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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

शैक्षिक सत्र 2016-17 में राज्य के सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में पढ़ने वाले करीब दो करोड़ छात्र-छात्रओं को निशुल्क किताबें मिलना होगा मुश्किल : कोर्ट ने किताबों के लिए इको फ्रेंडली कागज इस्तेमाल करने की दी है हिदायत

शैक्षिक सत्र 2016-17 में राज्य के सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में पढ़ने वाले करीब दो करोड़ छात्र-छात्रओं को निशुल्क किताबें मिलना होगा मुश्किल : कोर्ट ने किताबों के लिए इको फ्रेंडली कागज इस्तेमाल करने की दी है हिदायत

लखनऊ।  शैक्षिक सत्र 2016-17 में राज्य के सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में पढ़ने वाले करीब दो करोड़ छात्र-छात्रओं को निशुल्क किताबें मिलना मुश्किल होगा। प्रकाशकों ने इन्हें छापने से इनकार कर दिया है। सत्र 2015-16 की किताबों का भुगतान न होने के कारण यह स्थिति पैदा हुई। यूपी बेसिक एजूकेशन प्रिंटर्स एसोसिएशन के बैनर तले प्रकाशकों ने शुक्रवार को प्रेस क्लब में आयोजित वार्ता में यह घोषणा की। दो करोड़ बच्चे, 14 करोड़ किताबें एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष शैलेंद्र जैन ने बताया कि प्रदेश में संचालित बेसिक शिक्षा परिषद के परिषदीय स्कूलों में करीब दो करोड़ बच्चे पढ़ते हैं। इनके लिए हर साल 14 करोड़ के आसपास किताबें छापी जाती हैं। यह काम करीब 25 प्रकाशक करते हैं।

शैक्षिक सत्र 2015-16 का करीब 55 से 60 प्रतिशत भुगतान अभी बाकी है। कागज के मानकों पर आपत्ति: प्रकाशकों ने सत्र-2016-17 में किताबों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कागज पर भी आपत्ति उठाई है। विभाग ने इस बार सिर्फ वर्जिन पल्प युक्त कागज बैम्बो अथवा वुड बेस्ड का इस्तेमाल करने का आदेश दिया है। अध्यक्ष शैलेंद्र जैन का कहना है कि यह कागज इको फ्रेंडली नहीं है। कोर्ट ने भी इको फ्रेंडली कागज इस्तेमाल करने की हिदायत दी है। यह सब सिर्फ एक निजी कम्पनी को फायदा देने के लिए किया गया है।

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