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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

MAN KI BAAT : शिक्षा की गुणवत्ता और आधुनिकता में भारत अभी बहुत पीछे है, इसके लिए उत्तरदायी कारण शिक्षा प्रणाली में मूलभूत ढांचे का न होना और...........

MAN KI BAAT : शिक्षा की गुणवत्ता और आधुनिकता में भारत अभी बहुत पीछे है, इसके लिए उत्तरदायी कारण शिक्षा प्रणाली में मूलभूत ढांचे का न होना और...........

🔴 शिक्षा क्षेत्र में व्यापक सुधार की जरूरत

शिक्षित समाज देश और समाज की उन्नति का द्योतक होता है, लेकिन इसके लिए देश के भविष्य और कर्णधार छात्रों को उचित और सम्यक विकास से उत्प्रेरित और रोजगारपरक शिक्षा मिलनी लाजमी होती है, लेकिन शिक्षातंत्र की नैतिक और बुनियादी आधारभूत समास्याओं की वजह से भारतीय समूह के बच्चे वर्तमान समय में अन्य विकसित देशों की तुलना में काफी पिछड़े मालूम पड़ते हैं। शिक्षा का फीसद स्तर भले ही बढ़कर 74 फीसद के आंकड़े पर पहुंच गया हो, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता और आधुनिकता में भारत अभी बहुत पीछे है। इसके लिए उत्तरदायी कारण शिक्षा प्रणाली में मूलभूत ढांचे का न होना और शिक्षकों की भारी कमी के साथ आधुनिक शिक्षण प्रणाली का अभाव बड़ी वजह मानी जा सकती है। शिक्षकों का उचित तरीके के साथ प्रासंगिक प्रशिक्षण वर्तमान में भी बड़ी समस्या बना हुआ है।

वर्तमान समय में लिया गया सीबीएसई बोर्ड का फैसला कि अगले सत्र से दसवीं की परीक्षा बोर्ड के अंतर्गत ली जाएगी, यह कदम उचित साबित हो सकता है, क्योंकि इसको वैकल्पिक बनाने की वजह से छात्रों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, अगर दूसरे माध्यम के स्कूल में प्रवेश लेना है तो परेशानी झेलनी पड़ती हैं, इसके साथ बोर्ड परीक्षा का दबाव न होने के कारण बच्चों का पढ़ाई के प्रति रुझान भी कम हो जाता है, जिससे उसका भविष्य भी प्रभावित होता है। बच्चों में नकल के प्रति भी झुकाव बढ़ता है, क्योंकि स्थायी परीक्षा में छात्र जुगाड़ की व्यवस्था भी कर सकता है। सरकार द्वारा पहले से ही बोर्ड परीक्षा पर जोर दिया जा रहा था, जिसको लेकर सीबीएसई की मुहर लगने के बाद छात्रों को समस्याओं से निजात मिल सकेगी। सीबीएसई बोर्ड की परीक्षा प्रणाली वैसे तो मजबूत है, लेकिन यूपी बोर्ड और अन्य राजकीय बोर्ड जैसी राज्यकीय परीक्षा प्रणाली में धांधली के आरोप लगते ही रहते हैं, उस ओर सरकार को खुद आगे बढ़कर उचित व्यवस्था का निर्माण करना होगा, जिससे कि परीक्षा में होने वाले कारोबारी व्यवसाय को शिक्षण तंत्र से निकालकर बाहर किया जाए, क्योंकि राज्य की बोर्ड परीक्षा में नकल करवाना आमदनी का अच्छा गोरखधंधा उभरकर पिछले कुछ वर्षों से देश के सामने अपनी जड़ जमाता दिख रहा है। शिक्षणतंत्र में यह गंदी और काली करतूत देश के भावी भाविष्य के साथ खिलवाड़ है। जिस पर रोक लगाना राज्य सरकारों का कर्तव्य है। सीबीएसई बोर्ड का त्रिभाषी नियमों को पाठ्यक्रमों में शामिल किए जाने का फैसला भी छात्रों को आगे चलकर रोजगारपरक और अपनी भाषा को जानने के साथ अन्य भाषाओं को समझने का फायदा छात्रों को होगा। इसके साथ भी छात्राओं को गुणवत्तापूर्ण और रोजगपरक शिक्षा उपलब्ध करने की तरफ जोर देना चाहिए, क्योंकि वर्तमान समय में एक बड़ा वर्ग शिक्षित होने के बावजूद भी बेरोजगारी की जकड़न में फंसा हुआ है। देश में छात्राओं को अपने खुद के उद्योग और परंपरागत छोटे कुटीर उद्योगों से परचित कराना चाहिए, जिससे वे केवल नौकरी पेशे के प्रति लालायित न हों।

भारतीय शिक्षणतंत्र की सबसे बड़ी कमजोरी ये है कि यहां पर अन्य देशों के मुकाबिल शिक्षण प्रणाली में व्यापक स्तर पर कमी मौजूद हैं, अन्य देशों में आठवीं या फिर ग्यारहवीं से ही किसी एक ही क्षेत्र को चुनकर उस उक्त दिशा में कदम बढ़ाकर अपनी रुचि के अनुसार भविष्य निर्माण का स्कोप है, जोकि भारतीय परिदृश्य में नहीं लागू होता है। जो रोजगारपरक व्यवस्था न होने का मलाल होने का बोध कराती है। भारतीय शिक्षण पद्यति को गुणवत्ता पर जोर देना होगा, संख्याबल पर नहीं, तभी बेरोजगारी में कमी लाई जा सकती है। वर्तमान समय में भारत में पढ़े-लिखे बेरोजगार रजिस्टर्ड की संख्या 20 लाख के लगभग है, जो यह दिखाता है कि भारत की वर्तमान स्थिति शिक्षा के क्षेत्र में क्या है, इसमें बदलाव लाना समय की मांग है। देश में कमजोर शिक्षण तंत्र की एक वजह शिक्षकों की भारी कमी और कमजोर या लाचार प्रशिक्षण प्रणाली है, जिस ओर ध्यान देना भी जरूरी है। अगर अच्छे शिक्षक होंगे, फिर पढ़ाई का स्तर भी बढ़ेगा।

देश की सरकार को डिजिटल माध्यम की शिक्षण पद्धति को अपनाने पर जोर देना चाहिए, जिससे देश के दूरदराज का युवा टेक्नोलॉजी से जुड़े और देश की उन्नति में सहायक हो। इसके पहले सीबीएसई बोर्ड को व्यापक निगरानी में अपने निर्णय को देखना होगा कि त्रिभाषा और पुन: छह वर्ष बाद बोर्ड परीक्षा दसवीं के लिए कितना कारगर साबित होती है और क्या फायदा हो रहा है, क्योंकि इससे पहले छात्रों के व्यापक और निरंतर मूल्यांकन का प्रयास विफल साबित हो चुका है। इसके साथ शिक्षा की गुणवत्ता को ध्यान रखते हुए शिक्षकों को बेजा के कामों में झोंकने की प्रथा को बंद करना होगा, क्योंकि सालभर में कई बार शिक्षकों की तैनाती चुनाव आदि कायोंर् के लिए कर दी जाती है, जिससे भी छात्रों की पढ़ाई बाधित होती है। इसके साथ हाल ही में केंद्र मंत्रालय द्वारा जारी की गई सूची में शिक्षकों की भारी कमी बताई गई है, उसे भरना भी जल्द से जल्द आवश्यक है, इसके साथ योग्य और कर्मठ शिक्षकों का चुनाव प्राथमिकता में होना चाहिए और सरकार को सरकारी स्कूलों की दशा में सुधार करना होगा, जिससे गरीब और निचले तबके के साथ निर्धन परिवारों के छात्रों को भी उचित और रोजगारपरक शिक्षा नसीब हो सकें।

- लेखक महेश तिवारी

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1 Comments

  1. 📌 MAN KI BAAT : शिक्षा की गुणवत्ता और आधुनिकता में भारत अभी बहुत पीछे है, इसके लिए उत्तरदायी कारण शिक्षा प्रणाली में मूलभूत ढांचे का न होना और...........
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/12/man-ki-baat_25.html

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