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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात : समझ नहीं आता की सरकार भुखमरी मिटा रही है या स्कूल व अध्यापक की बची खुची इज्जत कहते हैं जब देश पर संकट हो तो…………

मन की बात : समझ नहीं आता की सरकार भुखमरी मिटा रही है या स्कूल व अध्यापक की बची खुची इज्जत कहते हैं जब देश पर संकट हो तो…………

समझ नहीं आता की सरकार भुखमरी मिटा रही है या स्कूल व अध्यापक की बची खुची इज्जत कहते हैं जब देश पर संकट हो तो सभी को एकजुट होकर देश के साथ तन मन धन से खड़ा होना चाहिए । पर आज अध्यापक क्या इस भुखमरी की आपदा में ऐसा कर रहा है ?

"क्या कहा भुखमरी है कहाँ ? भाई अगर भुखमरी  नहीं  होती तो सरकार को क्या पड़ी थी की इस 45 डिग्री सेल्सियस के तापमान में अपने स्कूलो को खोलकर लंगर चलवाती।"

आईये अब बात mdm की करते है , ये दुनिया की सबसे बड़ी योजना है जिसमे एक साथ करोड़ो बच्चे एक साथ बैठकर  भोजन करते है। योजना बहुत ही अच्छी है क्योंकि चाहे अनचाहे पर सत्य यही है की प्राइमरी में पढ़ने वाले बच्चे गरीब परिवार से आते है जहाँ आज भी शिक्षा आय का जरिया नहीं बन पायी है और ऐसे अभिभावको में बच्चे की टिफिन पर अभिभावकों का ध्यान नहीं होता ।

अतः यदि दोपहर में उन्हें स्कूल में mdm मिल  जाता है तो ये उनके शारीरिक व मानसिक विकास के लिए बहुत ही अच्छा है । मुझे याद है जब स्कूल में mdm की जगह अनाज मिलता था।तो स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों में कई के गाल पिचके (कुपोषित) हुए होते थे । इसका कारण ये था की ऐसे बच्चे दोपहर में भोजन करने घर नहीं जाते थे । जब mdm प्रारंभ हुआ तो ये स्थिति काफी हद तक दूर हुई ।

अब इस अच्छी योजना की आड़ में खिलवाड़ की बात करते है ये दुनिया की सबसे सस्ती योजना है जिसमें 100 ग्राम अनाज व 3.59 और 5.38 रूपये प्रति छात्र की लागत में एक बच्चे को भोजन मिल जाता है । इस 3.59 और 5.38 रूपये में सब्जी दाल नमक तेल मशाला वो भी ब्रांडेड और लकड़ी की व्यवस्था शामिल है ।इसमें सबसे बड़ा योगदान अध्यापक का है ।अतः इस सस्ती योजना कइ संचालन को लेकर सरकार को कोई  तकलीफ नहीं है । और यही कारन है इस योजना के राजनितिक फायदों के लिए दुरूपयोग करने का । जैसे गर्मी की छुट्टी में स्कूल खोलना वो भी मात्र  mdm के लिए।

यदि सरकार भुखमरी मानती है तो क्या एक परिवार में एक बच्चे के लिए 40*100ग्राम =4kg अनाज व 131 रूपये का सहयोग कर भुखमरी मिटा रही है।

ये बिल्कुल उसी तरह है जैसे अभी कुछ दिन पहले सुखा राहत के नाम पर 60 रूपये का चेक देना। समझ नहीं आता की सरकार भुखमरी मिटा रही है या स्कूल व अध्यापक की बची खुची इज्जत। जहाँ अध्यापक का काम शिक्षण से ज्यादा बच्चों का पोषण होता जा रहा है जिसके लिए बाल विकास एवं पुष्टाहार व स्वास्थ्य विभाग पहले से चल रहें है । सारांशतः गरीबों का सहयोग करना अलग बात है और सहयोग का दिखावा करना  बात है ।

आज मुझे इस समस्त घटनाक्रम पर एक कहानी याद आ रही है-

एक बार एक बन्दर को जंगल का राजा बना दिया गया उसके बाद जनता एक दिन अपनी शिकायत लेके उस बन्दर राजा के पास गई और उसे दूर करने के लिए मदद मांगी, इतना सुनते ही बन्दर एक पेड़ से दूसरे पेड़ और दूसरे से तीसरे पेड़ पर छलांग लगाने लगा | ये देख कर जनता ने हैरान होकर राजा से पूछा की आप ये क्या कर रहे है तो बन्दर बोला आप देख नहीं रहें है की मैं आपकी समस्याओ को लेकर कितनी भाग दौड़ कर रहा हूँ |
    ~भाई विनोद कुमार भदोही की कलम से

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