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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

शिक्षा से मजाक, परिषदीय स्कूलों (Primary school) में वैसे ही शिक्षकों (Teachers) की कमी है, ऊपर से उनकी गैर शैक्षणिक कार्यों में ड्यूटी लगा दी जा रही : पढ़ाने के बजाय बच्चों को संभालते हैं शिक्षक

शिक्षा से मजाक, परिषदीय स्कूलों में वैसे ही शिक्षकों की कमी है, ऊपर से उनकी गैर शैक्षणिक कार्यों में ड्यूटी लगा दी जा रही : पढ़ाने के बजाय बच्चों को संभालते हैं शिक्षक

साहिबाबाद : ट्रांस ¨हडन के प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में सरकारी तंत्र ही शिक्षा से खुला मजाक कर रहा है। इसका सीधा सुबूत है कि सैकड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूलों में चंद शिक्षकों की तैनाती है। प्राथमिक विद्यालय अर्थला में ढाई सौ छात्रों पर तीन शिक्षक तैनात हैं। इस वजह से यहां जब तीन कक्षाओं में पढ़ाई होती है, तो बाकी दो कक्षाओं के बच्चे घेर कर बिठा दिए जाते हैं। यह हाल तब है, जब एनसीआर में ट्रांस ¨हडन का विद्यालय होने की वजह से यहां तैनाती पाने को शिक्षक लालायित रहते हैं।

सरकारी स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा का मखौल उड़ते अर्थला के प्राथमिक विद्यालय में देखा जा सकता है। यहां शिक्षकों की कमी का खामियाजा भुगत रहे बच्चों को आधा वक्त तो उन कक्षाओं में बीत जाता है। जहां उन्हें कुछ पढ़ना या सीखना नहीं होता है। शिक्षकों की कमी से जूझ रहे स्कूल के हेडमास्टर ने कक्षा प्रबंधन का तरीका खोज निकाला है कि कक्षा एक और दो और कक्षा तीन और पांच के विद्यार्थियों को एक साथ बैठाकर पढ़ाया जाता है। कक्षा चार में बच्चों की तादाद अधिक है। इसलिए उन्हें दूसरी कक्षा के बच्चों के साथ एक कमरे में बिठाना संभव नहीं है। लिहाजा जब कक्षा पांच के बच्चों को पढ़ाया जा रहा होता है, तो कक्षा तीन के बच्चे क्लास में बैठकर ब्लैकबोर्ड की ओर देखते रहते हैं, लेकिन कुछ समझ नहीं पाते। उनके पास पुस्तकें भी कक्षा तीन की होती हैं। वहीं जब कक्षा तीन के बच्चों को पढ़ाया जाता है, तो कक्षा पांच के बच्चे शोर मचाते रहते हैं। जिन्हें संभालना शिक्षक की सबसे बड़ी चुनौती बन जाती है। पांच कक्षाएं होने की वजह से कम से कम पांच शिक्षक तैनात होने जरूरी हैं। अर्थला निवासी अनिल मिश्रा सवाल पूछते हैं कि इस तरह के स्कूल में बच्चों को आखिर क्यों भेजा जाए, जहां सभी कक्षाओं के लिए शिक्षक भी नहीं हैं।

क्या है दूसरे स्कूलों का हाल

नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार-2011 के तहत स्कूलों में 30 से 35 छात्रों पर एक शिक्षक की तैनाती का प्रावधान है। जिससे स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि हो और छात्रों का सतत मूल्यांकन हो सके। प्राथमिक विद्यालय भोवापुर में 372 छात्रों पर चार शिक्षक व एक प्रधानाध्यापक की तैनाती है। सभी कक्षाएं अलग-अलग कमरों में तो चलती हैं, लेकिन छात्रों की संख्या अधिक होने से शिक्षक सभी बच्चों पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। प्राथमिक विद्यालय महाराजपुर में 253 छात्रों पर प्रधानाध्यापक सहित पांच शिक्षकों की तैनाती है। प्राथमिक विद्यालय कड़कड़ मॉडल में 250 छात्रों पर भी प्रधानाध्यापक सहित पांच शिक्षक तैनात हैं। प्राथमिक विद्यालय साहिबाबाद में 236 छात्रों पर चार शिक्षक व प्रधानाध्यापक की तैनाती है। यही हाल अन्य परिषदीय स्कूलों की हैं।

पढ़ाने के बजाय बच्चों को संभालते हैं शिक्षक :

परिषदीय स्कूलों में शिक्षक-छात्र मानक के अनुसार न होने से शिक्षा की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। शिक्षक छात्रों को पढ़ाने के बजाय संभालते दिखते हैं। एक स्कूल के शिक्षक ने बताया कि छात्रों की संख्या अधिक होने से बड़ी दिक्कत होती है। कई बार तो दो-दो कक्षाओं के छात्रों को एक साथ पढ़ाना पढ़ता है। ऐसे में सही ढ़ंग से पढ़ाई होने का सवाल ही नहीं पैदा होता है। स्थिति यह बन जाती है कि सभी बच्चों के गृह कार्य की जांच तक नहीं हो पाती है।

गैर शैक्षणिक कार्यो में लग रही ड्यूटी :

एक तो परिषदीय स्कूलों में वैसे ही शिक्षकों की कमी है, ऊपर से उनकी गैर शैक्षणिक कार्यों में ड्यूटी लगा दी जा रही है। हालांकि यह ड्यूटी शिक्षण कार्य के बाद करनी होती है, लेकिन ऐसा होता नहीं है। साथ ही प्रधानाध्यापकों को पढ़ाने के अलावा अन्य कई कार्यालयी काम भी निबटाना पड़ते हैं। इन सबसे छात्रों की पढ़ाई ही प्रभावित होती है।

        खबर साभार : दैनिकजागरण

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  1. शिक्षा से मजाक, परिषदीय स्कूलों (Primary school) में वैसे ही शिक्षकों (Teachers) की कमी है, ऊपर से उनकी गैर शैक्षणिक कार्यों में ड्यूटी लगा दी जा रही : पढ़ाने के बजाय बच्चों को संभालते हैं शिक्षक
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