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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT : हब, क्यों फोटो खींचत हौ, बिटेवा पास हुई जाई तो शादी..। भैया, एक ल बरबाद हो जाएगा, नौकरी की बात बन रही है..। हाथ जोड़ते हैं आपके......

MAN KI BAAT : हब, क्यों फोटो खींचत हौ, बिटेवा पास हुई जाई तो शादी..। भैया, एक ल बरबाद हो जाएगा, नौकरी की बात बन रही है..। हाथ जोड़ते हैं आपके......

🔴 एक था यूपी बोर्ड और उसकी हनक

हब, क्यों फोटो खींचत हौ, बिटेवा पास हुई जाई तो शादी..। भैया, एक ल बरबाद हो जाएगा, नौकरी की बात बन रही है..। हाथ जोड़ते हैं आपके, इस कालेज की खबर लिखकर कार्रवाई न करवाएं..। पढ़ाई तो हुई नहीं, अब नकल भी नहीं करने देंगे क्या..? पूरे ल क्लास में टीचर नहीं आते, आप तब क्यों नहीं आते..। ये वाक्य अभिभावकों या नकल कराने आए अभ्यर्थियों के हैं, जो उन्होंने बोर्ड परीक्षाओं का कवरेज करने परीक्षा केंद्र तक गए मीडियाकर्मियों से कहे हैं। कोई तो अत्यंत दीन-हीन होकर हाथ जोड़ते हुए कहते हैं, कोई थोड़ी सी मजबूरी जताते हुए। कुछ केंद्रों के बाहर मिले लोगों ने लगभग अपना अधिकार जताते हुए कहे हैं। बड़े हक के थ नकल को सही ठहराते हैं और वहां से निकल जाने का इशारा करते हैं जैसे कि उनकी टेरेटरी में आ गए हों। कुछ वाकये ऐसे भी हुए जहां पर ऐ लगा, जैसे नकल रोकने की प्रक्रिया में शामिल मीडिया गलत कर रही है। नकल होने देना चाहिए, ऐ करना पुण्य का काम होगा। आखिर लड़का-लड़की के भविष्य का सवाल है। किसी की शादी तय हो रही है तो किसी ने नौकरी के लिए जोड़-तोड़ बिठा रखा है, ये मजबूरी में ही ऐ कर रहे हैं।

परीक्षार्थी ही नहीं, कालेज प्रबंधन से जुड़े लोग भी अपनी मजबूरी गिनाते हैं। कुछ कालेज प्रबंधक यह कहते सुने गए कि परीक्षा केंद्र बनाने के लिए इतना चढ़ावा दिया गया, निरीक्षण करने आने वाले अधिकारियों को भी लिफाफा देना पड़ता है। ऐ नहीं करेंगे तो केंद्र अगले ल के लिए डिबार कर दिया जाएगा। यही रकम परीक्षार्थियों को सुविधा देकर उनसे न वसूली जाए तो हमें घर से देना पड़ेगा। हमने भी तो कालेज कुछ कमाने के लिए खोला है, गंवा देंगे तो कैसे चलेगा। एक प्रबंधक तो कान पकड़कर कहते हैं, इतनी परेशानी है कि अगले ल से केंद्र बनाने का प्रयास ही नहीं करूंगा।

परीक्षा केंद्र बनाने के लिए इस बार यूपी बोर्ड मुख्यालय स्तर पर कंप्यूटरीकृत सिस्टम से लाटरी डाले जाने की बात थी, मगर आखिर में जिला विद्यालय निरीक्षक को ही यह काम दे दिया गया। जबकि यह पद लों से इस काम को लेकर बदनाम रहा है। यह एक तिलिस्म से कम नहीं कि यूपी बोर्ड को नकल विहीन बनाने के प्रयास कभी भी सिरे से नहीं चढ़े। इसी क्रम में कई ल पहले परीक्षा केंद्र से कालेज प्रबंधन को दूर रखने की पहल हुई। दूसरे कालेजों से व्यवस्थापकों की ड्यूटी लगाई गई। परीक्षा केंद्र को पूरी तरह से व्यवस्थापक के हवाले कर दिया गया। परीक्षा के दौरान प्रबंधकों के परिसर में मौजूद रहने की मनाही कर दी गई। प्रयास तो ठीक था, मगर अब दिक्कत यह है कि व्यवस्थापक खोजने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इस पूरी कवायद के बाद भी नकल से पूरी तरह मुक्ति नहीं मिल सकी।

वर्ष 2004 के बाद बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट बेहतर करने के लिए मूल्यांकन के दौरान खूब नंबर दिए जाने की एक अवधारणा उत्पन्न हुई। उसका नतीजा ये हुआ कि उत्तीर्ण परीक्षार्थियों की संख्या बढ़ने के थ ही व्यक्तिगत नंबर भी सीबीएसई के समकक्ष पहुंच गए। मगर उस लिहाज से पढ़ाई का स्तर अगले पायदान पर नहीं गया। यूं कहा जाए कि नीचे चला गया। बच्चों के लिए कोचिंग संस्थानों का रास्ता खुल गया। कई बार पढ़ाई के गिरते स्तर के लिए शिक्षकों, प्रधानाचार्यो की कमी को जिम्मेदार बताया जाता है, जितने उपलब्ध हैं अगर वही अपना काम ईमानदारी से करते तो यह स्थिति नहीं आती। पढ़ाई के मामले में शॉर्टकट गलत ही होता है, कानून से ज्यादा नैतिक रूप से गलत है। अगले कक्षा में धकेलने की प्रवृत्ति से नई पीढ़ी को भले ही तात्कालिक फायदा होता नजर आता है, मगर ऐ वातावरण वक्त की नींव खोखला बना देता है। कम से कम बेसिक स्तर से माध्यमिक तक की पढ़ाई तो मजबूत होनी ही चाहिए। इसके बाद तो जिसे उच्च शिक्षा की ओर कदम रखना होगा वह अपना रास्ता चुनेगा। जिसे प्रोफेशनल पढ़ाई करनी होगी तो वह अपनी तैयारी खुद करेगा।

यूपी बोर्ड दुनिया के सबसे बड़े बोर्डो में शुमार है। इसके पास हाईस्कूल और इंटर के परीक्षार्थियों की संख्या सबसे अधिक है, उसी अनुरूप इसके विषयों की विविधता भी। कभी इसका नाम हुआ करता था, इसे पास करने वालों के नंबर अन्य बोर्डो की तुलना में जरूर कम हुआ करते थे मगर सम्मान था, हनक थी। चूंकि इतने बच्चों का भविष्य जुड़ा है, इसलिए इसकी शुचिता भी सबसे बड़ी होनी चाहिए।
       - लेख जगदीश जोशी

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