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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात : कितना जायज?विद्यालय समय पर शिक्षकों द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध, कितना सुंदर होता यदि शासनादेश आता कि प्रत्येक जनपद स्तर पर एक समूह होगा जिसमें बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी व शिक्षक संघ प्रतिनिधि होंगे,जो कि प्रत्येक भ्रामक सूचना पर अधिकारियों से चर्चा करेंगे........

मन की बात : कितना जायज?विद्यालय समय पर शिक्षकों द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध, कितना सुंदर होता यदि शासनादेश आता कि प्रत्येक जनपद स्तर पर एक समूह होगा जिसमें बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी व शिक्षक संघ प्रतिनिधि होंगे,जो कि प्रत्येक भ्रामक सूचना पर अधिकारियों से चर्चा करेंगे........

🌑 कितना जायज?

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आज सुबह जब समाचार - पत्र पढ़ा तो रूबरू हुआ एक ऐसे समाचार से जो चीख - चीखकर कह रहा था कि विद्यालय समय में कोई भी शिक्षक सोशल मीडिया पर व्यस्त नहीं रहेगा । कुछ के लिए ये हँसने की बात थी , कुछ चिंतित थे , कुछ लोगों के लिए ये ध्यान देने योग्य प्रकरण ही न था । कुछ गम्भीर थे तो कुछ क्रोध में थे । इन संवेगों में से मुझे एक को चुनना होगा तो मैं क्रोध को ही चुनूँगा और ऐसे चुनाव के पीछे एक ठोस कारण भी है मेरे पास ।

जब से इस सेवा में आया हूँ तब से मैं ढ़ूँढ रहा हूँ वो सम्मान के शब्द जिन्हें मैंने अपने शिक्षकों के लिए कहा था । वो सम्मान भरे शब्द जिनकी अभिलाषा में मैंने शिक्षक बनने का निर्णय लिया था ।

आज के आधुनिक युग में एक परिषदीय शिक्षक क्या है ? क्या वो एक ऐसा कर्मचारी है जो सरकारी योजनाओं के प्रचार - प्रसार और उनकी सफलता हेतु कार्य करता है ? वे योजनाएँ जो जुड़ी हुई हैं एक विद्यार्थी से लेकर प्रत्येक ग्रामीण तक । नहीं , कृप्या मुझ जैसे जिज्ञासु की जिज्ञासा शांत कीजिए । मुझे बताइए कि पल्स पोलियो की ड्यूटी में , बालगणना की ड्यूटी में , प्रतिदिन की बोझपूर्ण उत्तम भोजन उपलब्ध कराने की ड्यूटी में हमारा कौन - सा शिक्षण कौशल उत्कृष्ट होता है ?

दरअसल स्कूल में 'गुणवत्तापरक' भोजन उपलब्ध कराने का बोझ हम अध्यापकों को कुंठित करता है । एक शिक्षक जिसे विद्यालय से चलते समय ये सोचना चाहिए कि कल उसे कौन - सा पाठ पढ़ाना है उसकी तैयारी करे । इसके स्थान पर वो रसोईयों  से पूछकर चलता है कि कल के लिए रसोई में कौन - सा सामान नहीं है ? जिस शिक्षक को रात में सोने से पहले अगले दिन के लिए प्रकरण के अनुसार शिक्षण विधि के बारे में सोचना चाहिए वो ये सोचकर सोता है कि कल उसे किस क्षेत्र में जाकर नए वोट बनाने हैं ।

विभाग की दुष्कार्यप्रणाली का एक उदाहरण देता हूँ आपको । एक शिक्षक है जो पूरे मनोयोग से बच्चों को गुणा के प्रश्न सिखा रहा है । उसके मोबाइल पर घण्टी बजती है , चूँकि उसने विभागीय नंबर्स की इनकमिंग कॉल पर "स्पेशल रिंगटोन" लगा रखी है । इसलिए उसे फोन उठाने से पहले ही पता चल जाता है किसका फोन है और जिसका फोन है उसकी कॉल को तुरन्त रिसीव करना है ये भी तय है । दूसरी ओर से सम्बंधित व्यक्ति कड़क आवाज में कहता है कि एक घण्टे के अंदर  B.P.L. और A.P.L. छात्रों की सूची उपलब्ध कराएँ । अगर सूची न लाए तो होने वाली कार्यवाही के लिए आप खुद ज़िम्मेदार होंगे । अब ऐसी स्थिति में एक अध्यापक क्या करेगा ? निःसन्देह "सरस शिक्षण" छोड़कर लग जाएगा "नीरस सूचनाओं के निर्माण" में ।

यहाँ ध्यान देने योग्य बात ये है कि एक ओर हमें कड़ी चेतावनी दी जाती है कि विद्यालय समय में अपने मोबाइल को साइलेंट या बन्द रखें वहीं दूसरी ओर फोन पर ही ताबड़तोड़ सूचनाएँ भी माँगी जाती है । साथ ही हमसे छात्रों की उपलब्धि के बारे में पूछा जाता है जबकि विभाग में  एक सूचना का प्रेषण , शिक्षण से अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है ।

अब आते हैं आज के प्रकरण पर । कुछ वर्ष पहले विकास खण्ड स्तर पर माह में 1-2 बैठक होना सामान्य बात थी । एक बैठक जिसके बहाने शिक्षक आपस में मिलते थे , परिचय बढ़ाते थे । अनुभवी और वृद्ध शिक्षक जिसमें नए शिक्षक साथियों की समस्याओं को चुटकियों में हल कर देते थे ।

साथ ही किसी अव्यवहारिक आदेश पर शिक्षक एकजुटता के साथ अपनी असहमति भी जता देते थे । दरअसल ये बैठकें एकता का पर्याय थीं । लेकिन क्या हुआ जब विभाग के लगभग 40% शिक्षक युवा वर्ग से हो गए , मासिक बैठकें एक इतिहास बन गईं । बैठकें इतिहास बनीं क्योंकि युवा शिक्षकों की एकता विभाग की सूरत बदलने का माद्दा रखती थी जो कि कई दमनकारियों के लिए सहनीय नहीं था ।

धीरे - धीरे समय बदला । युवा शिक्षकों की एक बड़ी संख्या ने बेसिक शिक्षा विभाग में तैनाती प्राप्त की । अब वे संगठित भी हो गए थे सोशल मीडिया के माध्यम से । एक मीडिया जो जनपद की सीमाओं के बाहर मित्र बनाने की स्वतन्त्रता और सुविधा देता है । लखनऊ का एक शिक्षक है जो नियमावली का ज्ञाता है परन्तु विज्ञान शिक्षण में कमजोर है । वहीं जौनपुर का एक शिक्षक है जो विज्ञान शिक्षण में निपुण है परन्तु त्रस्त है अपने निकटस्थ विभागीय अधिकारी से । ये दोनों फेसबुक पर मिलते हैं , व्हाट्सएप्प नम्बर साझा करते हैं और बातों के दौर में अपनी समस्याएँ रखते हैं और ये समस्या चुटकियों में हल भी हो जाती ही क्योंकि दोनों एक - दूसरे की समस्या सुलझाने के विशेषज्ञ थे । अब अधिकारी सदमे में कि अमुक शिक्षक की समस्या हल कैसे हुई ?

शनैः शनैः सोशल मीडिया पर जागरूक शिक्षकों का एक समूह निर्मित हो जाता है । जो कि प्रत्येक शासनादेश ऑनलाइन उपलब्ध कराता है । सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म बन जाता है जो कि लगभग सभी समस्याओं का हल उपलब्ध करा सकता है । एक प्लेटफॉर्म जहाँ एक अंतर्मुखी शिक्षक भी अपनी बेबाक राय लाखों के आगे रखता है ।

पर नहीं , इतनी सारी सकारात्मकता ही उन लोगों के लिए अपचनीय बन जाती है जो हम पर शासन करना चाहते हैं । सोशल मीडिया को विद्यालय में बैन कर दिया जाता है । क्यों ? क्योंकि शिक्षक एक ही मैसेज से एकत्र हो सकते हैं जबकि उनके किसी साथी को ग्राम प्रधान द्वारा पीटा जा रहा है । या फिर इसलिए क्योंकि शिक्षक अपनी किसी माँग जैसे 17140 के लिए कार्यालय पर एकजुट हो सकते हैं केवल एक मैसेज के माध्यम से ।

सोशल मीडिया को विद्यालय में बैन करने के पीछे तर्क दिया जाता है कि शिक्षक भ्रामक सूचनाएँ फैलाते हैं और शिक्षण में ध्यान नहीं देते हैं । तब मेरा प्रश्न ये है कि क्या भ्रामक सूचना फ़ैलाने वाले ये सूचनाएँ विद्यालय समय के बाद नहीं फैला सकते ? चलिए ये भी मान लेते हैं कि सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने से अध्यापक विद्यालय में ध्यान नहीं देते । पर उन सख़्त कॉल्स का क्या जो विभाग द्वारा धमकी भरे लहजे में की जाती हैं कि यदि समय पर सूचनाएँ न आईं तो यह हो जायगा वो हो जायगा। क्या ये सब शिक्षण में बाधा नहीं हैं ?

परन्तु दुःखद ये है कि अधिकारी शब्द ही ऐसा है जिसमें मात्र अधिकार की बात है । कर्त्तव्य शब्द तो अधिकारी शब्द में हाशिए पर भी नहीं है । दूजे नीति - नियंताओं द्वारा ये एकदिशीय आदेश । बात ऊपर से नीचे तक आ जाती है परन्तु नीचे से ऊपर तक नहीं जा पाती । कुछ सीमा तक सोशल मीडिया इसका माध्यम बन रहा था । परन्तु इस मार्ग को भी बन्द करने की कवायद चलने लगी । वह दिन दूर नहीं जब शिक्षकों के लिए सोशल मीडिया ही बैन हो जाएगा ।

कितना सुंदर होता यदि शासनादेश आता कि प्रत्येक जनपद स्तर पर एक समूह होगा जिसमें बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी व शिक्षक संघ प्रतिनिधि होंगे । जो कि प्रत्येक भ्रामक सूचना पर अधिकारियों से चर्चा करेंगे और एक सटीक बयान जारी करेंगे । संघ प्रतिनिधि सोशल मीडिया के माध्यम से शिक्षकों की समस्याओं को अधिकारियों के समक्ष रखेंगे । परन्तु दुर्भाग्य से ये सब एक शिक्षक के लिए स्वप्न मात्र हैं । जो कि सत्य नहीं हो सकते क्योंकि विभाग दमनकारी नीतियों के मार्ग पर चल रहा है ।

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  1. 📌 मन की बात : कितना जायज?विद्यालय समय पर शिक्षकों द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध, कितना सुंदर होता यदि शासनादेश आता कि प्रत्येक जनपद स्तर पर एक समूह होगा जिसमें बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी व शिक्षक संघ प्रतिनिधि होंगे,जो कि प्रत्येक भ्रामक सूचना पर अधिकारियों से चर्चा करेंगे........
    👉 http://www.basicshikshanews.com/2016/04/blog-post_202.html

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