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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

SHIKSHAMITRA SAMAYOJAN : शिक्षामित्रों को लेकर चुनौतियों से जूझेगी सरकार, यह मसला भाजपा सरकार के गले की ऐसी फांस बन गया है जो न उगलते बन रहा है, न निगलते ।

SHIKSHAMITRA SAMAYOJAN : शिक्षामित्रों को लेकर चुनौतियों से जूझेगी सरकार, यह मसला भाजपा सरकार के गले की ऐसी फांस बन गया है जो न उगलते बन रहा है, न निगलते ।

हरिशंकर मिश्र ’ लखनऊ । सुप्रीम कोर्ट के फैसले बाद सड़क पर उतरे शिक्षा मित्रों के लिए राह निकालना सरकार के लिए आसान नहीं है। उसके सामने दोहरी चुनौती है। एक तरफ पौने दो लाख शिक्षामित्रों का मसला है तो दूसरी ओर लगभग एक लाख टीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थी हैं, जिन्होंने इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी कि वे नियुक्ति की पूरी पात्रता रखते हैं। यह मसला भाजपा सरकार के गले की ऐसी फांस बन गया है जो न उगलते बन रहा है, न निगलते।

उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में बड़ी संख्या में शिक्षकों की कमी को देखते हुए 2000 में ग्रामीण क्षेत्रों में और 2006 में नगरीय क्षेत्रों में शिक्षा मित्रों की नियुक्तियां की गई थीं। इनकी अर्हता इंटरमीडिएट रखी गई थी। हालांकि बीएड को वरीयता देने की बात भी कही गई थी। प्रारंभ में इनका मानदेय 2250 रुपये तय किया गया था जिसे 2006 में बढ़ाकर 3500 कर दिया गया। इनका चयन ग्राम शिक्षा समितियों ने किया था जिसके अध्यक्ष ग्राम प्रधान थे। दस साल बाद 2009 तक इनकी संख्या सवा लाख से ऊपर हो चुकी थी और इसी समय से इन्हें वोट बैंक के रूप में देखा जाने लगा।

स्पष्ट था कि प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार ने स्पष्ट नियम घोषित कर रखे हैं, इसके बावजूद शिक्षा मित्रों को स्थायी नियुक्ति का चारा फेंका गया। राजनीतिक फायदे की पहल तत्कालीन बहुजन समाज पार्टी की सरकार ने की और राष्ट्रीय अध्यापक अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) को यह प्रस्ताव भेज दिया कि शिक्षा मित्रों को दूरस्थ बीटीसी प्रशिक्षण कराया जा सकता है। 2011 में इसकी अनुमति मिल गई। इसके पीछे सरकार मंशा शिक्षा मित्रों को नियुक्ति देकर राजनीतिक लाभ हासिल करने की थी हालांकि सरकार चली जाने से ऐसा न हो सका। इसके बाद आई अखिलेश सरकार ने इसका लाभ उठाया और 1.73 शिक्षा मित्रों को समायोजित करने का फैसला किया। दो चरणों में 1.37 लाख शिक्षा मित्रों को नियुक्ति दी गई और उन्हें सरकारी खजाने से वेतन भी मिलने लगा। सपा सरकार अपने इस फैसले के प्रति इतना आग्रही थी कि उसने सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व के फैसलों की भी अनदेखी कर दी और टीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की नाराजगी का खतरा भी उठाया।

इन्ही अभ्यर्थियों ने समायोजन को चुनौती दी और अंतत: सुप्रीम कोर्ट में शिक्षा मित्रों के समायोजन को तर्क संगत न ठहराया जा सका। दूसरी ओर एक लाख से अधिक टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) उत्तीर्ण अभ्यर्थी हैं जो लगातार सरकार पर इस बात के लिए सरकार पर दबाव बनाए हुए हैं कि उनकी योग्यता के आधार पर उन्हें नियुक्ति दी जाए। इसके लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी है। सरकार अपने हलफनामे में यह बात कह भी चुकी है कि वह उन्हें नियुक्तियां देगी। टीईटी संघर्ष मोर्चा के संजीव कुमार मिश्र कहते हैं कि सरकार को पहले हमारी ओर देखना होगा। हमारे बीच बीएड, एमएड और पीएचडी भी हैं। योग्य टीचरों की अनदेखी भला कैसे की जा सकती है।

हरिशंकर मिश्र ’ लखनऊ । सुप्रीम कोर्ट के फैसले बाद सड़क पर उतरे शिक्षा मित्रों के लिए राह निकालना सरकार के लिए आसान नहीं है। उसके सामने दोहरी चुनौती है। एक तरफ पौने दो लाख शिक्षामित्रों का मसला है तो दूसरी ओर लगभग एक लाख टीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थी हैं, जिन्होंने इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी कि वे नियुक्ति की पूरी पात्रता रखते हैं। यह मसला भाजपा सरकार के गले की ऐसी फांस बन गया है जो न उगलते बन रहा है, न निगलते।

उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में बड़ी संख्या में शिक्षकों की कमी को देखते हुए 2000 में ग्रामीण क्षेत्रों में और 2006 में नगरीय क्षेत्रों में शिक्षा मित्रों की नियुक्तियां की गई थीं। इनकी अर्हता इंटरमीडिएट रखी गई थी। हालांकि बीएड को वरीयता देने की बात भी कही गई थी। प्रारंभ में इनका मानदेय 2250 रुपये तय किया गया था जिसे 2006 में बढ़ाकर 3500 कर दिया गया। इनका चयन ग्राम शिक्षा समितियों ने किया था जिसके अध्यक्ष ग्राम प्रधान थे। दस साल बाद 2009 तक इनकी संख्या सवा लाख से ऊपर हो चुकी थी और इसी समय से इन्हें वोट बैंक के रूप में देखा जाने लगा।

स्पष्ट था कि प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार ने स्पष्ट नियम घोषित कर रखे हैं, इसके बावजूद शिक्षा मित्रों को स्थायी नियुक्ति का चारा फेंका गया। राजनीतिक फायदे की पहल तत्कालीन बहुजन समाज पार्टी की सरकार ने की और राष्ट्रीय अध्यापक अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) को यह प्रस्ताव भेज दिया कि शिक्षा मित्रों को दूरस्थ बीटीसी प्रशिक्षण कराया जा सकता है। 2011 में इसकी अनुमति मिल गई। इसके पीछे सरकार मंशा शिक्षा मित्रों को नियुक्ति देकर राजनीतिक लाभ हासिल करने की थी हालांकि सरकार चली जाने से ऐसा न हो सका।

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