों में गमदीदगांव मुख्य सड़क से लगभग दो किलोमीटर की चढ़ाई पर है। प्राइमरी स्कूल की हेड टीचर मधुलिका थपलियाल और उनकी सहयोगी पवित्र रावत पांचवीं तक की कक्षाओं के सभी विषय पढ़ाती हैं। मधुलिका 11 साल से इसी गांव में हैं, जहां स्थानीय लोगों से उनके आत्मीय रिश्ते बन गए हैं। वह कच्ची देवी में रहती हैं, जो यहां से कई मील दूर है। सुबह चार बजे अपने संयुक्त परिवार के लिए खाना बनाने के बाद सात बजे वह गांव के पास से गुजरने वाली बस लेती हैं। फिर ऑटो से उस जगह पहुंचती हैं, जहां से दो किलोमीटर की पैदल चढ़ाई शुरू होती है। हर मानसून में एकाधिक बार इस चढ़ाई के दौरान उनको कमर तक कीचड़ में से होकर गुजरना पड़ता है। वह कभी लेट नहीं होतीं। कुछ पूछने पर, बस यही कहती हैं कि मैं कोई बड़ा काम नहीं कर रही हूं। उनमें एक ऐसी शिक्षिका देखने को मिलती है, जिसके अंदर हरेक बच्चे को बांधे रखने का हुनर है।

हजारों मील दूर दक्षिण में याद्गीर जिले के सुरपुर ब्लॉक में गेद्दला नारायणा थंडा नाम के आदिवासी गांव का प्राइमरी स्कूल यहां के बच्चों के बेहतर भविष्य की खिड़की बन गया है। काशीबाई ने यहां 2003 से पढ़ाना शुरू किया। वह गांव से कई मील दूर एक कस्बे में रहती हैं और स्कूटी से स्कूल आती-जाती हैं। उनकी कक्षा में बच्चों को स्वतंत्र अध्ययन के साथ परस्पर मददगार बनने की बहुत अच्छी ट्रेनिंग दी गई है। कर्नाटक के स्कूल गुणवत्ता जांच में कुछ साल पहले इस स्कूल को सूरपुर के लोअर प्राइमरी स्कूलों में सर्वश्रेष्ठ का दर्जा मिला था। काशीबाई ने शिक्षण के लिए सहयोगी सामग्री का बेहतरीन संग्रह तैयार किया है, जिसके चयन में उनकी मेहनत दिखती है। छुट्टी पर भी वह ऐसी सामग्री तलाशती रहती हैं और प्रकाशकों से मिलने व शिक्षा मेलों में जाने के लिए समय भी निकालती हैं। वर्ष 2015 में वह जिले के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का सम्मान पा चुकी हैं।

उत्तरकाशी कस्बे से कुछ ही किलोमीटर दूर ज्ञानसू में एक पुराना प्राइमरी स्कूल है। यह हमेशा से अच्छा स्कूल था, मगर इन दिनों हेड टीचर रामेश्वरी लिंगवाल और उनकी सहकर्मी दर्बेश्वरी बहुगुणा के कारण इसकी प्रतिष्ठा और बढ़ी है। रामेश्वरी 2001 में शिक्षा विभाग में भर्ती हुई और उनकी पोस्टिंग घर से कई मील की दूरी पर स्थित चिन्याली ब्लॉक के एक दूरदराज के गांव में हुई थी। पहले दिन स्कूल जाने के लिए वह सुबह सात बजे घर से निकलीं, मगर पहुंची दोपहर बाद। तब उन्हें उसी गांव में ही रहने की जरूरत महसूस हुई और वह अपनी बेटी के साथ वहीं बस गईं। रामेश्वरी और दरबेश्वरी स्कूल यूनीफॉर्म नहीं खरीद सकने वाले बच्चों के लिए अपनी जेब से पैसे भी लगाती हैं। वर्ष 2015 में मिले राज्य शिक्षक पुरस्कार से उनके काम को और पहचान मिली।

यह वह दुनिया है, जहां लैंगिक बराबरी अब भी दूर की कौड़ी है, मगर इसके बावजूद ये शिक्षिकाएं बातों की बजाय काम से अपना रास्ता बना रही हैं। समानता की इस लड़ाई में कई बार उन्हें परिवार का सहयोग नहीं भी मिलता है। असाधारण काम करने वाली इन साधारण महिलाओं की यह एक झलक मात्र है। अगली बार जब कोई गांवों के सरकारी स्कूलों की बात करे, तो रामेश्वरी, काशीबाई और मधुलिका की कहानी सुनाना मत भूलिएगा, क्योंकि ये कहानियां देश को आगे ले जाएंगी। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

Post a Comment

0 Comments