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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात : अभी तो फर्ज़ी डिग्री और फ़ोटो खिंचाने का मौसम है ?भारत के संदर्भ में निजी स्कूलों का उदाहरण लिया जा सकता है, जो बच्चों को अच्छी शिक्षा देने का दावा करते हैं। लेकिन इन्ही स्कूलों में 25 फ़ीसदी बच्चों के एडमीशन की प्रक्रिया कैसे पूरी होती है, उन बच्चों के साथ स्कूल का क्या रवैया होता है…………

मन की बात : अभी तो फर्ज़ी डिग्री और फ़ोटो खिंचाने का मौसम है ?भारत के संदर्भ में निजी स्कूलों का उदाहरण लिया जा सकता है, जो बच्चों को अच्छी शिक्षा देने का दावा करते हैं। लेकिन इन्ही स्कूलों में 25 फ़ीसदी बच्चों के एडमीशन की प्रक्रिया कैसे पूरी होती है, उन बच्चों के साथ स्कूल का क्या रवैया होता है……………

शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के लिए व्यक्तित्व का धारदार होना कितना जरूरी है? यह एक आधारभूत सवाल है, जिससे सामना हो रहा है। इसके जवाब में मेरा बस इतना कहना है कि इस क्षेत्र में काम करने के लिए बच्चों के मनोविज्ञान, अभिभावकों की अपेक्षाओं, शिक्षकों के मनोवृत्ति व उनके सामने चुनौतियों व संभावनाओं की बेहतर समझ होना बेहद जरूरी है।

इसके साथ ही साथ यह भी आवश्यक है कि हम जिस परिवेश में काम कर रहे हैं उसकी संस्कृति के हिसाब से अच्छे उदाहरण पेश करने की कोशिश करें।

दुनिया में बहुत सारी समस्याओं व उनके समाधान का श्रेय मैनेजमेंट की थ्योरीज़ को जाता है। उसमें से एक अप्रोच इंसानों को संसाधन की तरह देखने का भी है। हर किसी को एक ही सांचे में ढालने की कोशिश भी मैनेजमेंट के उसी अप्रोच का हिस्सा है..जो स्कूलों में सभी बच्चों को एक जैसी ड्रेस पहनने की वक़ालत तो करती है, लेकिन सबको एक नज़र से देखने और सभी बच्चों को एक जैसी शिक्षा मुहैया कराने की जिम्मेदारी से भागती भी है।

भारत के संदर्भ में निजी स्कूलों का उदाहरण लिया जा सकता है, जो बच्चों को अच्छी शिक्षा देने का दावा करते हैं। लेकिन इन्ही स्कूलों में 25 फ़ीसदी बच्चों के एडमीशन की प्रक्रिया कैसे पूरी होती है, उन बच्चों के साथ स्कूल का क्या रवैया होता है…क्या उनको भी बाकी बच्चों की तरह से शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया जाता है या फिर अभिभावकों को टरकाया जाता है कि हमारे स्कूल का कोटा तो पूरा हो गया। आप अपने बच्चों को कहीं और पढ़ाइए…।

अगर सरकार ने शिक्षा को लाभ का धंधा बनने दिया है तो फिर इसे रोकने या इस पर लगाम कसने की जिम्मेदारी भी सरकार की है। लेकिन सरकार भला क्यों फिक्र करेगी कि देश के अधिकांश बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले और उनका भविष्य बेहतर हो,,,,सरकार के मंत्रियों, विधायकों और सांसदों को तो केवल अपनी चिंता है कि सत्ता में कैसे बने रहें? सत्ता का इस्तेमाल करते हुए अपने साम्राज्य का विस्तार करें।

एक ऐसा देश जिसके बहुत से नेता फर्ज़ी डिग्री के मामले में सुनवाई का सामना कर रहे हों और सज़ा पाने के कगार पर हों…उसकी शिक्षा व्यवस्था के बारे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। अभी तो नेता जी उन बच्चों के साथ पैसे और लैपटॉप बांटते हुए फ़ोटो खिंचाने में व्यस्त हैं जिन्होंने आईआईटी की परीक्षा पास की है, लेकिन ऐसे बच्चों का क्या जो आठ साल की पढ़ाई के बाद किसी काबिल नहीं बचेंगें…शायद इतने भी नहीं कि बिना नकल के दसवीं की परीक्षा पास कर पाएं…।
आभार : बृजेश सिंह

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