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7वें वेतन आयोग की सिफारिश से बढ़ेगी महंगाई? : सेवारत और सेवानिवृत्त, दोनों लाभार्थियों की संख्या 1 करोड़ से ऊपर

7वें वेतन आयोग की सिफारिश से बढ़ेगी महंगाई? : सेवारत और सेवानिवृत्त, दोनों लाभार्थियों की संख्या 1 करोड़ से ऊपर

​​सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के संभावित प्रभाव को लेकर तरह-तरह की बातें की जा रही हैं। कुछ........

अरविंद सिंघल

सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के संभावित प्रभाव को लेकर तरह-तरह की बातें की जा रही हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इससे ऑटोमोबाइल और रीयल एस्टेट सेक्टर के अच्छे दिन लौट आएंगे जिनकी वे काफी समय से प्रतीक्षा कर रहे थे जबिक कुछ लोगों का मानना है कि इससे उपभोक्ता खर्च में बढ़ोतरी होगी। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि यह एक ऐसा कदम होगा जो सरकार के महंगाई और वित्तीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने के प्रयास को प्रभावित करेंगे। लेकिन जहां तक मेरा मानना है वह यह है कि सच कुछ और ही है। तो आइये जानते हैं क्या सच है...

आंकड़ों पर एक नजर

सबसे पहले हम आंकड़ों और तथ्यों पर नजर डालते हैं। पिछले (छठे) वेतन आयोग की सिफारिश को अगस्त 2008 में लागू किया गया था जो 1 जनवरी, 2006 से प्रभावी था। लाभार्थियों को बकाये के रूप में इस सिफारिश के मुताबिक करीब 18,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया जिससे उपभोग को काफी बढ़ावा मिला। 

इस साल उम्मीद है कि सिफारिशें 1 जनवरी, 2016 से प्रभावी होंगे और वेतन, भत्तों व पेंशन पर कुल मिलाकर 1,02,000 करोड़ रुपये खर्च होने की उम्मीद है। इनमें से करीब 39,100 करोड़ वेतन, 29,300 करोड़ भत्ता और 33,700 करोड़ रुपये पेंशन के रूप में भुगतान किया जाएगा। इस बार यह खर्च 2015-16 में भारत की जीडीपी का करीब 0.65 फीसदी है जो पिछली बार करीब 077 फीसदी था। सेवारत और सेवानिवृत्त, दोनों लाभार्थियों की संख्या 1 करोड़ से ऊपर है। 

उपभोक्ता खर्च पर इसका क्या असर पड़ेगा, आइये उसे इन तथ्यों की मदद से जानते हैं। सातवें वेतन आयोग की सिफारिश पर अमल करने की स्थिति में होने वाला खर्च करीब 1.02 लाख करोड़ होगा जिस पर इनकम टैक्स भी लगेगा। इससे लोगों के पास पहुंचने वाली रकम का 20-30 फीसदी तो टैक्स के रूप में चला जाएगा। 

इसके अलावा मौजूदा छोटी बचत दर करीब 22 फीसदी है और इसलिए इस राशि में से कुछ बचत के रूप में जमा हो जाएगी। इस तरह से इकॉनमी के अंदर जिस वास्तविक रकम का प्रवाह होगा वह 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा नहीं होगा। इस अतिरिक्त पैसे का कुछ अंश एचआरए (हाउस रेंट अलाउंस) के प्रावधान के रूप में आवंटित किया जाएगा और कुछ अंश सेवानिवृत्त होने वालों को पेंशन के रूप में भुगतान किया जाएगा। 1 करोड़ लाभार्थियों में से जिन पर इन सिफारिशों का ज्यादा प्रभाव होगा वह निचले दर्जे के कर्मचारी (जहां न्यूनतम वेतन में 7,000 से 18,000 रुपये प्रति महीने की भारी बढ़ोतरी होगी) और पेंशनभोगी होंगे। 

2015 में भारत की इकॉनमी करीब 132,000 अरब रुपये की हो जाएगी और अनुमानित निजी उपभोग इसका 60 फीसदी यानी करीब 1,200 अरब रुपये होगा। मर्चेंडाइज खर्च को बढ़कर करीब 550 अरब रुपये हो जाने का अनुमान है। जहां पहले से निजी उपभोग करीब 1,200 अरब रुपये है वहां वेतन आयोग की सिफारिश के बाद इसमें मात्र 0.67 फीसदी बढ़ोतरी हो सकती है। एक लाभार्थी के लिए वार्षिक बढ़ोतरी करीब 50,000 रुपये होगी यानी एक महीने में 4,000 रुपये से ज्यादा उनकी आय में जुड़ेंगे जबिक प्रॉपर्टी, गाड़ी और जूलरी की खरीदारी के लिए बड़ी रकम की जरूरत होती है। अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस मामूली से इन सेक्टरों पर खर्च होने वाले पैसे में कितनी बढ़ोतरी होगी। हां, अलबत्ता वेतन में होने वाली इस वृद्धि का असर पड़ सकता है तो वे कुछ छोटे-मोटे सेगमेंट्स हैं जैसे कपड़ा और फुटवेअर, किचन अप्लायंसेज और घरेलू फर्नीचर, रेस्ट्रॉन्ट्स और कैफे, यात्रा आदि पर खर्च बढ़ेंगे। इन सभी सेक्टरों में पर्याप्त आपूर्ति क्षमता है और इसलिए इनमें खर्च में बढ़ोतरी होने पर महंगाई पर कोई असर नहीं पड़ेगा। 

जहां तक सरकार पर बोझ का सवाल है तो मेरा मानना है कि यह चिंता भी गलत है। कम से कम एक तिहाई खर्च रेलवे का होगा और दो तिहाई खर्च केंद्र सरकार का। सरकार के वित्तीय घाटे बढ़ने का भी खतरा नजर नहीं आता है। सरकार जहां ग्रैच्युटी को डबल कर दिया है वहीं 52 भत्तों को खत्म कर दिया है। 


वेतन आयोग की सिफारिशें मानने से स्थिति होगी संकटपूर्ण'

नई दिल्ली : सातवें वेतन आयोग द्वारा केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन, भत्तों तथा पेंशन में औसतन 23.55 प्रतिशत बढ़ोतरी की सिफारिश को एक ओर जहां सरकारी कर्मचारी उम्मीद से कम बता रहे हैं, वहीं उद्योग संगठन एसोचैम का कहना है कि सरकार को वेतन में सिफारिश से कम बढ़ोतरी करनी चाहिये क्योंकि इसे पूरी तरह लागू कर देने पर सरकारी कोष संकटपूर्ण स्थिति में आ जाएगा।


एसोचैम ने बताया कि सरकार ने वित्त वर्ष 2015-16 के लिए 9.20 लाख करोड़ रुपये के कर राजस्व संग्रह का लक्ष्य रखा है। वेतन आयोग की सिफारिशें ज्यों की त्यों लागू कर देने से 47 लाख केंद्रीय कर्मचारियों तथा 52 लाख पेंशनधारकों के वेतन तथा पेंशन पर सरकार का खर्च 1.02 लाख करोड़ बढ़कर 5.27 लाख करोड़ पर पहुंच जायेगा। यह कुल कर राजस्व का 57 प्रतिशत होगा।


संगठन के महासचिव डी.एस. रावत ने कहा कि यदि राजस्व का आधे से ज्यादा हिस्सा वेतन में चला जाये तो कोई भी वित्तीय ढांचा चरमरा जायेगा। हमें ऐसी स्थिति पैदा ही नहीं करनी चाहिये जिससे वेतन भुगतान के लिए सरकार को कर्ज लेना पड़ा।


विज्ञप्ति में कहा गया है कि हालांकि, वित्त मंत्री ने भरोसा दिलाया है कि वेतन भुगतान के मद में बढ़े हुये खर्च के बावजूद सरकार चालू वित्त वर्ष के लिए वित्तीय घाटे को 3.9 प्रतिशत की सीमा में तथा अगले वित्त वर्ष के लिए 3.5 प्रतिशत के दायरे में रखने में सफल होगी, फिर भी सवाल यह उठता है कि सरकार यह सब कैसे करेगी।


एसोचैम ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति और मांग की मंदी को देखते हुये यह नहीं कहा जा सकता कि वेतन आयोग की रिपोर्ट लागू करने से पहले बचे हुये चार महीने में अर्थव्यवस्था में कोई बड़ा सुधार आ जायेगा। एसोचैम ने कहा कि कर्मचारियों को वेतन देने के लिए सरकार विनिवेश पर निर्भर नहीं रह सकती। उसे अपने राजस्व से वेतन देना चाहिये। यह कहना गलत होगा कि समस्त राजस्व संग्रह से कर्मचारियों के बढ़े वेतन की भरपाई की जायेगी क्योंकि राजस्व संग्रह का एक हिस्सा (5.23 लाख करोड़ रुपये) राज्य सरकारों को जाता है।


विज्ञप्ति में यह आशंका जताई गयी है कि पहले से ही वित्तीय लक्ष्य हासिल करने को लेकर जारी दबाव के बीच वेतन भुगतान का बोझ बढ़ने से विकास कार्यों के मद में होने वाले खर्च में भारी कटौती हो सकती है, जिससे निवेश की स्थिति और खराब होगी। एसोचैम के अनुसार, आर्थिक सुधार निवेश पर निर्भर है और निजी क्षेत्र में सुस्ती के मद्देनजर सरकारी निवेश को इसमें नेतृत्व करना चाहिये। जब सरकार के अपने बैलेंसशीट पर ही कर्मचारियों के वेतन और पेंशन का बड़ा बोझ होगा तो वह कौन सी जादूई छड़ी घुमाकर निवेश के लिए अतिरिक्त आय जुटाएगी।


उद्योग संगठन का कहना है कि सरकारी कर्मचारियों का वेतन बढ़ने के बाद निजी कंपनियों पर भी उसी तर्ज पर वेतन वृद्धि का दबाव होगा। लेकिन, 100 बड़ी कंपनियों को छोड़कर संगठित या असंगठित क्षेत्र की कोई भी बड़ी, मंझौली या छोटी कंपनी इस प्रकार की बढ़ोतरी करने की स्थिति में नहीं है। उन्होंने कहा कि शीर्ष 100 को छोड़कर कौन सी ऐसी कंपनी है जो अपने ड्राइवर को 30 हजार रुपये और चपरासी को 22 से 25 हजार रुपये का शुरुआती वेतन दे सके।


रावत ने कहा कि यह तंत्र में असमानता दूर करने का तरीका नहीं है। सच्चाई यह है कि अधिकतर कंपनियां सरकारी क्षेत्र की तरह वेतन देने में सक्षम नहीं हैं। लगभग एक करोड़ लोगों की बढ़ी आमदनी से ऑटो मोबाइल, टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों तथा गैर-टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादों की क्षणिक मांग बढ़ सकती है, लेकिन कुल मिलाकर इससे महंगाई बढ़ेगी और एक बार फिर ब्याज दरों में बढ़ोतरी होगी।

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  1. 📌 7वें वेतन आयोग की सिफारिश से बढ़ेगी महंगाई? : सेवारत और सेवानिवृत्त, दोनों लाभार्थियों की संख्या 1 करोड़ से ऊपर
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