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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

शिक्षा और संसाधन (Education and Resources) : हमारे यहां सरकारी स्कूलों ने एक से एक विभूतियों की मेधा को तराशा है, विद्यालयों का स्तर उठाना है तो दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के साथ निर्णय करने और अतिरिक्त संसाधन……………

शिक्षा और संसाधन : हमारे यहां सरकारी स्कूलों ने एक से एक विभूतियों की मेधा को तराशा है, विद्यालयों का स्तर उठाना है तो दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के साथ निर्णय करने और अतिरिक्त संसाधन……………

हाई कोर्ट को आखिर क्यों आदेश देना पड़ा कि सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों के बच्चे भी सरकारी स्कूलों में पढ़ें, न पढ़ें तो उनके वेतन से शुल्क की कटौती की जाए। इसके एक नहीं अनेक कारण हैं। हमारे यहां सरकारी स्कूलों ने एक से एक विभूतियों की मेधा को तराशा है। राजधानी ही नहीं प्रदेश के किसी जिले के राजकीय इंटर कॉलेज का इतिहास उठाकर देख लें, जिले की जो सर्वोच्च दस हस्तियां होंगी उनमें से दो तिहाई की शिक्षा ऐसे ही राजकीय विद्यालयों में हुई होगी।

यह जरूर है कि जब से शिक्षा का व्यवसायीकरण हुआ, क्लास कांशस तबका इन्हें हेय समझने लगा। सरकारी स्कूलों को खैराती स्कूल समझा जाने लगा और सबसे पहले सरकारी वेतनभोगियों ने ही अपने बच्चों को इन स्कूलों से निकाल लिया। अब तो स्वयं शिक्षक समाज भी इन विद्यालयों का माहौल अपने बच्चों के पढ़ने लायक नहीं मानता। जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है।

गत वर्ष हाई स्कूल की परीक्षा में राजधानी में राजकीय इंटर कॉलेज के एक छात्र ने 87 फीसद अंक अर्जित किए। गणित विषय में उसने सौ में से सौ अंक हासिल किए। इस विद्यालय का हाई स्कूल का परीक्षा परिणाम 78 फीसद रहा। यही स्थिति अन्य राजकीय इंटर कॉलेजों की है। गाहे-बगाहे यहां के बच्चे मेरिट में भी स्थान बनाते हैं। 2011 की मेरिट में राजकीय जुबली इंटर कॉलेज का भी एक छात्र था।

जो विद्यालय और विद्यार्थी वर्तमान स्थितियों में ऐसी उपलब्धियां अर्जित कर सकते हैं, यदि उन्हें बेहतर संसाधन उपलब्ध करा दिए जाएं तो क्या इनमें निखार नहीं आएगा। इन्हीं राजकीय इंटर कॉलेजों में कभी दाखिले के लिए मारामारी रहती थी और प्रवेश परीक्षा से दाखिला दिया जाता था। नब्बे के दशक में एक-एक सीट पर प्रवेश के लिए मारामारी रहती थी। दरअसल, राजकीय इंटर कॉलेजों की भूमिका यूपी बोर्ड में वही है जो सीबीएसई बोर्ड में केंद्रीय विद्यालयों की। केंद्रीय कर्मचारी आज भी केंद्रीय विद्यालयों में अपने बच्चों का दाखिला कराने को प्राथमिकता देते हैं लेकिन ऐसा राज्य कर्मचारियों के साथ नहीं है।

दरअसल, दो दशक में शिक्षा माफिया ने राजनीतिक और सरकारी तंत्र से गठजोड़ कर नियोजित ढंग से सरकारी स्कूलों की कमर तोड़ दी है। ताकि, इनकी दुकान चलती रहे। हाई कोर्ट के आदेश में जनभावना झलकती है। लेकिन, इन विद्यालयों का स्तर उठाना है तो दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के साथ निर्णय करने और अतिरिक्त संसाधन जुटाकर ही सूरत बदली जा सकती है।

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  1. शिक्षा और संसाधन (Education and Resources) : हमारे यहां सरकारी स्कूलों ने एक से एक विभूतियों की मेधा को तराशा है, विद्यालयों का स्तर उठाना है तो दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के साथ निर्णय करने और अतिरिक्त संसाधन……………
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