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CHILDREN : देश के 41 फीसद बच्चों की नजर कमजोर, पढ़ाई भी हो रही प्रभावित, शिक्षक और स्कूल इस समस्या से अनजान

CHILDREN : देश के 41 फीसद बच्चों की नजर कमजोर, पढ़ाई भी हो रही प्रभावित, शिक्षक और स्कूल इस समस्या से अनजान

यदि आपके बचे का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा हो तो इसकी एक बड़ी वजह उसकी नजर कमजोर होना भी हो सकती है। एक आकलन के मुताबिक देश के 41 फीसद बचे आंख की रोशनी की समस्या से जूझ रहे हैं। इसकी वजह से न सिर्फ उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है, बल्कि उनका संपूर्ण मानसिक और शारीरिक विकास भी प्रभावित हो रहा है।बॉलीवुड फिल्म ‘तारे जमीन पर’ का बाल किरदार डिसलेक्सिया की जिस परेशानी से ग्रसित था, उससे कई गुना यादा संख्या में बचे नजर की समस्या से परेशान हैं। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप ने उपलब्ध आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर पाया है कि भारत में बचों में अनकरेक्टेड रिफरेक्टिव एरर (यूआरई) का आंकड़ा 41 फीसदी के करीब हो सकता है। समस्या की पहचान नहीं हो पाने की वजह से ऐसे बचे पढ़ाई में तो ध्यान नहीं ही लगा पाते, कई बचों की समस्या आगे चलकर और गंभीर हो जाती है। देश के कुछ रायों में तो स्कूलों में बचों की आंख जांचने का कार्यक्रम बहुत सफलता से चल रहा है। मगर अधिकांश हिस्सों में अभिभावक, शिक्षक और स्कूल इस समस्या से अनजान हैं। इस संबंध में काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन ‘विजन इंपैक्ट इंस्टीट्यूट’ (वीआइआइ) के सलाहकार अरुण भारत राम कहते हैं, ‘भारत में सभी सरकारी स्कूलों में इसकी नियमित जांच को अनिवार्य किया जाना बेहद जरूरी है। इसके लिए शुरुआती जांच बिना किसी महंगे उपकरण के हो सकती है और इसका प्रशिक्षण शिक्षकों को कुछ घंटों में दिया जा सकता है।’

वह कहते हैं कि मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रलय के सर्व शिक्षा अभियान और स्वास्थ्य मंत्रलय के राष्ट्रीय अंधता नियंत्रण कार्यक्रम जैसे विभिन्न कार्यक्रमों को आपसी साङोदारी के जरिये स्कूली बचों की इस समस्या की जल्द पहचान के लिए तत्काल राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम शुरू करना चाहिए।अधिकांश विकसित देशों में बहुत पहले ही स्कूलों में आंख की नियमित जांच को अनिवार्य किया जा चुका है। समय से इस समस्या की पहचान नहीं होने से व्यक्ति की शिक्षा, रोजगार और जीवन स्तर तो प्रभावित होता ही है, कई बार गंभीर हादसे भी हो जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में यूआरई की इस समस्या की वजह से सालाना देश को दो लाख करोड़ रुपये की उत्पादकता का नुकसान हो रहा है।

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