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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

SURVEY : पढ़ाई का स्तर नहीं सुधर रहा, इसका खुलासा गैर सरकारी संगठन ‘प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन’ की ‘ऐनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) 2016’ में हुआ है, यह रिपोर्ट 589 जिलों के अध्ययन के आधार पर तैयार

SURVEY : पढ़ाई का स्तर नहीं सुधर रहा, इसका खुलासा गैर सरकारी संगठन ‘प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन’ की ‘ऐनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) 2016’ में हुआ है, यह रिपोर्ट 589 जिलों के अध्ययन के आधार पर तैयार

🔴 किसलिए सरकारी स्कूल

तमाम दावों के बावजूद सरकारें अपने स्कूलों को सक्षम नहीं बना सकी हैं। उनमें पढ़ाई का स्तर नहीं सुधर रहा। आलम यह है कि आज भी प्राथमिक स्तर पर पचास प्रतिशत बच्चे अपने से तीन क्लास नीचे की किताबें भी ढंग से नहीं पढ़ पाते। इसका खुलासा गैर सरकारी संगठन ‘प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन’ की ‘ऐनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) 2016’ में हुआ है। यह रिपोर्ट 589 जिलों के अध्ययन के आधार पर तैयार की गई है। इसके मुताबिक देश भर के तीसरी क्लास के 42.5 प्रतिशत बच्चे पहली क्लास की किताबें किसी तरह पढ़ लेते हैं। दो साल पहले ऐसे बच्चों की संख्या 42.2 फीसदी थी। पांचवीं के 47.8 प्रतिशत बच्चे ही दूसरी क्लास की किताबें पढ़ पाते हैं, हालांकि 2014 में ऐसे बच्चों की संख्या 48 पर्सेंट थी। आठवीं कक्षा के 73.1 फीसदी छात्र ही दूसरी क्लास की किताबें ढंग से पढ़ पाते हैं। दो साल पहले ऐसे स्टूडेंट्स की संख्या 74.7 प्रतिशत थी, यानी आठवीं के स्तर पर पढ़ाई का हाल पहले से भी बुरा हो गया है।

जहां तक अंग्रेजी पढ़ने का सवाल है तो तीसरी क्लास के 32 पर्सेंट बच्चे किसी तरह इंग्लिश के साधारण शब्द पढ़ पाते हैं जबकि 2009 में 28.5 पर्सेंट बच्चे ऐसा कर पाते थे। पांचवीं कक्षा के 24.5 फीसदी स्टूडेंट्स ही अंग्रेजी के साधारण वाक्य पढ़ पाते हैं। उनका यह हाल वर्ष 2009 से ज्यों का त्यों बना हुआ है। अंग्रेजी पढ़ने के मामले में आठवीं के स्तर पर काफी गिरावट आई है। वर्ष 2016 में 45.2 प्रतिशत छात्र किसी तरह अंग्रेजी के साधारण वाक्य पढ़ते पाए गए, जबकि 2014 में ऐसे छात्रों का हिस्सा 46.7 और 2009 में 60.2 फीसदी था। आज कोई भी व्यक्ति अपने बच्चों को मजबूरी में ही सरकारी स्कूलों में पढ़ाता है।

राजनीतिक नेतृत्व के लिए शिक्षा चुनावी मुद्दा नहीं बन पाई है। सरकार को पता है कि जो ताकतवर तबका राजनीति और प्रशासन पर असर डाल सकता है, उसे सरकारी स्कूलों से कोई मतलब नहीं है। जबकि गरीबों के लिए रोजी-रोटी की समस्या ही इतनी अहम है कि वे मिड डे मील से ही खुश हैं, बेहतर शिक्षा के लिए आवाज उठाने की बात भी नहीं सोचते। केंद्र सरकार अगर भारत को एक शिक्षित समाज बनाना चाहती है तो उसे जीएसटी जितनी ही तवज्जो सरकारी स्कूलों की पढ़ाई को भी देनी होगी।

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  1. 📌 SURVEY : पढ़ाई का स्तर नहीं सुधर रहा, इसका खुलासा गैर सरकारी संगठन ‘प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन’ की ‘ऐनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) 2016’ में हुआ है, यह रिपोर्ट 589 जिलों के अध्ययन के आधार पर तैयार
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2017/01/survey-2016-589.html

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