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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

शिक्षा विभाग के दांव पर लाखों बच्चों की जिंदगियां : विभाग ने शिक्षकों को बना दिया ठेकेदार, जर्जर और कंडम सरकारी स्कूलों में पढ़ने को मजबूर

शिक्षा विभाग के दांव पर लाखों बच्चों की जिंदगियां : विभाग ने शिक्षकों को बना दिया ठेकेदार, जर्जर और कंडम सरकारी स्कूलों में पढ़ने को मजबूर

गठजोड़

- जर्जर और कंडम सरकारी स्कूलों में पढ़ने को मजबूर
- राजधानी में 1854 स्कूलों में पढ़ रहे दो लाख के करीब बच्चे
- विभाग ने शिक्षकों को बना दिया ठेकेदार

जागरण संवाददाता, लखनऊ : माल में प्राथमिक विद्यालय जो कुछ हुआ वह कहीं भी हो सकता है। राजधानी में सैकड़ों जर्जर भवन स्कूलों की शक्ल में खड़े हैं जो कभी बड़े हादसे की वजह बन सकते हैं। लाखों बच्चों की जान का सवाल है लेकिन तमाम घटनाओं के बावजूद शिक्षा विभाग सबक सीखने के मूड में नहीं दिख रहा है।1साल दर साल तमाम घटनाओं के बावजूद बच्चे कंडम स्कूलों में पढ़ रहे हैं। बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रवीण मणि त्रिपाठी ऑन रिकार्ड खुद स्वीकार कर रहे हैं कि चार स्कूल ऐसे हैं जो कंडम घोषित किए जा चुके हैं। इसमें प्राथमिक विद्यालय चिनहट के दो स्कूल व दो सरोजनीनगर क्षेत्र के हैं। यानी जो भवन निष्प्रयोज घोषित किए जा चुके हैं उनमें भी हजारों बच्चों पढ़ाकर जान जोखिम में डालने काम किया जा रहा है। भले ही सरकारी आंकड़े केवल पांच स्कूलों को कंडम होने का दावा कर रहे हैं लेकिन किसी भी गांव के स्कूल पर नजर डालेंगे तो पता चल जाएगा कि फाइलों पर जिनको सही दिखाया जा रहा है वह कभी भी रेत के महल की तरह ढ़ेर हो सकते हैं। कुल मिलाकर विभाग, शिक्षक और ठेकेदारों का गठजोड़ इससे बेखबर है।

टीचर बने ठेकेदार कैसे हो बेड़ापार

बेसिक शिक्षा विभाग अपनी तरह का पहला विभाग है जिसे निर्माण की गुणवत्ता और मानकों से कोई सरोकार नहीं है। जिस विभाग पर लाखों बच्चों की जिम्मेदारी है वह भवन निर्माण की गुणवत्ता से किस हद तक समझौता कर रहा है यह बात हैरत करने वाली है। प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक विद्यालयों के निर्माण का जिम्मा विभाग प्रधानाचार्यो के मत्थे पर ही डालता है। जहां तमाम सरकारी महकमों ने निर्माण का जिम्मा सीएनएडीएस और राजकीय निर्माण निगम जैसी सरकारी एजेंसियों को दे रखा है वहीं बेसिक शिक्षा विभाग में निर्माण का जिम्मा स्कूलों के टीचरों पर ही है। ग्राम प्रधान से लेकर दूसरे अफसर तक निर्माण में दिलचस्पी दिखाते हैं और दबाव में शिक्षिकों को वह सब कुछ करना पड़ता है जो कोई प्राइवेट ठेकेदार करता है। एक रिटायर पूर्व शिक्षिका का कहना है कि उनको जब स्कूल का निर्माण कराने के लिए कहा गया था तो आदेश से बिलकुल हैरान थीं। एक शिक्षिका जिस पर सैकड़ों बच्चों की जिम्मेदारी है आखिर वह निर्माण कैसे कराएगी। निर्माण की जिम्मेदारी उनको नहीं दी जाए इसके लिए अफसरों को तमाम पत्र लिखे लेकिन सबने अन्य कोई विकल्प नहीं होने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया।

शिक्षक कोई इंजीनियर नहीं होते। ऐसे में यह काम किसी एजेंसी के माध्यम से करवाने की व्यवस्था हो। क्योंकि विभागीय ठेकेदार शिक्षकों व महिला शिक्षकों पर दबाव बनाकर मनमाने ढंग से इसे बनाते आए हैं। ऐसे में राजकीय निर्माण निगम, सीएनडीएस आदि सरकारी एजेंसी से करवाने का प्रबंध हो। ताकि बेवजह शिक्षक बदनाम न हों। 
-वीरेंद्र सिंह, जिला मंत्री प्राथमिक शिक्षक संघ

राजधानी में घटिया स्कूल बिल्डिंगों की जांच करवाई जाएगी। इसके लिए सूची मैने मांगी है। शिक्षकों को अलर्ट अपने स्तर पर जारी किया है। जर्जर भवनों में विद्यार्थी न बैठाए जाएं। खंडहर में उन्हें जाने से रोका जाए। आगे औचक निरीक्षण कर मामले पर ठोस कार्रवाई की जाएगी।
-महेंद्र सिंह राणा, सहायक बेसिक शिक्षा निदेशक (षष्ट मंडल)

तलब की गई रिपोर्ट: डीएम

जिलाधिकारी ने माल में स्कूल ढहने के मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच कमेटी गठित करने के साथ ही राजधानी में कंडम स्कूलों की सूची तलब की है। डीएम ने बीएसए को निर्देश दिए हैं कि वह एक सप्ताह के भीतर सभी जर्जर भवनों की सूची तैयार करें। डीएम के मुताबिक जो स्कूल कंडम घोषित किए जा चुके हैं उनको वैकल्पिक व्यवस्था के तहत दूसरों भवनों में शिफ्ट किया जाए। अगर कहीं भवन उपलब्ध नहीं होगा तो फिर इसके लिए प्रयास किए जाएंगे। बच्चों की सुरक्षा को लेकर लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी।

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1 Comments

  1. 📌 शिक्षा विभाग के दांव पर लाखों बच्चों की जिंदगियां : विभाग ने शिक्षकों को बना दिया ठेकेदार, जर्जर और कंडम सरकारी स्कूलों में पढ़ने को मजबूर
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/04/blog-post_435.html

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